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पूर्वी भारत में 16 करोड़ की जीन थेरेपी पानेवाली पहली बच्ची बनी अश्मिका दास

महानगर के मल्टी-स्पेशियलिटी हेल्थकेयर संस्थान पियरलेस अस्पताल में यह थेरेपी सफलतापूर्वक दी गयी.

पीयरलेस अस्पताल में एसएमए टाइप वन से पीड़ित 16 माह की बच्ची को दी गयी जीन थेरेपी

कोलकाता. स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) टाइप वन से पीड़ित 16 माह की एक बच्ची पूर्वी भारत में क्राउड फंडिंग के माध्यम से 16 करोड़ रुपये की जीन थेरेपी प्राप्त करने वाली पहली बच्ची बन गयी है. वह नदिया के रानाघाट की रहनेवाली है. महानगर के मल्टी-स्पेशियलिटी हेल्थकेयर संस्थान पियरलेस अस्पताल में यह थेरेपी सफलतापूर्वक दी गयी. क्राउड फंडिंग अभियान से सात महीने से कम समय में नौ करोड़ से अधिक की राशि जुटायी गयी. इस प्रयास में भारत और विदेशों से 65,000 से अधिक दानदाता शामिल हुए. स्वयंसेवकों, चिकित्सा पेशेवरों और क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म के साथ साझेदारी में उन्होंने एक अभियान शुरू किया, जिसने न केवल आवश्यक धन जुटाया, बल्कि भारत में कई लोगों में एसएमए के बारे में जागरूकता भी फैलायी. अश्मिका के पिता शुभंकर दास ने कहा कि जब हमने पहली बार निदान सुना, तो हमारी दुनिया ढह गयी. लेकिन अजनबियों, समुदायों और उन लोगों से जो हमें कभी नहीं मिले थे, से हमें जो समर्थन मिला. उसने हमारा विश्वास फिर से जगाया. हमारी बेटी को जीवन का दूसरा मौका मिला. पियरलेस अस्पताल में बाल चिकित्सा विभाग की क्लिनिकल डायरेक्टर डॉ संयुक्ता डे ने कहा कि हालांकि हमारी टीम द्वारा यह थेरेपी पहले भी दी जा चुकी है. लेकिन पूर्वी भारत में यह पहली बार है कि दुनिया की सबसे महंगी दवा और इंजेक्शन जोलगेनेस्मा को केवल क्राउडफंडिंग के माध्यम से वितरित किया गया है. यह थेरेपी एसएमए टाइप वन से पीड़ित बच्चे के लिए जीवन बदलने वाली हो सकती है.

क्या है एसएमए टाइप वन

स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी टाइप वन एक आनुवंशिक न्यूरोमस्कुलर बीमारी है, जो एसएमएन वन जीन में उत्परिवर्तन के कारण होती है, जो लगभग 10,000 जीवित जन्मों में से एक को प्रभावित करती है. भारत में वाहक आवृत्ति आश्चर्यजनक रूप से अधिक है, जिसमें लगभग 50 में से एक व्यक्ति में दोषपूर्ण जीन होता है. यदि दोषपूर्ण जीन वाले दो व्यक्ति विवाह करते हैं, तो उनके एसएमए से पीड़ित बच्चे को जन्म देने की संभावना चार में से एक होती है. भविष्य इस स्थिति के बारे में जागरूकता बढ़ाने और समय पर निदान और उपचार तक पहुंच में निहित है. हस्तक्षेप के बिना, शिशु हिलने, निगलने और अंततः सांस लेने की क्षमता खो देते हैं. 2021 में, भारत सरकार ने दुर्लभ रोगों के लिए राष्ट्रीय नीति के तहत एसएमए को शामिल किया, लेकिन फंडिंग और पहुंच अभी भी बड़ी बाधा है.

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