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नौकरी से वंचित शिक्षकों ने कहा- सीएम की घोषणा हमारे लिए ”डेथ वारंट”

नौकरी गंवा चुके शिक्षकों के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ओर से परीक्षा दोबारा कराने की घोषणा ने उनके बीच निराशा और आक्रोश पैदा कर दिया है. शिक्षक समुदाय इस फैसले से असंतुष्ट है और वे चाहते थे कि सरकार परीक्षा की अधिसूचना जारी करने से बचे. लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में परीक्षा अधिसूचना जल्द से जल्द जारी करने की बात कही.

कोलकाता.

नौकरी गंवा चुके शिक्षकों के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ओर से परीक्षा दोबारा कराने की घोषणा ने उनके बीच निराशा और आक्रोश पैदा कर दिया है. शिक्षक समुदाय इस फैसले से असंतुष्ट है और वे चाहते थे कि सरकार परीक्षा की अधिसूचना जारी करने से बचे. लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में परीक्षा अधिसूचना जल्द से जल्द जारी करने की बात कही. मुख्यमंत्री की घोषणा के तुरंत बाद नौकरी गंवाने वाले शिक्षकों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपना विरोध जताया. उनका कहना था कि मुख्यमंत्री का यह बयान सुनकर ऐसा लगा जैसे उन्होंने सभी योग्य शिक्षकों और शिक्षाकर्मियों के लिए ‘डेथ वारंट’ जारी कर दिया हो.

सुप्रीम कोर्ट ने उन ‘योग्य’ शिक्षकों की नौकरियों को अगले दिसंबर तक बरकरार रखने का निर्देश दिया है, लेकिन सवाल यह है कि सात साल तक स्कूलों में सेवा देने के बाद फिर से परीक्षा देना किस तरह संभव होगा. बेरोजगार शिक्षक इस बात को लेकर बेहद चिंतित हैं कि क्या वे इतनी कम अवधि में फिर से परीक्षा पास कर पायेंगे?

शिक्षक आंदोलन के एक प्रमुख नेता वृंदावन घोष ने कहा : हममें से कोई भी इस मानसिक स्थिति में नहीं है कि वह फिर से परीक्षा दे सके. एक ही जगह सात साल तक काम करने के बाद, कुछ ही दिनों में फिर से ‘योग्यता’ साबित करना किसी के लिए भी संभव नहीं है. ‘योग्य’ लोग फिर से परीक्षा क्यों देंगे?

शिक्षकों का यह भी कहना है कि उन्हें अपनी योग्यता पुनः साबित करने की जरूरत ही नहीं है. वे इसे पूरी तरह गलत और अनुचित मानते हैं. उनका आरोप है कि न तो अदालत ने उनके साथ उचित व्यवहार किया और न ही सरकार ने इस समस्या को लेकर संवेदनशीलता दिखायी.

बेरोजगार शिक्षक आंदोलन से जुड़े लोग बताते हैं कि शुरू से ही वे यह मांग कर रहे थे कि वे अब परीक्षा में नहीं बैठेंगे और सरकार को यह देखना चाहिए कि बिना परीक्षा के वे अपनी नौकरियां कैसे बचा सकते हैं.

मंगलवार दोपहर नबान्न में मुख्यमंत्री ने संवाददाता सम्मेलन में घोषणा की कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में परीक्षा अधिसूचना 30 मई को प्रकाशित की जायेगी. साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि समीक्षा याचिका के लिए राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका भी सुप्रीम कोर्ट को भेजी जायेगी.

मुख्यमंत्री की इस घोषणा के बाद शिक्षक नेता वृंदावन घोष ने कहा : जिस बात का डर था, वही सच हो गया. हम नहीं चाहते थे कि सरकार कोई अधिसूचना जारी करे, लेकिन मंगलवार को जिस तरह से विस्तृत अधिसूचना की घोषणा की गयी, उससे यह लगता है कि सरकार में सद्भावना का अभाव है. सरकार अधिसूचना प्रकाशित न करके समीक्षा याचिका पर अधिक ध्यान दे सकती थी.मुख्यमंत्री ने दो रास्तों की बात करते हुए कहा : हम सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार सब कुछ तैयार रख रहे हैं. अगर समीक्षा याचिका में यह निर्णय आता है कि परीक्षा लेने की आवश्यकता नहीं है और सूची रद्द नहीं की जाती है, तो मैं सुप्रीम कोर्ट की बात मानूंगी. लेकिन यदि पुनर्विचार याचिका पर सकारात्मक आदेश नहीं आता है, तो सरकार परीक्षा कराकर नौकरी बहाली का रास्ता खुलेगी.

उन्होंने अधिसूचना के प्रकाशन की तारीख, आवेदन की अंतिम तिथि, पैनल के प्रकाशन और काउंसिलिंग की प्रक्रिया की भी विस्तृत जानकारी दी. लेकिन बेरोजगार शिक्षक मांग कर रहे हैं कि आवेदन की तिथि में थोड़ा और समय दिया जाये, ताकि वे बेहतर तैयारी कर सकें.विलाप करते हुए बेरोजगार शिक्षक कहते हैं : उन्होंने (ममता बनर्जी) ने हमारी नौकरियां बचाने का वादा किया था, लेकिन अब उनकी बात सुनकर ऐसा लगता है कि उन्होंने अपना वादा पूरा नहीं किया और हमारे लिए नयी मुसीबत खड़ी कर दी है.

विकास रंजन बोले, कानूनी तौर पर और भी जटिलताएं पैदा करेगी सीएम की घोषणा : वकील विकास रंजन भट्टाचार्य का मानना है कि मुख्यमंत्री की यह घोषणा उन लोगों के लिए कानूनी और प्रशासनिक तौर पर और भी जटिलताएं लायेगी, जिन्हें 2016 की एसएससी परीक्षा में नौकरी मिली थी और बाद में वे नौकरी से बाहर हो गये. उन्होंने कहा : सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि अयोग्य लोगों की नौकरी समाप्त की जानी चाहिए और उनसे वेतन भी वापस लिया जाना चाहिए. यह कार्य नयी भर्ती प्रक्रिया के साथ-साथ होना चाहिए, लेकिन मुख्यमंत्री ने इस विषय पर कुछ नहीं कहा. उन्होंने रिक्त पदों को भरने की बात भी कही, लेकिन इसके बाद 2016 के नौकरी पाने वालों को और भी अधिक कानूनी जटिलताओं का सामना करना पड़ेगा.

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