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Kolkata Doctor Murder Case : डाॅक्टर हत्याकांड मामले में पॉलीग्राफ टेस्ट क्याें है जरूरी, जानें कैसे और क्या होती है जांच प्रक्रिया

Kolkata Doctor Murder Case : दिल्ली के केंद्रीय फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (सीएफएसएल) से ‘पॉलीग्राफ’ विशेषज्ञों का एक दल कोलकाता पहुंच गया है.

Kolkata Doctor Murder Case : कोलकाता के सरकारी आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में एक प्रशिक्षु चिकित्सक से कथित दुष्कर्म और उसकी हत्या के मामले में मुख्य आरोपी और छह अन्य का ‘पॉलीग्राफ टेस्ट’ शनिवार को शुरू हो गया. सीबीआई अधिकारियों से मिली जानकारी के अनुसार मुख्य आरोपी संजय रॉय का ‘पॉलीग्राफ टेस्ट’ प्रेसिडेंसी जेल में ही किया जाएगा जहां वह बंद है.

संदीप घोष व अन्य का पॉलीग्राफ टेस्ट’ होगा एजेंसी कार्यालय में

जबकि पूर्व प्राचार्य संदीप घोष, घटना की रात ड्यूटी पर मौजूद चार चिकित्सकों और एक नागरिक स्वयंसेवक समेत छह अन्य का ‘पॉलीग्राफ टेस्ट’ एजेंसी के कार्यालय में किया जाएगा.अब देखना है कि इस पॉलीग्राफ टेस्ट से डाॅक्टर हत्याकांड के मामले की गुत्थी सुलझती है या और भी उलझनों की नई कड़ियां जुड़ती है.

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पॉलीग्राफ टेस्ट क्या है ?

पॉलीग्राफ टेस्ट को लाइ डिटेक्टर टेस्ट भी कहा जाता है. इसमें मशीनों के जरिए आदमी की हार्ट बीट, बीपी, सबकुछ लगातार चेक किया जाता है. इस टेस्ट को साइकोलॉजीकल ऑटोप्सी कहते हैं. इससे अपराधी के दिमाग की साइकोलॉजी के बारे में पता चलता है. इस तरह के टेस्ट में सीबीआई के कुछ डॉक्टरों की एक सीएफएसएल टीम पॉलीग्राफी टेस्ट करती है.

कैसे होता है पॉलीग्राफ टेस्ट

पॉलीग्राफ टेस्ट ईसीजी मशीन की तरह ही होता है. ‘पॉलीग्राफ टेस्ट’ के दौरान व्यक्ति द्वारा प्रश्‍नों के उत्तर दिए जाते समय एक मशीन की मदद से उसकी शारीरिक प्रतिक्रियाओं को मापा जाता है और यह पता लगाया जाता है कि वह सच बोल रहा है या झूठ. जब कोई व्यक्ति झूठ बोल रहा होता है तो दिल की धड़कन, सांस लेने में बदलाव, पसीना आने लगता है और इस बदलाव से ही समझ जा सकता है कि व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ.हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि पॉलीग्राफ टेस्ट हमेशा पूरी तरह सटीक नहीं होता. 

क्यों किया जाता है पॉलीग्राफ टेस्ट

पॉलीग्राफ टेस्ट किसी भी व्यक्ति का करवाया जा सकता है. व्यक्ति के दिमाग में क्या चल रहा है वह सच बोल रहा है या झूठ इसकी जानकारी आसानी से मिल जाती है. खासतौर पर बड़े-बड़े अपराधिक मामलों के राज काे जानने के लिये पॉलीग्राफ टेस्ट का सहारा लिया जाता है.

कितने समय का होता है पॉलीग्राफ टेस्ट

पॉलीग्राफ टेस्ट के परीक्षण में लगभग 4 घंटे का समय लगता है. लेयर्ड वॉयस एनालिसिस यानी झूठ पकड़ने के एक डिवाइस का भी इस्तेमाल किया जाता है. उसमें व्यक्ति के आवाज को डाल कर और उसके वॉयस के जरिये यह पता चल सकता है कि जो सवाल पूछे गये हैं, क्या वो उनके जवाब देते वक्त सच बोल रहा है या नहीं. 

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Shinki Singh
Shinki Singh
10 साल से ज्यादा के पत्रकारिता अनुभव के साथ मैंने अपने करियर की शुरुआत Sanmarg से की जहां 7 साल तक फील्ड रिपोर्टिंग, डेस्क की जिम्मेदारियां संभालने के साथ-साथ महिलाओं से जुड़े मुद्दों और राजनीति पर लगातार लिखा. इस दौरान मुझे एंकरिंग और वीडियो एडिटिंग का भी अच्छा अनुभव मिला. बाद में प्रभात खबर से जुड़ने के बाद मेरा फोकस हार्ड न्यूज पर ज्यादा रहा. वहीं लाइफस्टाइल जर्नलिज्म में भी काम करने का मौका मिला और यह मेरे लिये काफी दिलचस्प है. मैं हर खबर के साथ कुछ नया सीखने और खुद को लगातार बेहतर बनाने में यकीन रखती हूं.

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