काजी परिवार के सदस्य सबसे पहले खींचते हैं रथ की रस्सी
400 साल पहले शुरू हुई परंपरा आज भी बरकरार
संवाददाता, हावड़ा.
आमता थाना क्षेत्र के ताजपुर गांव में राय परिवार की रथयात्रा अपने 400वें वर्ष में प्रवेश कर गयी है. यह रथ ‘रायबाड़ी का रथ’ या ‘श्रीधर रथ’ के नाम से प्रसिद्ध है. इस पर भगवान जगन्नाथ के स्थान पर राय परिवार के कुलदेवता श्रीधर विराजमान होते हैं. इस रथयात्रा की सबसे खास बात यह है कि इसकी शुरुआत हर साल एक मुस्लिम परिवार करता है. बताया जाता है कि ताजपुर से सटे शारदा गांव का काजी परिवार शुरू से ही रथ खींचने और आयोजन की पूरी जिम्मेदारी निभाता आ रहा है. फिलहाल यह जिम्मेदारी साकू काजी के कंधों पर है, जिनके पिता खालेक काजी इससे पहले इसे संभालते थे.
1946 के दंगों के बाद शुरू हुई परंपरा
राय परिवार के सदस्य मानस राय ने बताया कि उनके पूर्वज बर्दवान में महाराज के दीवान हुआ करते थे. 400 वर्ष पहले उनके पूर्वज ने महाराज के आग्रह पर ताजपुर में इस रथयात्रा की शुरुआत की थी. साल 1946 में जब पूरे बंगाल में सांप्रदायिक दंगा भड़क उठा था, तब ताजपुर भी इसकी चपेट में आ गया. उस समय रथयात्रा को लेकर राय परिवार काफी असमंजस में था कि ऐसी स्थिति में रथ यात्रा निकाली जाए या नहीं. इसी समय शारदा गांव के निवासी साकू काजी के पूर्वज आगे आये और खुद व्यवस्था संभालते हुए मुस्लिम समुदाय के लोगों को रथ खींचने के लिए आग्रह किया. इसके बाद राय परिवार ने परंपरा के तौर पर तय किया कि रथ की रस्सी सबसे पहले काजी परिवार के सदस्य ही खींचेंगे और तब से यह परंपरा जारी है.
मुस्लिम परिवार के लिए सांस्कृतिक उत्सव : साकू काजी कहते हैं कि उनके लिए यह कोई धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक उत्सव है, जिसमें सभी समुदायों के लोग बड़े हर्षोल्लास के साथ शामिल होते हैं. वह इसे बंगाल की असली संस्कृति बताते हैं. हर वर्ष रथयात्रा के दिन पुराने मंदिर से श्रीधर देवता की मूर्ति को पालकी में रखा जाता है और सात पुरोहित यह काम विधिपूर्वक संपन्न करते हैं. फिर काजी परिवार के सदस्य रस्सी खींचकर रथयात्रा की शुरुआत करते हैं. गांव में इस मौके पर एक बड़ा मेला भी लगता है, जिसमें आसपास के लोग बड़ी संख्या में शामिल होते हैं. आमता के विधायक सुकांत पाल ने कहा कि वह इस रथ यात्रा को बचपन से देखते आ रहे हैं और ताजपुर की रथ पूजा आपसी सौहार्द का सबसे अच्छा उदाहरण है.
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