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जलभूमि बचाने के लिए सरकारी संस्थाएं हों और सक्रिय : हाइकोर्ट

मंगलवार को न्यायमूर्ति अमृता सिन्हा ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि लंबे समय से मामला लंबित रहने के बावजूद अवैध निर्माणों की पहचान कर उन्हें गिराने के लिए उचित कदम नहीं उठाये जा रहे हैं.

अदालत ने कहा- दक्षिण 24 परगना प्रशासन, वेटलैंड अथॉरिटी, राज्य बिजली वितरण कंपनी व सीइएससी को और तत्पर होना होगा कोलकाता. महानगर के पूर्वी कोलकाता इलाके में स्थित जलभूमि अर्थात वेटलैंड को बचाने के लिए कलकत्ता हाइकोर्ट ने सरकारी संस्थाओं को और सक्रिय भूमिका निभाने का निर्देश दिया. मंगलवार को मामले की सुनवाई करते हुए हाइकोर्ट की न्यायाधीश अमृता सिन्हा की एकल पीठ ने दक्षिण 24 परगना जिला प्रशासन, वेटलैंड अथॉरिटी, राज्य बिजली वितरण कंपनी और सीइएससी से वेटलैंड को बचाने के लिए और अधिक तत्परता से काम करने का निर्देश दिया. मंगलवार को न्यायमूर्ति अमृता सिन्हा ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि लंबे समय से मामला लंबित रहने के बावजूद अवैध निर्माणों की पहचान कर उन्हें गिराने के लिए उचित कदम नहीं उठाये जा रहे हैं. मंगलवार को उन्होंने दोनों बिजली वितरण कंपनियों को निर्देश दिया कि जिन-जिन अवैध निर्माणों को चिह्नित किया गया है, भले ही वहां बिजली कनेक्शन नहीं काटे गये हैं, लेकिन वहां रहने वाले लोगों को पत्र देकर यह सूचित करना होगा कि वे अवैध निर्माण पर रह रहे हैं. अदालत इसे लंबे समय तक स्वीकार नहीं करेगी. गौरतलब है कि न्यायमूर्ति अमृता सिन्हा के निर्देश के अनुसार, जिला मजिस्ट्रेट और भूमि व भूमि राजस्व अधिकारी ने मंगलवार को अदालत में एक रिपोर्ट पेश की. इसमें उन्होंने कहा है कि जिला प्रशासन के पास एक भी विशेषज्ञ इंजीनियर ऐसा नहीं है, जो यह बता सके कि 10 मंजिली इमारत को कैसे गिराया जाये. इसके अलावा, जो कुछेक जूनियर इंजीनियर हैं, वे सभी अलग-अलग परियोजनाओं में व्यस्त हैं. उनके पास काम का बहुत अधिक बोझ है. इस पर न्यायमूर्ति अमृता सिन्हा ने प्रशासन से कहा कि पहले आप अवैध निर्माणों की पहचान करें. अब तक 550 अवैध निर्माणों की पहचान की गयी है. 10 इमारतों को गिरा दिया गया है. न्यायाधीश ने कहा कि बाकी अवैध निर्माण की भी जल्द से जल्द पहचान करें. फिर अदालत आपको बतायेगी कि क्या करना है. इस पर जिला मजिस्ट्रेट के वकील ने एक विशेषज्ञ कमेटी का गठन कर अवैध निर्माण को गिराने का प्रस्ताव रखा. इसके साथ ही अधिवक्ता ने कोलकाता नगर निगम के इंजीनियरों को इस कार्य में शामिल करने प्रस्ताव दिया. हालांकि, न्यायाधीश ने इसे लेकर कोई फैसला नहीं सुनाया. मामले की अगली सुनवाई 24 जुलाई को होगी.

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