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तलाकशुदा पत्नी का गुजारा भत्ता दोगुना कर किया ₹50,000 प्रति माह

भत्ते की मात्रा को चुनौती देने वाली अपील पर शीर्ष अदालत का फैसला

कोलकाता. सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के एक मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए पत्नी को दिये जाने वाले स्थायी गुजारा भत्ते की राशि को बढ़ाकर 50,000 रुपये प्रति माह कर दिया है. यह राशि कलकत्ता हाइकोर्ट द्वारा पहले तय की गयी राशि से लगभग दोगुनी है. जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने इस मामले में अपीलकर्ता-पत्नी की याचिका पर सुनवाई की. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पत्नी ने तलाक के बाद दूसरी शादी नहीं की है और वह स्वतंत्र रूप से रह रही है. इसलिए वह उस स्तर के भरण-पोषण की हकदार है, जो विवाह के दौरान उसके जीवन स्तर को दर्शाता हो और उसके भविष्य को उचित रूप से सुरक्षित कर सके. यह मामला विवाह के अपूरणीय रूप से टूटने के बाद दिये गये गुजारा भत्ते की मात्रा को चुनौती देने वाली अपील से संबंधित था. दंपती का विवाह 1997 में हुआ था और 1998 में उनका एक बेटा हुआ. वे 2008 में अलग हो गये थे. कलकत्ता हाईकोर्ट ने मानसिक क्रूरता और विवाह के अपूरणीय विघटन के आधार पर तलाक का आदेश दिया था और 20,000 रुपये प्रति माह का स्थायी गुजारा भत्ता निर्धारित किया था, जिसमें हर तीन साल में पांच प्रतिशत की वृद्धि का प्रावधान था. इससे असंतुष्ट होकर पत्नी ने गुजारा भत्ता बढ़ाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उसने तर्क दिया कि उसके पति की वित्तीय स्थिति को देखते हुए यह राशि अपर्याप्त है. सुनवाई के दौरान पत्नी ने बताया कि पति, जो कोलकाता में एक होटल प्रबंधन संस्थान में कार्यरत है, की मासिक शुद्ध आय 1.64 लाख है. उसने तर्क दिया कि दिया गया गुजारा भत्ता विवाह के दौरान उसके जीवन स्तर से मेल खाने के लिए बहुत कम है और वर्तमान जीवन-यापन की लागत को भी नहीं दर्शाता है. पति ने अपनी दलील में कहा कि उसकी दूसरी पत्नी, आश्रित परिवार और वृद्ध माता-पिता सहित उसके पास पर्याप्त वित्तीय जिम्मेदारियां हैं. उसने यह भी बताया कि उनका बेटा अब 26 साल का हो गया है और आर्थिक रूप से स्वतंत्र है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिवादी-पति की आय, वित्तीय खुलासे और पिछली कमाई का आकलन करते हुए पाया कि वह अधिक राशि का भुगतान करने की स्थिति में है. न्यायालय ने महंगाई के दबाव और पत्नी की अपने एकमात्र वित्तीय समर्थन के रूप में भरण-पोषण पर निरंतर निर्भरता को ध्यान में रखा. इन सभी पहलुओं पर विचार करते हुए कोर्ट ने गुजारा भत्ता बढ़ाकर 50,000 रुपये प्रति माह कर दिया, जिसमें हर दो साल में पांच प्रतिशत की वृद्धि का प्रावधान भी शामिल है.

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