अमर शक्ति, कोलकाता
पश्चिम बंगाल के जूट उद्योग पर एक बार फिर संकट के बादल दिख रहे हैं. कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार ने इस वर्ष कच्चे पाट के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5335 रुपये प्रति क्विंटल तय की है, लेकिन बावजूद इसके बाजार में यह 6825 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिक रहा है, जो एमएसपी से 1500 रुपये प्रति क्विंटल अधिक है. इस परिस्थिति में पश्चिम बंगाल समेत पूरे देश में 2024-25 के वित्तीय वर्ष समाप्त होने के साथ ही जूट उद्योग एक बड़े संकट से जूझ रहा है, जहां बाजार में जूट की वास्तविक कीमत और जमीनी हकीकत में अंतर साफ दिख रहा है. मिल मालिक तेजी से बढ़ती लागत से परेशान हैं, तो वहीं इस पूरी स्थिति में जमाखोरी बढ़ने की आशंका दिख रही है.बताया गया है कि मई-जून 2025 के दौरान टीडी5 ग्रेड कच्चे जूट की कोलकाता एक्स-गोदाम कीमत 6825 रुपये प्रति क्विंटल पर लगातार बने रहने की संभावना है, जबकि चालू वर्ष का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5335 रुपये प्रति क्विंटल है. यह अंतर 1490 रुपये प्रति क्विंटल का है, जो बाजार के स्वाभाविक उतार-चढ़ाव से कहीं अधिक है. हालांकि, आइएसआरओ, जेसीआई (जूट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया) और राष्ट्रीय जूट बोर्ड (एनजेबी) द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गयी “जूट क्रॉप इन्फॉर्मेशन सिस्टम” (जेसीआईएस) की ताजा रिपोर्ट से इन दावों की पोल खुलती है. जूट क्रॉप इन्फॉर्मेशन सिस्टम की रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2024 में देशभर में 4.91 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में जूट की खेती हुई, जिससे 76.73 लाख गांठें जूट फाइबर का उत्पादन हुआ. यह उत्पादन 2023 के मुकाबले मामूली कम है (84.33 लाख गांठें), जिसे मौसमी बदलाव माना गया है. बताया गया है कि पश्चिम बंगाल, बिहार, असम और ओडिशा में हुए क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट ने दिखाया कि औसत उपज 25–37 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रही और अधिकांश क्षेत्रों में फसल की स्थिति सामान्य रही. वहीं दूसरी ओर, कुछ प्रमुख व्यापारी यह दावा कर रहे हैं कि किसानों ने जूट की खेती घटा दी है और फसल “खराब” हुई है, जिससे कीमतें बढ़ीं. लेकिन जेसीआईएस और ईसीजे की रिपोर्ट यह साफ बताती है कि ऐसा कोई व्यापक संकट नहीं है. बताया गया है कि एक जुलाई 2025 से नया जूट वर्ष शुरू हो रहा है, और इसके लिए नया एमएसपी 5650 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है. यदि वर्तमान मूल्य वृद्धि को अभी नहीं रोका गया, तो यह 2025-26 सीजन की कीमतों को भी प्रभावित कर सकती है. जूट आयुक्त की अध्यक्षता में नवंबर 2024 में हुई विशेषज्ञ समिति (ईसीजे) की बैठक में पहले ही चेतावनी दी गयी थी, लेकिन अब तक कच्चे पाटों के गोदामों की जांच या कीमतों का खुलासा नहीं किया गया है. यदि अब भी कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो भारत का जूट बाजार विश्वसनीयता के गंभीर संकट में फंस सकता है, जहां कीमतें फसल नहीं, जमाखोरी तय कर रही है.
क्या कहना है मिल प्रबंधकों का
मिल प्रबंधकों का कहना है कि व्यापारी जानबूझकर स्टॉक रोक रहे हैं और कम मात्रा में ऊंचे रेट पर सौदे दिखाकर जीबीटी (सरकारी बैग रेट) निर्धारण के लिए उपयोग होने वाली तीन महीने की औसत कीमत को प्रभावित कर रहे हैं. यह सामान्य व्यापार नहीं, एक सुनियोजित मूल्य नियंत्रण है. इसका असर सीधे मिलों की लागत और सरकार को दिये जाने वाले बैग के रेट पर पड़ता है, जहां मिलें महंगे दामों पर कच्चा जूट खरीदने को मजबूर हैं, लेकिन सरकार को बैग सप्लाई एमएसपी आधारित मूल्य पर करनी होती है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है