कर्मचारियों को पेंशन व पदोन्नति से वंचित करने पर जतायी चिंता
कोर्ट ने रिक्त पदों पर वर्षों से संविदा पर काम कर रहे कर्मियों को स्थायी रूप से नियुक्त करने का दिया आदेश
संवाददाता, कोलकाता. कलकत्ता हाइकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि सरकारी विभागों को केवल संविदा कर्मियों के भरोसे नहीं चलाया जा सकता. अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि रिक्त पदों पर वर्षों से संविदा के आधार पर काम कर रहे कर्मचारियों को स्थायी रूप से नियुक्त किया जाये और उन्हें सभी उचित लाभ व पदोन्नति दी जाये. हाल के दिनों में सरकारी संस्थानों में रिक्तियों के बावजूद संविदा के आधार पर नियुक्ति का चलन तेजी से बढ़ा है. संविदा कर्मचारियों को स्थायी करने के बजाय, उन्हें वर्षों तक संविदा पर ही काम कराया जा रहा है. भले ही उनकी कार्यशैली स्थायी कर्मचारियों जैसी ही हो, लेकिन उन्हें स्थायी कर्मचारियों को मिलने वाले लाभों से वंचित रखा जाता है. हाइकोर्ट ने इसे अस्वीकार्य मानते हुए इस स्थिति को जारी न रखने का फैसला सुनाया है.यह फैसला राज्य चिकित्सा सेवा निगम में संविदा के आधार पर काम कर रहे इंजीनियरों द्वारा दायर एक मामले की सुनवाई के दौरान आया है. न्यायमूर्ति पार्थसारथी चटर्जी ने अपने फैसले में कहा कि स्थायी कर्मचारियों के लिए रिक्तियां होने के बावजूद उन्हें संविदा के आधार पर काम कराकर वंचित नहीं किया जा सकता. अदालत का मानना है कि सरकारी या सरकारी प्रायोजित संगठनों में कर्मचारियों को पेंशन और पदोन्नति जैसे लाभों से वंचित करने के प्रयास में अंशकालिक नौकरी, आउटसोर्सिंग या परियोजना आधारित नियुक्ति का चलन बढ़ रहा है. हाइकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वर्षों से काम कर रहे इन इंजीनियरों को उचित पदों पर नियुक्त किया जाये और उन्हें उचित लाभ देकर पदोन्नति दी जाये. इसके लिए सरकार को 12 सप्ताह का समय दिया गया है. यह उल्लेखनीय है कि 2014 में राज्य चिकित्सा सेवा निगम में सहायक अभियंता और उप सहायक अभियंता के पदों के लिए पहली भर्ती अधिसूचना जारी की गयी थी. इन नियुक्तियों में 20,000 से 30,000 रुपये मासिक वेतन पर अनुबंध के आधार पर भर्तियां की गयी थीं. इसके पहले और बाद में भी इसी तरह से नियुक्तियां की गयीं. 2014 की अधिसूचना के तहत नियुक्त लोगों ने हाइकोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि अनुबंध कर्मचारियों की नियुक्ति के फार्मूले के अनुसार उनका रोजगार दो साल के लिए होता है. उनके वकील एकरामुल बारी ने अदालत में तर्क दिया कि कानून के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति लगातार दो साल तक अनुबंध के आधार पर सफलतापूर्वक काम करता है, तभी उसे स्थायी नियुक्ति के लिए योग्य माना जाता है. हालांकि, इस मामले में राज्य सरकार साल दर साल विभिन्न पदों पर कार्यरत इंजीनियरों को सभी विशेषाधिकारों से वंचित कर रही है और उन्हें ठेके पर काम करवा रही है.
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