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विलुप्त हो रही मछलियों की प्रजातियों के संरक्षण पर जोर

राज्य सरकार विलुप्त हो रहीं मछलियों की 33 प्रजातियों के संरक्षण पर जोर दे रही है. इस परियोजना के तहत उक्त प्रजाति के संरक्षण के लिए की मछली पालन पर जोर दिया जा रहा है.

राज्य सरकार ने हाइब्रिड प्रजाति की मांगुर मछली के पालन पर लगायी रोक

मछलियों की 33 प्रजातियों के संरक्षण पर जोर दे रही सरकार

मत्स्य मंत्री ने विधानसभा में दी जानकारी

संवाददाता, कोलकाताराज्य सरकार विलुप्त हो रहीं मछलियों की 33 प्रजातियों के संरक्षण पर जोर दे रही है. इस परियोजना के तहत उक्त प्रजाति के संरक्षण के लिए की मछली पालन पर जोर दिया जा रहा है. यह जानकारी गुरुवार को विधानसभा सत्र के प्रश्नकाल में राज्य के मत्स्य मंत्री बिप्लब रायचौधरी ने दी. एक एक सवाल के जवाब में मंत्री ने बताया कि राज्य के पर्यावरण विभाग के साथ मिल कर देसी यानी विलुप्त हो रहीं मछलियों के संरक्षण पर जोर दिया जा रहा है. इस परियोजना का नाम ”अभय तालाब” दिया गया है. इस तालाब में ही इन मछलियों का पालन किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि फिलहाल अलीपुरदुआर, मालदा, पूर्व बर्दवान, पूर्व मेदिनीपुर, बांकुड़ा और दक्षिण 24 परगना जिले में एक-एक अभय तालाब तैयार किये गये हैं, जहां इन मछलियों का पालन किया जा रहा है. फिलहाल इस परियोजना के तहत सरकार 18 लाख रुपये खर्च कर चुकी है. उन्होंने बताया कि आने वाले दिनों में विलुप्त हो रहीं मछलियों के संरक्षण के लिए वित्त वर्ष 2025-26 में और 12 अभय तालाब तैयार किये जायेंगे. मंत्री ने कहा कि एक वर्ष पहले इस परियोजना को शुरू किया गया है. जिसे भविष्य में भी जारी रखा जायेगा.

इन विलुप्त हो रहीं मछलियों का किया जा रहा संरक्षण

श्री रायचौधरी ने सदन के बताया कि सर पोठी, टेंगरा, मोरोला, देसी सिंघी, देसी मांगुर, खैरा जैसी मछलियों का संरक्षण किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि इन प्रजातियों की मछलियां केवल मिट्टी खाती हैं. इस तरह की मछलियां सेहत के लिए भी अच्छी मानी जाती हैं. अभय तालाब में केवल उक्त 33 प्रजातियों की मछलियों का ही पालन किया जा रहा है.

मांगुर सेहत व पर्यावरण के लिए हानिकारक

मंत्री ने सदन को यह भी बताया कि हाइब्रिड प्रजाति की मांगुर मछली के पालन पर रोक लगा दी गयी है, क्योंकि इस तरह की मछलियां न केवल सेहत के लिए हानिकारक हैं, बल्कि इससे पर्यावरण को भी नुकसान पहुंच रहा है. इन्हें मुर्गियों या अन्य जानवरों के सड़े-गले अवशेष खिला कर बड़ा किया जाता है, जिससे पर्यावरण के साथ तालाब को भी नुकसान पहुंचता है, इसलिए इनके पालन में पूरी तरह से रोक लगा दी गयी है.

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