आसनसोल.
जिलाधिकारी पोन्नमबालम.एस ने कहा कि ग्रामीण सड़कों की रखरखाव को लेकर विशेष अभियान शुरू करने को लेकर कार्य प्रगति पर है. स्थानीय पुलिस और परिवहन विभाग के अधिकारियों को लेकर एक टीम गठन होगा. यह टीम किसी भी शिकायत के आधार पर उस इलाके के जाकर कार्रवाई करेगी. ग्रामीण सड़कों पर भारी वाहनों का परिचालन पर रोक है. पश्चिम बर्दवान जिला, शहर और ग्रामीण का मिश्रित क्षेत्र है. यहां ग्रामीण इलाकों में भी अनेकों उद्योग हैं. शहरी इलाके के कुछ उद्योग भी ग्रामीण इलाके के सड़कों का उपयोग करते हैं. जिससे इन सड़कों की हालत खराब हो जाती है. ऐसे उद्योगों को वैकल्पिक मार्ग का उपयोग करना होगा. जिला में सड़क व्यवस्था काफी अच्छी है. स्टेट हाइवे और नेशनल हाइवे को हर इलाके से जोड़ने के लिए मुख्य सड़क है. उद्योगों को उन सड़कों का उपयोग करना होगा. इससे ग्रामीण सड़कें लंबे समय तक चलेंगी. इसे लेकर मुख्यमंत्री ने भी कड़ाई से निगरानी करने के लिए कहा है. जिस पर अमल किया जा रहा है. गौरतलब है कि ग्रामीण इलाकों की लगभग हर सड़क की हालत खस्ता है. यह सड़क बनने के कुछ दिनों के बाद ही जर्जर हो जाती है और पहली बारिश में ही अनेकों जगह से सड़क का नामोनिशान ही मिट जाता है. ऐसे अनेकों सड़कें हैं जहां से पैदल गुजरना भी कठिन होता है. वाहन में जाने पर जान हलक में अटकी रहती है कि कहीं कोई हादसा न हो जाये. नियमित दुर्घटनाएं भी होती है. सड़कों के निर्माण में सरकारी पैसे का उपयोग होता है लेकिन जनता को इससे कोई फायदा नहीं होता है बल्कि नुकसान अधिक उठाना पड़ता है. इस प्रकार की लगातार मिल रही शिकायतों के बाद मुख्यमंत्री ने इस मामले को संज्ञान में लिया और ग्रामीण सड़कों पर भारी वाहनों के चलने पर रोक लगाने का निर्देश दिया है.ग्रामीण क्षेत्र की पक्की सड़कों का डिजाइन बनता है 20 टन क्षमता के लिए
वेस्ट बंगाल स्टेट रूरल डेवलपमेंट ऑथॉरिटी के वरिष्ठ अभियंता ने बताया कि ग्रामीण इलाकों में सड़कों का डिजाइन 20 टन क्षमता को लेकर बनता है. इससे अधिक वजन की वाहन यदि इसपर पर चलेगी की तो सड़क की हालत बहुत जल्द ही खराब हो जाएगी. उदाहरण के तौर पर बाराबनी विधानसभा क्षेत्र में गौरांडी बाजार से लेकर रूपनारायणपुर आमडांगा मोड़ तक नौ किलोमीटर की सड़क का निर्माण करीब चार करोड़ रुपये की लागत से हो रहा है. इसका डिजाइन 20 टन क्षमता के लिए तैयार किया गया है. स्थानीय लोगों से जानकारी मिली कि इसपर हाइवा डंपर के साथ 16 चक्का का ट्रक करीब 50 से 60 टन का वजन लेकर चलता है. ऐसे में यह सड़क बनने के कितने दिनों तक चल पाएगी, इसका अंदाजा सभी लगा सकते हैं. सड़क टूटने पर निर्माणकारी संस्था की क्या गलती है?
जनता का लगता है रुपया और जनता ही नहीं कर पाती सड़क का उपयोग
समाजसेवी एचएस चट्टोपाध्याय ने कहा कि सरकार जो भी कार्य करती है, उसमें पैसा जनता का होता है. जनता के टैक्स के पैसे से ही सरकार विकास कार्य से लेकर रेवड़ियां बांटने का कार्य करती है. किसी भी इलाके का विकास वहां की सैकड़ों पर निर्भर करता है. ग्रामीण इलाकों की सड़के बनती तो है लेकिन कुछ दिन या सप्ताह के बाद टूटने भी लगती है. ग्रामीण इलाकों के सड़को की सही रखरखाव के लिए जगह-जगह ओवरहेड बैरिकेट बनाना होगा. जिसकी ऊंचाई एक मिनी बस गुजरने के जितना होनी चाहिए. इससे किसी टास्क फोर्स की जरूरत भी नहीं होगी. बड़ी वाहनों पर खुद लगाम लग जायेगा. इससे लाखों लोगों को राहत मिलेगी.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है