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भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रसार में संचार माध्यमों की भूमिका बड़ी : प्रो चौबे

भारतीय समाज वाचिक संचार का समाज रहा है. मुद्रित और दृश्य-श्रव्य माध्यमों के आगमन और उत्थान के बाद भी यहां वाचिक परंपरा समाप्त नहीं हुई.

कलकत्ता विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग का ‘भारतीय ज्ञान परंपरा और संचार माध्यम’ विषय पर विशेष कार्यशाला का आयोजन कोलकाता. भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रचार-प्रसार में पारंपरिक तथा आधुनिक व उत्तरोत्तर आधुनिक संचार माध्यमों की बड़ी भूमिका रही है. भारतीय समाज वाचिक संचार का समाज रहा है. मुद्रित और दृश्य-श्रव्य माध्यमों के आगमन और उत्थान के बाद भी यहां वाचिक परंपरा समाप्त नहीं हुई. पारंपरिक और आधुनिक व उत्तरोत्तर आधुनिक संचार माध्यमों ने जनता में भारतीय परंपरा में ज्ञान की संचित राशि और देश की सांस्कृतिक विरासत के प्रति ललक पैदा की है. ये बातें वरिष्ठ पत्रकार तथा महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, के जनसंचार विभाग के अध्यक्ष प्रो कृपाशंकर चौबे ने कहीं. शुक्रवार को वह कलकत्ता विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग द्वारा आयोजित एक कार्यशाला में ‘भारतीय ज्ञान परंपरा और संचार माध्यम’ विषय पर विशेष वक्तव्य प्रस्तुत कर रहे थे. प्रो चौबे ने कहा कि राजा राममोहन राय ने 19वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में ‘संवाद कौमुदी’ और ‘ब्रह्मैनिकल मैगजीन’ के माध्यम से ब्रह्म समाज के इस मत का प्रचार किया कि वैदिक धर्म अत्यंत पवित्र, शुद्ध और अनुकरणीय है, जिसमें मूर्ति पूजा और अंधविश्वास की कोई जगह नहीं है. केशवचंद्र सेन ने ‘सुलभ समाचार’ ने भी यही काम किया था. ‘तत्वबोधिनी पत्रिका’ ने उपनिषदों का सार प्रकाशित कर भारतीय ज्ञान परंपरा का प्रसार किया. ऋषि अरविंद घोष ने ‘वंदेमातरम’, ‘कर्मयोगिन’ और ‘आर्य’ जैसे पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से इस धारा को आगे बढ़ाया था. रवींद्रनाथ ठाकुर ने ‘तत्वबोधिनी’ के अतिरिक्त ‘साधना’, और ‘बंगदर्शन’ जैसी पत्रिकाओं के जरिये और सुब्रह्मण्यम भारती ने तमिल समाचार पत्र ‘स्वदेशमित्रन्’, ‘चक्रवर्तिनी’, ‘इंडिया’ और ‘कर्मयोगी’ के माध्यम से भारतीय ज्ञान परंपरा का प्रचार-प्रसार किया. सुब्रह्मण्यम भारती ने ‘कर्मयोगी’ में भागवत गीता का तमिल अनुवाद प्रकाशित किया था. गीता प्रेस से प्रकाशित ‘कल्याण’ पत्रिका ने वेद कथांक, उपनिषद अंक, हिंदू संस्कृति अंक, बोध कथांक जैसे विशेषांक निकाल कर और विशंभर नाथ पांडे ने 1941 में हिंदी मासिक पत्रिका ‘विश्ववाणी’ के कई विशेषांक प्रकाशित कर भारतीय ज्ञान परंपरा का प्रसार किया. 21वीं सदी में भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रसार का वही मूल्यवान कार्य ‘संचार माध्यम’ जैसी पत्रिका व ‘सुधर्मा’ जैसे संस्कृत दैनिक से लेकर दूरदर्शन के कई कार्यक्रम और कतिपय डिजिटल माध्यम कर रहे हैं. भारतीय ज्ञान परंपरा पर आयोजित इस अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला के संयोजक संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डॉ कमल किशोर मिश्र ने प्रास्ताविक वक्तव्य दिया. डॉ सुदीप्ता चक्रवर्ती ने स्वागत वक्तव्य दिया. धन्यवाद ज्ञापन किया डॉ टुली राय ने.

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