कई ठेकेदार निभा रहे हैं शिक्षक की भूमिका, श्रमिकों का कहना है कि यही है बचने का एकमात्र रास्ता कोलकाता. राज्य के प्रवासी श्रमिक इन दिनों हिंदी सिखने में मशगूल हैं. एक शिक्षक श्रमिकों को हिंदी की जानकारी दे रहे हैं. कहीं शब्द भूल होने पर वह सुधार कर बताते हैं. ऐसा इसलिए हो रहा है कि बांग्ला में बात करने पर यहां के श्रमिकों को बांग्लादेशी समझ लिया जा रहा है. उनके साथ गलत बर्ताव किया जा रहा है. हाल ही में कई भारतीय को भी बांग्लादेशी समझ कर बांग्लादेश भेज दिया गया था. हालांकि प्रशासन की मदद से उन्हें वापस लाया गया. प्रवासी श्रमिकों का कहना है कि परिचय पत्र दिखाने पर भी कोई लाभ नहीं हो रहा. स्पष्ट हिंदी बोलना ही एकमात्र बचने का रास्ता है, इसलिए काम खत्म करने के बाद सभी एक पाठशाला में जाते हैं, जहां वे हिंदी सीख रहे हैं. हिंदीभाषी ठेकेदार शिक्षक की भूमिका में हैं. जानकारी के मुताबिक ओडिशा, महाराष्ट्र सहित देश के कई राज्यों में मुर्शिदाबाद से गये श्रमिकों को प्रताड़ित करने को लेकर 100 से अधिक शिकायतें दर्ज हुई हैं. शिकायत करने से भी कोई लाभ नहीं हो रहा. आतंकित होकर सभी को वापस घर लौट जाना पड़ रहा है. इसलिए मुर्शिदाबाद के बांग्लाभाषी लोग हिंदी सीखने पर जोर लगा रहे हैं. देश से बांग्लादेशियों को खदेड़ने के लिए अभियान चल रहा है. मुर्शिदाबाद से प्रवासी श्रमिकों ने बताया कि ओडिशा में फेरी का काम करनेवाले लगभग 30 श्रमिकों को बांग्ला बोलने के लिए प्रताड़ित किया गया. प्रवासी श्रमिक एकता मंच के प्रमुख आसिफ फारुख ने कहा कि गरीब श्रमिक रोजी-रोटी की तलाश में दूसरे राज्यों में जाते हैं. लेकिन बांग्ला में बात करने के कारण उन्हें बांग्लादेशी समझ लिया जाता है. भारतीय नागरिक होने के बावजूद भाषा व धर्म के आधार पर उन्हें बांग्लादेशी मान लिया जाता है. मुर्शिदाबाद के जिलाधिकारी राजर्षि मैत्र ने कहा कि सभी घटनाओं पर जिला प्रशासन की ओर से कदम उठाया जाता है. भाजपा का दावा है कि यह सब तृणमूल के पाप का नतीजा है. अवैध रूप से बंगाल में आये बांग्लादेशियों का परिचय पत्र बना दिया जा रहा है. इस पाप का फल ही यहां के लोग भोग रहे हैं. इसके लिए तृणमूल सरकार पूरी तरह से जिम्मेदार है. लगभग दो दशक से प्रवासी श्रमिक के रूप में काम करनेवाले सूटी ब्लॉक के हनीफ, अमकल सहित अन्य कई प्रताड़ित श्रमिक इस समय हिंदी सिखने में व्यस्त हैं. कानपुर में काम कर चुके मुर्शिदाबाद के जालंगी ब्लॉक के सरकारपाड़ा के बाशिंदा व प्रवासी श्रमिक जब्बार मंडल ने कहा कि लंबे समय तक काम किया, लेकिन कभी हिंदी सिखना होगा, यह सोचा ही नहीं था. अब हिंदी सीखना ही पड़ेगा, यही बचने का एकमात्र रास्ता है.
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