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बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर हो रहा जबरन धर्मांतरण

इस्कॉन कोलकाता के उपाध्यक्ष और प्रवक्ता राधारमण दास ने सोमवार को बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही मॉब लिंचिंग और जबरन धर्मांतरण की घटनाओं पर गहरी चिंता व्यक्त की.

इस्कॉन कोलकाता के उपाध्यक्ष ने पड़ोसी देश के मौजूदा हालात पर जतायी चिंता

संवाददाता, कोलकाताइस्कॉन कोलकाता के उपाध्यक्ष और प्रवक्ता राधारमण दास ने सोमवार को बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही मॉब लिंचिंग और जबरन धर्मांतरण की घटनाओं पर गहरी चिंता व्यक्त की. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी को चौंकाने वाला बताया और इसे मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन करार दिया. राधारमण दास ने कहा कि बांग्लादेश में जो कुछ हो रहा है, उसे देखकर दिल दहल जाता है. उससे भी ज्यादा हैरानी की बात यह है कि पूरी दुनिया खामोश है. हर दिन अल्पसंख्यकों की हत्या, महिलाओं और नाबालिग लड़कियों का अपहरण हो रहा है. जब पीड़ित पुलिस के पास जाते हैं, तो उनकी शिकायत तक दर्ज नहीं होती. उन्होंने आगे कहा कि लोगों को उनके धर्म के कारण नौकरियों से निकाला जा रहा है. जबरन धर्मांतरण बड़े पैमाने पर हो रहा है. यह सिर्फ हिंदुओं पर हमला नहीं है, बल्कि ईसाई और बौद्ध समुदाय भी अत्याचार झेल रहे हैं. फिर भी कोई अंतरराष्ट्रीय विरोध या निंदा सामने नहीं आ रही है.

उन्होंने चिन्मय प्रभु का उदाहरण देते हुए बताया कि उन्हें झूठे मामलों में जेल में डाल दिया गया है. उन्हें जमानत मिलने के बाद भी नये आरोप लगाकर फिर से जेल भेज दिया गया. यह न्याय का खुला उल्लंघन है.

लगाया आरोप- एक साल में 637 लोग हुए मॉब लिंचिंग का शिकार

उन्होंने कहा कि राधारमण दास ने कनाडा स्थित ग्लोबल सेंटर फॉर डेमोक्रेटिक गवर्नेंस की हालिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि अगस्त 2024 से जुलाई 2025 के बीच कम से कम 637 लोग भीड़ हिंसा का शिकार हुए, जिनमें 41 पुलिस अधिकारी भी शामिल हैं. जबकि 2023 में यह संख्या केवल 51 थी, यानी मॉब लिंचिंग की घटनाओं में बारह गुना से अधिक वृद्धि हुई है. रिपोर्ट के अनुसार, 4 अगस्त 2024 को जशोर के एक होटल में 24 लोगों को जिंदा जला दिया गया था. वहीं 25 अगस्त 2024 को रूपगंज के गाजी टायर्स कारखाने में आग लगने से 182 लोगों की जान चली गयी. रिपोर्ट का कहना है कि मृतकों की वास्तविक संख्या और अधिक हो सकती है, क्योंकि कई नाम दर्ज नहीं हो सके हैं और मीडिया पर कड़ी सेंसरशिप लगी हुई है. रिपोर्ट में चेतावनी दी गयी है कि यह स्थिति बांग्लादेश की राजनीतिक अस्थिरता और कानून-व्यवस्था की गहरी विफलता को दर्शाती है. अगस्त 2024 में हुए विद्रोह और उसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना की सत्ता से बेदखली के बाद हालात और भी बिगड़ गये हैं.

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