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आयकर रिटर्न निर्णायक प्रमाण नहीं, जीवनशैली के आधार पर मिलना चाहिए भरण-पोषण : कोर्ट

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि भरण-पोषण की राशि इतनी होनी चाहिए कि पत्नी विवाह के दौरान जिस जीवनशैली को जीती थी, उसे अलगाव के बाद भी बनाये रख सके.

कोलकाता. कलकत्ता हाइकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि आयकर रिटर्न (आइटीआर) को किसी व्यक्ति की आय का अंतिम या निर्णायक प्रमाण नहीं माना जा सकता. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि भरण-पोषण की राशि इतनी होनी चाहिए कि पत्नी विवाह के दौरान जिस जीवनशैली को जीती थी, उसे अलगाव के बाद भी बनाये रख सके. जस्टिस विभाष रंजन दे की बेंच ने एक मामले में पत्नी की मासिक भरण-पोषण राशि को 20,000 रुपये से बढ़ाकर 25,000 रुपये कर दिया. इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि हर दो साल में इसमें पांच प्रतिशत की स्वचालित वृद्धि की जाए, ताकि महंगाई के असर को समायोजित किया जा सके. जस्टिस दे ने टिप्पणी की कि व्यक्ति का आयकर रिटर्न उसकी आय का निर्णायक प्रमाण नहीं हो सकता क्योंकि यह मुख्य रूप से करदाता द्वारा दी गयी जानकारी पर आधारित होता है. इसमें आय को कम करके दिखाने की संभावना रहती है. कोर्ट ने यह भी कहा कि आय के आकलन में केवल वर्तमान आय ही नहीं, बल्कि व्यक्ति की क्षमता, पिछली आय और उसकी संपत्तियों को भी देखा जाना चाहिए. कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि भरण-पोषण अब सिर्फ न्यूनतम गुजारे का साधन नहीं, बल्कि जीवनशैली की स्थिरता बनाए रखने का उपकरण बन चुका है. अलगाव के बाद का भरण-पोषण विवाह के समय की पत्नी की जीवनशैली के अनुरूप होना चाहिए. अदालत ने अपने अंतिम आदेश में कहा कि भरण-पोषण की राशि अब 25,000 रुपये प्रति माह होगी और इसमें हर दो साल में पांच प्रतिशत की स्वचालित वृद्धि होगी. प्रभावी तिथि के संबंध में कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 127 का हवाला देते हुए कहा कि कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं होने के कारण इसे मजिस्ट्रेट के आदेश की तारीख से ही लागू किया जायेगा.

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