कोलकाता. भारत में हीमोफीलिया के मरीजों के लिए प्रोफिलैक्सिस (बीमारी की रोकथाम) को मानक चिकित्सा उपचार के रूप में अपनाने की महत्वपूर्ण आवश्यकता पर जोर देने के लिए कोलकाता में हेमकेयर (हीमोफीलिया केयर एंड रिसर्च) द्वारा पश्चिम बंगाल हीमोफीलिया कॉन्क्लेव 2025 का आयोजन किया गया. इसमें प्रमुख हेमेटोलॉजिस्ट, सरकारी प्रतिनिधि और मरीजों के हितों के समर्थक एकजुट हुए. हेमेटोलॉजी और ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन संस्थान की निदेशक प्रोफेसर डॉ मैत्रेयी भट्टाचार्य के नेतृत्व में आयोजित इस एक दिवसीय कॉन्क्लेव में हीमोफीलिया उपचार और नीति के प्रमुख विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया. सभी ने एक ही संदेश दिया: हीमोफीलिया के मरीजों की जीवन गुणवत्ता में सुधार और दीर्घकालिक विकलांगता को कम करने के लिए अब प्रतिक्रियात्मक चिकित्सा (जब रक्तस्राव हो तब इलाज) की जगह निवारक देखभाल (प्रोफिलैक्सिस) पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए. डॉ मैत्रेयी ने हीमोफीलिया उपचार में नवीन चिकित्सा पद्धतियों की परिवर्तनकारी भूमिका पर भी जोर दिया. भारत ने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है और कई उपचार केंद्रों में अब बचाव के तरीकों को अपनाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है.
एमिसिज़ुमाब से मिली नयी उम्मीद
हालांकि इस प्रगति से रक्तस्राव की घटनाओं में कमी आयी है फिर भी समग्र जीवन गुणवत्ता में अपेक्षित सुधार अभी बाकी है. कॉन्क्लेव में बताया गया कि एमिसिजुमाब के आने से हीमोफीलिया-ए के कई मरीजों के इलाज के तरीके में महत्वपूर्ण बदलाव आया है. इसे देना आसान है और इससे रक्तस्राव की घटनाएं कम हो गयी हैं, जिससे जीवन की गुणवत्ता में स्पष्ट सुधार देखा गया है. अब बच्चे बिना रुकावट स्कूल जा सकते हैं और वयस्क अधिक स्वतंत्रता से जीवन जी सकते हैं. भारत में जहां केवल 20,000 हीमोफीलिया रोगी आधिकारिक तौर पर पंजीकृत हैं, वहीं अनुमानित संख्या 1.5 लाख से अधिक है. एमिसिज़ुमाब चाहे रोगियों में अवरोधक प्रोटीन (इनहिबिटर) मौजूद हों या नहीं, हीमोफीलिया मरीजों के लिए आशा की नयी किरण बनकर उभरी है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है