कोलकाता. कोविड जैसी महामारी के दौरान पूरा देश एक आपदा जैसी स्थिति से गुजर रहा था और उस समय लोगों का मानसिक स्वास्थ्य भी गहरे रूप से प्रभावित हुआ. इस दौर में कई लोगों ने चुपचाप मानवीय सेवाएं देते हुए अपना योगदान दिया, लेकिन वे गुमनाम ही रहे. उक्त बातें ‘मोनोग्राफ’ लॉन्च कार्यक्रम में आस्था की संस्थापक और मैनेजिंग ट्रस्टी राधिका अल्कैजी ने कहीं. उन्होंने कहा कि ‘मोनोग्राफ’ महामारी के दौरान महत्वपूर्ण मानसिक स्वास्थ्य और मानवीय सहायता प्रदान करने वाले व्यक्तियों के गुमनाम योगदान का प्रमाण है. साझा देखभाल की कहानियां और पैनल चर्चा: उन्होंने समुदाय की ताकत के प्रमुख घटकों के रूप में लचीलेपन और करुणा पर प्रकाश डाला और भविष्य में संकट की तैयारी व प्रतिक्रिया के लिए ऐसे प्रयासों को दस्तावेज करने के महत्व को रेखांकित किया. कार्यक्रम में ‘लाइफलाइन इन क्राइसिस’ पर पैनल चर्चा भी आयोजित हुई, जिसमें उस भयावह समय में साझा देखभाल की शक्ति पर विचार हुआ. टेक्नो इंडिया ग्रुप की सह-अध्यक्ष मानसी रॉयचौधरी ने कहा कि कोविड के समय अनौपचारिक देखभाल करने वाले, छोटे दुकानदार और रोजमर्रा के पड़ोसी लॉकडाउन के दौरान कोलकाता की मूक जीवन रेखा बन गये. परिचर्चा में सीयू के अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर अंजन कुमार चक्रवर्ती, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता अशोक विश्वनाथन, क्वीर नारीवादी कार्यकर्ता मीनाक्षी सान्याल, पर्क्यूशनिस्ट पंडित तन्मय बोस और नीति आयोग के मेंटर ऑफ चेंज सुमित अग्रवाल ने कोविड के दौरान जमीनी स्तर पर सीखे गये सहयोग और निकटता के सबक साझा किये. दस्तावेज से सीख और भविष्य की तैयारी : ईश्वर संकल्प की सह-संस्थापक श्रावणी दास रॉय ने कहा कि ईश्वर संकल्प एक गैर-लाभकारी संगठन है, जो मानसिक स्वास्थ्य और बेघरों के लिए काम करता है. राधिका मलिक अल्कैजी द्वारा लिखित और सुहासिनी बाली (आस्था) के योगदान से तैयार यह ‘मोनोग्राफ’ संकट की स्थिति में समुदाय-आधारित प्रयासों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है.
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