102 वर्षीय रथ को नये रूप में लौटाने की तैयारी, मेले में उमड़ी अपार भीड़
रानीगंज. ऐतिहासिक सियारसोल राजपरिवार के 102 वर्षीय पीतल के रथ का इस वर्ष दुर्गा पूजा की त्रयोदशी के दिन विधिवत रूप से विसर्जन किया जायेगा. इसके बाद कारीगरों द्वारा इस रथ को एक नये रंग-रूप में पुनः सजाया जायेगा. शुक्रवार को जगन्नाथ देव की रथ यात्रा के अवसर पर हजारों श्रद्धालुओं ने इस प्राचीन रथ की रस्सियों को आखिरी बार खींचा. यह रथ नये महल से पुराने महल तक खींचा गया और रथ खींचने के दौरान श्रद्धालुओं का उत्साह देखने लायक था.विशिष्ट तिथि के कारण रथ यात्रा का समय सीमित
इस बार रथ खींचने का समय ज्योतिषीय गणना के अनुसार सुबह 7:30 से 8:30 बजे के बीच निर्धारित किया गया था, जिसके कारण रथ यात्रा जल्दी समाप्त हो गई. रानीगंज के इस ऐतिहासिक रथ को देखने के लिए दूर-दराज से श्रद्धालु पहुंचे. हर साल की तरह इस बार भी रथ यात्रा के साथ 10 दिनों का भव्य मेला भी शुरू हो गया है.राजपरिवार और पीतल के रथ का गौरवशाली इतिहास
रानीगंज के सियारसोल राजपरिवार की रथ यात्रा की परंपरा वर्ष 1923 से भी पहले की है. पहले यह रथ लकड़ी का होता था, जिसे पुराने महल से नये महल तक ले जाया जाता था. लेकिन आग लगने की एक घटना के बाद, राजपरिवार के सदस्य प्रमथनाथ मालिया ने कोलकाता के चितपुर से पीतल का रथ बनवाया. इस रथ पर कृष्ण लीला, रामायण-महाभारत के प्रसंगों और देवी-देवताओं की मूर्तियां उकेरी गयी हैं. रथ के शीर्ष पर राजपरिवार के मुख्य देवता दामोदर चंद्र जी विराजमान रहते हैं.इस पीतल के रथ की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इसे साल भर नए महल के सामने खुले में, निगरानी में रखा जाता है. पहले यह रथ पुराने महल से नये महल में ले जाया जाता था, लेकिन हाल के वर्षों में दिशा उलटी कर दी गई है.
रथ यात्रा का मेला और श्रद्धा का संगम
पुरी की परंपरा से प्रेरित यह रथ यात्रा रानीगंज में एक भव्य मेले के साथ होती है. प्राचीन काल में यह मेला कृषि उपकरणों के लिए प्रसिद्ध था, जबकि आज यह आधुनिक वस्तुओं का केंद्र बन गया है. मेले में इस बार विदेशी पक्षी, नस्लीय कुत्ते, पौधे, अचार, खेल-खिलौने, सौंदर्य प्रसाधन और खाने-पीने की ढेरों दुकानें सजी हैं. मेला पूरे 10 दिन चलेगा.
अंतिम यात्रा में उमड़ा जनसैलाब
इस वर्ष की अंतिम यात्रा में सियारसोल राजपरिवार के वंशज विट्ठल लाल मालिया के नेतृत्व में हजारों श्रद्धालुओं ने रथ की रस्सियां खींचीं. रथ को उल्टा रथ के दिन पुनः नये महल में लाया जायेगा. मेले के दौरान प्रशासन द्वारा सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गये थे.
श्रद्धालुओं के लिए यह रथ यात्रा भावनात्मक रूप से विशेष थी, क्योंकि यह आखिरी बार था जब 102 साल पुराने इस पीतल के रथ को उसके वर्तमान स्वरूप में खींचा गया. अब इस रथ को नया जीवन देने के लिए शिल्पकार काम शुरू करेंगे.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है