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32 दिनों तक निगरानी में रख लूटे “1.65 करोड़

आसनसोल-दुर्गापुर पुलिस कमिश्नरेट (एडीपीसी) के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी रकम की साइबर ठगी की प्रथमिकी बुधवार को दर्ज हुई. आसनसोल नगर निगम के पूर्व सहायक अभियंता व कोर्टमोड़ आसनसोल के निवासी सुकुमार दे को साइबर अपराधियों ने 32 दिनों तक डिजिटल अरेस्ट करके 1.65 करोड़ रुपये लूट लिए. उन्हें डर दिखाया कि उनके आधार नंबर का इस्तेमाल करके मुंबई में सिमकार्ड जारी हुआ था.

आसनसोल.

आसनसोल-दुर्गापुर पुलिस कमिश्नरेट (एडीपीसी) के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी रकम की साइबर ठगी की प्रथमिकी बुधवार को दर्ज हुई. आसनसोल नगर निगम के पूर्व सहायक अभियंता व कोर्टमोड़ आसनसोल के निवासी सुकुमार दे को साइबर अपराधियों ने 32 दिनों तक डिजिटल अरेस्ट करके 1.65 करोड़ रुपये लूट लिए. उन्हें डर दिखाया कि उनके आधार नंबर का इस्तेमाल करके मुंबई में सिमकार्ड जारी हुआ था. इस सिमकार्ड का उपयोग देश विरोधी गतिविधियों में किया गया. इसके बाद पुलिस अधिकारी बनकर डर दिखाते रहे और बचने के लिए अपना सारा पैसा आरबीआइ के एक खाते में रखवाते गये, जांच के बाद सारा पैसा वापस लौटने की बात कही. श्री दे इतने डरे हुए थे कि बैंक अकाउंट खाली होने के बाद वे अपने घर के सारे जेवरात मुथूट फिनकॉर्प में गिरवी रखकर साइबर ठगों को पैसे का भुगतान किया. साइबर अपराधी उन्हें सुप्रीम कोर्ट के अनेकों आदेश, भारतीय रिजर्व बैंक का अनेकों कागजत दिखाकर भरोसा जीता कि वे असली वाले पुलिस ऑफिसर हैं. आखिरकार बुधवार को उनका भ्रम टूटा और वे साइबर क्राइम थाना आसनसोल पहुंचे. वहां भी उन्हें साइबर अपराधियों का कॉल आया. उनकी शिकायत के आधार पर कांड संख्या 48/25 में बीएनएस की धारा 316(2)/318(4)/319(2)/336(3)/338/340(2)/61(2) के तहत प्राथमिकी दर्ज हुई. साइबर क्राइम थाना पुलिस आसनसोल ने इस मामले को राज्य साइबर क्राइम विंग के पास भेजा है. इस ठगी ने पुलिस को भी हैरान कर दिया है.

गौरतलब है साइबर अपराध से बचाव को लेकर पुलिस के साथ-साथ विभिन्न वित्तीय संस्थान और अनेकों निजी संस्थाएं लोगों को जागरूक करने में जुटी हुई है. साइबर अपराध को जड़ से समाप्त करने का एकमात्र रास्ता जागरूकता है. सरकार भी हर पर लोगों को जागरूक करने में जुटी है. मोबाइल फोन पर किसी को भी कॉल करने पर साइबर अपराध से बचने का पाठ सुनाई देता है. इसके बावजूद भी लोग इसके चंगुल में फंस रहे हैं. इसबार का मामला तो काफी गंभीर है. पीड़ित ने 32 दिनों तक चुपचाप बैठकर 1.65 करोड़ रुपये साइबर अपराधियो को दे दिया.

कमिश्नरेट में सबसे बड़ी राशि की ठगी के तीन केस, 1.65 करोड़ बना रिकॉर्ड एडीपीसी में साइबर ठगी के तीन सबसे बड़े मामले, जिसमें सबसे अधिक राशि की ठगी हुई. अबतक पहले नम्बर पर हीरापुर थाना क्षेत्र के कोड़ापाड़ा इलाके के निवासी व पूर्व बैंक अधिकारी दिलीप मुदी थे. जिन्होंने डिजिटल अरेस्ट होकर 1,35,50,000 रुपये गंवाए. आठ सितम्बर 2024 को इसकी शिकायत दर्ज हुई थी. दूसरे नंबर पर दुर्गापुर एरिशन रोड बी-जोन इलाके के निवासी दीपक घोष ने कम अवधि में अधिक मुनाफा कमाने की लालच में 1,33,47,000 रुपये गंवाए. इसकी शिकायत 25 सितंबर 2024 को दर्ज हुई. तीसरे नंबर पर आसनसोल साउथ थाना क्षेत्र के समीरण राय रोड इलाके के निवासी व पूर्व दूरदर्शन कर्मचारी चंचल बंधोपाध्याय ने डिजिटल अरेस्ट रहकर 1,03,85,000 रुपये गंवाएं. यह शिकायत 18 जनवरी 2025 को दर्ज हुई थी. अब यह 1.65 करोड़ रुपये की ठगी सबसे बड़ा मामला बन गया.

पीएफआइ से संबंध होने का दिखाया पूरा दस्तावेज, फिर मनचाहे ढंग से लूटा

श्री दे ने अपनी शिकायत में कहा कि नौ मई 2025 को उनके पास एक अनजान नम्बर से कॉल आया. कॉल करने वाले ने खुद को दूरसंचार विभाग अधिकारी बताया और कहा कि उनके आधार नम्बर का इस्तेमाल मुंबई में एक सिमकार्ड जारी करने के लिए किया गया था. जो अवैध गतिविधियों में शामिल था. इसके बाद ही मुंबई पुलिस का अधिकारी बनकर साइबर ठगों ने उन्हें व्हाट्सएप कॉल किया और बताया कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआइ) से संबंध रखने, मनी लॉन्ड्रिंग करने, आतंकी गतिविधि में शामिल होने का आरोप है. सिर्फ यही नहीं पॉर्न फिल्म बनाने में भी उनकी संलिप्ता पायी गयी है. अपराधियों ने उन्हें सुप्रीम कोर्ट के लेटर हेड, बैंक स्टेटमेंट का का फर्जी कागजात भेजा. जिसमें उनके नाम से केनरा बैंक के एक एटीएम कार्ड में शेष राशि 20,03,91,750 रुपये दिखाया गया था. उनसे सवाल जवाब शुरू हुआ कि इतनी राशि कहां से खाते में आयी. इसके बाद डर दिखाने का सिलसिला शुरू हुआ. उन्हें बताया कि उनके साथ-साथ उनके परिवार के सारे सदस्यों को जेल होगी और सारी संपत्ति जब्त हो जाएगी. जांच में सहयोग करने पर थोड़ी राहत मिलेगी. वे इतने डर गये कि अपराधियों के हर दिशानिर्देश का पालन बिना किसी सवाल के करने लगे. उन्हें बताया गया कि उनके पास जो भी राशि बैंकों में है वह उसे निकाल कर आरबीआइ के एक खाते में जमा कर दें. जिसके लिए अपराधियों ने उन्हें आरबीआइ का गाइडलाइन भी भेजा. अपराधियों ने उन्हें कहा कि जांच चलने तक इसका जिक्र वे किसी से नहीं करेंगे. जांच पूरी हो जाने के बाद सारा पैसा वापस मिल जाएगा. वे लोग उन्हें घर में ही कैद करके रखा. वीडियो कॉल से वे जुड़े रहे. बैंक की राशि खत्म हो जाने के बाद जेवरात गिरवी रखकर पैसे जमा करने के लिए कहा. इस समय वे घर से बाहर निकले. अपने सारे जेवरात मुथूट फिनकॉर्प में बंधक रखकर वे साइबर अपराधियों के खाते में पैसा भेज दिया. अपराधियों ने उन्हें हर दो घंटे बाद-बाद अपना सेल्फी के साथ लोकेशन शेयर करने को कहा ताकि वे उनलोगों की निगरानी में रहे. 32 दिनों तक यह कारनामा चला. अपराधियों ने उनसे 40 लाख रुपये और जमा करने को कहा. इसबार उनलोगों ने उन्हें आरबीआइ के पूर्व गवर्नर सी. रंगराजन का हस्ताक्षर किया हुआ आदेश भेजा. इसपर उनके दिमाग में बात गयी कि पूर्व गवर्नर क्यों आदेश दे रहे हैं? इसके बाद वे साइबर क्राइम थाना में पहुंचे और पूरी कहानी बतायी. साइबर क्राइम थाना में रहने के दौरान भी अपराधियों का फोन आया.

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