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इतिहास के प्रश्नपत्र में स्वतंत्रता सेनानियों को ‘आतंकवादी’ कहने पर हुआ विवाद

इस घटना के बाद राजनीतिक गलियारों में कड़ी प्रतिक्रिया देखने को मिली, जिसके चलते विश्वविद्यालय को सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी पड़ी और इसे मुद्रण त्रुटि बताया.

विश्वविद्यालय को सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी पड़ी और इसे मुद्रण त्रुटि बताया

कोलकाता. राज्य के सरकारी विद्यासागर विश्वविद्यालय में इतिहास के एक प्रश्नपत्र में भारतीय क्रांतिकारियों को ‘आतंकवादी’ बताये जाने पर विवाद खड़ा हो गया है. इस घटना के बाद राजनीतिक गलियारों में कड़ी प्रतिक्रिया देखने को मिली, जिसके चलते विश्वविद्यालय को सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी पड़ी और इसे मुद्रण त्रुटि बताया. विवादित प्रश्न स्नातक (प्रतिष्ठा-इतिहास) के छठे सेमेस्टर की परीक्षा (बंगाली में) के 12वें प्रश्न में था. इसमें विद्यार्थियों से ब्रिटिश शासन के दौरान ‘आतंकवादियों द्वारा मारे गये’ मेदिनीपुर के तीन जिला मजिस्ट्रेटों के नाम पूछे गये थे. ये तीन मजिस्ट्रेट जेम्स पेडी (1931), रॉबर्ट डगलस (1932) और बर्नार्ड बर्ज (1933) थे, जिन्हें मेदिनीपुर में उनके अत्याचारों के लिए भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने गोली मारी थी. उदाहरण के लिए पेडी की हत्या बिमल दासगुप्ता और ज्योतिजीवन घोष ने की थी. विश्वविद्यालय ने बाद में इस त्रुटि को स्वीकार करते हुए इसे प्रूफरीडिंग में हुई चूक बताया. कुलपति दीपक कर ने शुक्रवार को कहा : यह एक मुद्रण संबंधी त्रुटि थी, जो प्रूफरीडिंग के दौरान छूट गयी. एक बार प्रश्नपत्र वितरित कर दिये जाने के बाद इसे ठीक करने का समय नहीं था. मैंने परीक्षा नियंत्रक को एक विस्तृत रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा है.

राजनीति विज्ञान की परीक्षा रद्द

विश्वविद्यालय को और अधिक शर्मिंदगी का सामना तब करना पड़ा जब शुक्रवार को स्नातक (प्रतिष्ठा-राजनीति विज्ञान) की परीक्षा रद्द कर दी गयी, क्योंकि प्रश्नपत्र ””पाठ्यक्रम से बाहर”” का था. विश्वविद्यालय प्रशासन ने कहा कि अगले हफ्ते दोबारा परीक्षा करायी जायेगी.

राजनीतिक प्रतिक्रिया और आरोप-प्रत्यारोप

शिक्षाविद पबित्र सरकार ने इस गलती की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि स्वतंत्र भारत में ब्रिटिश दमन से लड़ने वाले युवाओं को आतंकवादी कहना अकल्पनीय है. यह शब्द औपनिवेशिक शासकों द्वारा इस्तेमाल किया जाता था. पश्चिम बंगाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने ””””एक्स”” पर एक पोस्ट में इस उल्लेख को बेहद अपमानजनक बताया. उन्होंने आरोप लगाया कि यह कोई अकेली गलती नहीं है, बल्कि हमारे इतिहास को जानबूझकर विकृत किया जाना है. अधिकारी ने यह भी दावा किया कि 2023 में भी ऐसी ही गलती हुई थी, जिसके लिए इतिहास विभाग के प्रमुख और तृणमूल कांग्रेस से जुड़े डॉ निर्मल कुमार महतो जिम्मेदार थे और इसके बावजूद उन्हें पश्चिम बंगाल कॉलेज एवं विश्वविद्यालय प्राध्यापक संघ में संयुक्त सचिव के पद पर पदोन्नत कर दिया गया. वहीं, तृणमूल कांग्रेस के प्रदेश महासचिव कुणाल घोष ने इस विवाद से पार्टी को अलग करते हुए कहा कि प्रश्न कुछ लोगों ने तय किये थे, शिक्षा विभाग ने नहीं. इस बात की जांच होनी चाहिए कि प्रश्नपत्र को किसने मंजूरी दी. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सुजान चक्रवर्ती और कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने भी इस शब्दावली की निंदा की और इसे स्वतंत्र भारत में अकल्पनीय बताया. उन्होंने इस तरह की चूक की अनुमति देने के लिए तृणमूल सरकार को जिम्मेदार ठहराया.

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