शिवशंकर ठाकुर, आसनसोल.
टीन एज यानी किशोरवय बच्चों में सहनशीलता व धैर्य की कमी के कारण उनके परिवार के साथ समाज में भी समस्याएं बढ़ रही है. बच्चों में नशे की लत, अपराध करने की प्रवणता, घर छोड़ कर भगाना, आत्महत्या करने जैसी कदम उठाना आम हो गया है. हर दिन लगभग सभी थानों में इनसे जुड़ी शिकायतें आती हैं और पुलिस कार्रवाई करती है. एक मामले में पिता के डांटने पर 15 साल का बच्चा घर छोड़ कर भाग गया और महीनों बाद पुलिस ने उसे नेपाल से बरामद किया. सभी बच्चे इतने खुशनसीब नहीं होते, अनेकों बच्चे वर्षों से लापता हैं. घरवाले उनके इंतजार में दिन बिता रहे हैं और पुलिस थानों के चक्कर लगा रहे हैं. वर्तमान में इस गंभीर समस्या के कारण व समाधान को लेकर काजी नजरुल विश्वविद्यालय(केएनयू) में परामर्श और सकारात्मक मनोविज्ञान केंद्र के मुख्य समन्यवक (अतिरिक्त प्रभार)-सह-अनुप्रयुक्त मनोविज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ शुभब्रत पोद्दार से बातचीत में उन्होंने इस पर पूरी जानकारी दी.क्यों उग्र हो रहे बच्चे
डॉ. पोद्दार ने कहा कि टीन एज के दौरान बच्चों में जैविक और मनोवैज्ञानिक बदलाव होता है. इस उम्र के अधिकांश बच्चों में माता-पिता और शिक्षक से ज्यादा दोस्तों का प्रभाव आ जाता है. दोस्त कैसे हैं? यह काफी अहम होता है. दोस्तों के स्टेटस के साथ ताल मिलाकर चलने की मानसिक स्थिति बनती है. दोस्त के पास यह सामान है तो मेरे पास यह क्यों नहीं है? यह उनके अंदर जन्म लेता है और नहीं मिलने पर उनकी जिद बढ़ती जाती है. इस उम्र के बच्चे अपने उपर किसी भी ऑथोरिटी का हस्तक्षेप बर्दास्त नहीं करना चाहते हैं और उनके अंदर विद्रोही रवैया तैयार होता है. यह इस उम्र में होना आम है. आज के समय में मीडिया (सिनेमा, ओटीटी, वेव सीरीज, मोबाइल फोन) आदि का प्रभाव काफी ज्यादा है. एक क्लिक में वे सबकुछ देखते हैं, एक्सपोजर बहुत ज्यादा है. जो पहले के समय में नहीं के बराबर था. जिसके कारण उनके विचारों के साथ तालमेल नहीं बैठने पर ही वे लोग विद्रोह करते हैं. यह विद्रोह कितना उग्र होगा, इसका प्रभाव अलग-अलग बच्चों पर अलग-अलग तरह से होता है. इस दौरान अथॉरिटी को नहीं मानने की प्रवणता हर बच्चे में तैयार होती है. तकनीकी उन्नति का भी इसमें कुछ हद तक प्रभाव है. जिसके कारण यह ज्यादा देखने को मिल रहा है.
दैहिक दंड देने से बचें और पढ़ाएं नैतिकता का पाठ
डॉ पोद्दार ने कहा कि टीन एज के दौरान बच्चे मानसिक द्वंद से गुजरते हैं. यह सभी में होता है. इस दौरान उन्हें सभी तरीके से नियंत्रण करना हर अभिभावक की सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है. क्योंकि इसका असर समाज पर भी पड़ता है. बच्चों को शारीरिक दंड देने से हमेशा बचें. इससे उनके मानसिक स्थिति पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. ऐसे में वे अपना हमदर्द बाहर तलाशने लगते हैं. शासन करने के दौरान उन्हें अपमानित न करने और न ही किसी अन्य बच्चे की तुलना उससे करें. यह भी उनके दिमाग में नकारात्मक प्रभाव पैदा करता है. उन्हें नैतिकता का पाठ सही तरीके से सिखाएं और हर समय पॉजिटिव एटीट्यूट के साथ ही उससे बात करें. हर बच्चे में एक विशेष काबिलियत होती है, जिसे पहचानें और उसके लिए प्रोत्साहित करें. यह कुछ जरूरी टिप्स अपनाने से बच्चों में उग्रता कम होगी और सहनशीलता बढ़ेगी. जिसके उनका भविष्य बेहतर होगा और गलत दिशा में नहीं जाएंगे.
हर दिन औसतन दो नाबालिग बच्चों के अपहरण की दर्ज होती है प्राथमिकी
आसनसोल-दुर्गापुर पुलिस कमिश्नरेट (एडीपीसी) क्षेत्र में औसत हर दिन एक-दो नाबालिग बच्चों के अपहरण की शिकायत दर्ज होती है. जिसमें पुलिस कार्रवाई करती है. पुलिस के वरिष्ठ ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस हैं कि नाबालिग बच्चों के लापता होने की शिकायत मिलने के 24 घंटे के अंदर ही निर्दिष्ट मामला दर्ज करना होगा. इसके कारण बच्चों के लापता होने की शिकायत पर अपहरण का केस दर्ज होता है. अधिकतर मामलों में बच्चों की बरामदगी कुछ दिनों के अंदर ही हो जाती है. बाद में पता चलता है कि किसी बात को लेकर माता-पिता या घर के किसी सदस्य की डांट-फटकार के बाद ये बच्चे घर छोड़ कर भाग गये हैं. घर से निकलने के बाद इन बच्चों को काफी कठिनाई झेलनी पड़ती है. फिर भी बच्चों के घर छोड़ कर भागने का सिलसिला जारी है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है