संवाददादाता, कोलकाता.
भाजपा ने राज्य सरकार पर राजभवन की शक्तियों में हस्तक्षेप करने का गंभीर आरोप लगाया है. यह आरोप 24 जून को विधानसभा सत्र के अंतिम दिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के अधीन भूमि एवं भूमि सुधार विभाग में संशोधन विधेयक पारित होने के बाद लगाया गया है. भाजपा संसदीय दल का दावा है कि इस विधेयक के पारित होने से राज्य सरकार ने भूमि संबंधी मामलों में आम लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए राज्यपाल के पास मौजूद शक्ति छीन ली है. विगत सोमवार को स्पीकर बिमान बनर्जी के आवास पर मिनट्स कमेटी की बैठक हुई थी, जिसमें सत्र समाप्त होने से एक दिन पहले यह निर्णय लिया गया कि वेस्ट बंगाल लैंड रिफॉर्म्स एंड टेनेंसी ट्रिब्यूनल (संशोधन) विधेयक 2025 को पारित कराया जायेगा. इसी के तहत, विधानसभा के मॉनसून सत्र के आखिरी दिन इस विधेयक को पारित किया गया.
भाजपा ने किया सत्र का बहिष्कार
विगत सोमवार को स्पीकर ने भाजपा के चार विधायकों को विधानसभा सत्र से निलंबित कर दिया था. इसके विरोध में भाजपा संसदीय दल ने मंगलवार को सत्र के अंतिम दिन पूरे सत्र का बहिष्कार किया. यही कारण रहा कि इस विधेयक पर चर्चा में भाजपा के किसी विधायक ने भाग नहीं लिया. राज्य मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य ने विधानसभा में यह विधेयक पेश किया था. भाजपा संसदीय दल ने आरोप लगाया कि भूमि न्यायाधिकरण में सदस्यों की नियुक्ति का अधिकार लंबे समय से राज्यपाल के हाथों में था, लेकिन इस संशोधन विधेयक को पारित करके राज्य सरकार ने वह अधिकार अपने हाथ में ले लिया है.
भू-माफियाओं का कब्जा, अब न्याय भी छिनेगा : भाजपा
आसनसोल दक्षिण से भाजपा विधायक अग्निमित्र पाल ने शिकायती लहजे में कहा कि पश्चिम बंगाल की पूरी जमीन पर तृणमूल से जुड़े भू-माफियाओं का कब्जा है या फिर तृणमूल नेताओं के आशीर्वाद से यह कब्जा चल रहा है. थाने में शिकायत दर्ज कराने के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकल रहा है. आम लोग न्याय की उम्मीद में न्यायाधिकरण जा रहे हैं. अब वह मौका भी छिन गया है. अब लोग अपनी जमीन संबंधी शिकायतें लेकर कहां जायेंगे? जो तीन सदस्यीय टीम बनायी गयी है, उसमें से दो सरकार समर्थक हैं, तो न्याय कहां से मिलेगा? इस विधेयक के पारित होने से न्याय मिलने की पारदर्शिता काफी हद तक खत्म हो जायेगी.
तृणमूल ने आरोपों को नकारा
लालगोला से तृणमूल विधायक मोहम्मद अली ने भाजपा विधायक के इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया. उन्होंने विधानसभा सत्र में इस विधेयक के बारे में विस्तार से बात की. उनका कहना है कि भाजपा संसदीय दल द्वारा लगाये गये आरोप किसी भी तरह से सही नहीं हैं. इस मामले में संशोधन विधेयक पारित करके सत्ता का विकेंद्रीकरण किया गया है.
उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने कानून में संशोधन करके न्यायाधिकरण में नियुक्त सदस्यों के चयन की जिम्मेदारी अपने हाथ में ले ली है. अगर यह संशोधन विधेयक लागू हो जाता है तो राज्यपाल के पास न्यायाधिकरण में सदस्यों की नियुक्ति का कोई अधिकार नहीं रह जायेगा. प्रशासनिक हलकों में यह सवाल उठ रहा है कि अगर राज्य सरकार विधेयक पारित करके राजभवन की शक्ति अपने हाथ में लेना भी चाहती है, तो यह कहां तक संभव होगा, क्योंकि विधानसभा में विधेयक को बिना किसी हिचकिचाहट के पारित कर राजभवन भेज दिया गया है.
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