कोलकाता. कलकत्ता हाइकोर्ट में एक अनूठा मामला सामने आया है, जहां एक बुजुर्ग मां ने अपने बेटे से आर्थिक सहायता के लिए गुहार लगायी है. बेटे का कहना है कि उसकी मां ने उसे बचपन में छोड़ दिया था और पिछले 15 सालों से उनका कोई संपर्क नहीं था. यह मामला अब कानूनी लड़ाई का रूप ले चुका है और इसकी अगली सुनवाई 23 जुलाई को होगी. न्यायाधीश अमृता सिन्हा ने इस मामले की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की कि यदि बेटा चाहे तो वह अपनी मां से मिल सकता है और उनकी सेहत का हालचाल पूछ सकता है. अदालत ने स्पष्ट किया कि मां को मदद की आवश्यकता है और बेटा आर्थिक रूप से सक्षम है, ऐसे में उसे अपनी जैविक मां के प्रति न्यूनतम कर्तव्य का पालन करना होगा. बुजुर्ग महिला वर्तमान में एक वृद्धाश्रम में रह रही हैं और आंशिक रूप से लकवाग्रस्त हैं, जिसके कारण उन्हें आवाजाही के लिए व्हीलचेयर की आवश्यकता होती है. अदालत ने दोनों पक्षों के तर्क सुनने के बाद इस स्थिति पर ध्यान दिया. बेटे के वकील ने अदालत में बताया कि उनके मुवक्किल का पालन-पोषण उसके मामा के घर हुआ है और बचपन में उसे अपनी मां का साथ नहीं मिला. वकील ने तर्क दिया कि जब बेटे को मां की सबसे अधिक जरूरत थी, तब मां ने उसे छोड़ दिया था. उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि क्या केवल जन्म देने से कोई मां बन सकती है. हालांकि, अदालत ने इस पर जोर दिया कि एक बेटे का अपनी मां के प्रति न्यूनतम कर्तव्य होता है. अदालत ने कहा कि बेटे को मां से संवाद करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन जरूरत पड़ने पर उसे आर्थिक सहायता प्रदान करनी होगी. 23 जुलाई को होने वाली सुनवाई में यह तय हो सकता है कि मां को किस तरह की मदद चाहिए, बेटे को क्या करना है और उसे कितनी राशि देनी होगी.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है