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योग से अक्षमता को हरा सशक्तीकरण की मिसाल बनीं अर्पिता

कोलकाता से करीब 30 किलोमीटर दूर उत्तर 24 परगना के बैरकपुर की रहने वाली अर्पिता की जिंदगी एक झटके में बदल गयी थी.

20 साल की उम्र में एक सड़क हादसे में गंवा दिये थे अपने दोनों पैर

विकास कुमार गुप्ता, कोलकाता

मात्र 20 साल की उम्र में एक भयावह सड़क हादसे में अपने दोनों पैर गंवाने के बाद 35 वर्षीय अर्पिता रॉय ने योग को अपनी जिंदगी का आधार बनाया और खुद को सशक्त किया. अब वह इसी योग शिक्षा के माध्यम से एक स्वस्थ और मजबूत समाज गढ़ने की कोशिश में जुटी हैं. कोलकाता से करीब 30 किलोमीटर दूर उत्तर 24 परगना के बैरकपुर की रहने वाली अर्पिता की जिंदगी एक झटके में बदल गयी थी. अर्पिता बताती हैं, “उस घटना ने मेरी आत्मा को तोड़ दिया था. अगर उस समय हमारे पास पर्याप्त पैसा होता तो बेहतर इलाज से मेरे पैर बच सकते थे.” लेकिन उन्होंने जिंदगी की हकीकत को स्वीकारा. चार महीने अस्पताल में रहने के बाद उन्होंने अपने परिवार पर बोझ बनने के बजाय आत्मनिर्भर बनने का लक्ष्य निर्धारित किया.

योगा ट्रेनर बनकर तैयार कर रही हैं शिक्षकों की टीम

अर्पिता अब एक तरफ लोगों को योग के महत्व को समझाकर उन्हें योग सिखाती हैं, वहीं सोशल मीडिया के माध्यम से भी लोगों को प्रतिदिन योग करने के लिए प्रेरित करती हैं. उनके इस कार्य से प्रभावित होकर उन्हें हैदराबाद के एक स्कूल में अवसर मिला. अब वह बैरकपुर के बाद हैदराबाद में योग ट्रेनर बनकर योग शिक्षकों को प्रशिक्षित कर रही हैं. उनका लक्ष्य एक ऐसी टीम तैयार करना है, जो देश के विभिन्न राज्यों में फैलकर लोगों को योग सिखाकर एक स्वस्थ समाज गढ़ने में अपना योगदान दे सके.

कृत्रिम अंगों के साथ योग से मिली सफलता

अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद अर्पिता के शरीर में दो कृत्रिम पैर लगाये गये. डॉक्टरों ने उन्हें इन कृत्रिम अंगों पर चलना सीखने और शरीर का वजन संतुलित रखने की सलाह दी. साथ ही प्रतिदिन एक घंटे खड़े रहने का सुझाव दिया. अर्पिता ने अपना पूरा ध्यान इन कृत्रिम अंगों पर केंद्रित कर दिया, क्योंकि उन्हें भरोसा था कि इनके सहारे वह फिर से चल पायेंगी. इसके लिए उन्होंने योग का सहारा लिया. वर्ष 2015 से 2019 तक अर्पिता ने विभिन्न प्रकार की योग विद्याएं अर्जित कीं. इस दौरान उन्होंने महसूस किया कि जब परिस्थितियां पक्ष में नहीं होतीं, तो इंसान अत्यधिक कमजोर पड़ जाता है. लेकिन अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और योग के माध्यम से वह शारीरिक दर्द पर काबू पाने में सफल रहीं और कुछ ही महीनों के अभ्यास के बाद फिर से चलने लगीं.

योग के महत्व को समझकर स्वस्थ समाज गढ़ने का संकल्प

अर्पिता कहती हैं कि योग सीखने और उसे अपनाने के बाद उनके जीवन में काफी सकारात्मक बदलाव आया. वह अब अपनी जिंदगी को पूरी तरह से नया महसूस करती हैं. उनकी सफलता को देखकर लोग उनसे योग सीखने लगे और खुद को भी फिट रखने लगे. कोविड-19 महामारी से पहले उनके पास 25 शिष्य थे, जिनमें कुछ दिव्यांग भी शामिल थे. उन्होंने अपनी असलियत को बिना छिपाये अपने कृत्रिम अंगों को लंबी स्कर्ट के नीचे छिपाये बिना सोशल मीडिया पर कदम रखा. वह अब लोगों को योग के महत्व को समझाते हुए नियमित रूप से सोशल मीडिया पर पोस्ट करती हैं.

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