कोलकाता/भुवनेश्वर.
पश्चिम बंगाल सरकार के दीघा मंदिर विवाद के बीच ओडिशा के कानून मंत्री पृथ्वीराज हरिचंदन ने श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) से मामले की जांच करने को कहा. मीडिया रिपोर्ट में यह बात सामने आयी थी कि पुरी जगन्नाथ मंदिर के सेवक दीघा मंदिर के समारोह में शामिल हुए थे. उन्होंने मूर्तियां बनाने के लिए मंदिर को 2015 के नवकलेवर से बची नीम की लकड़ी दी. नवकलेवर हर 12 या 19 साल में होने वाला अनुष्ठान है. इसमें पुरी के मंदिर में भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ की लकड़ी की मूर्तियां बदली जाती हैं.इसके अलावा पुजारियों, भक्तों, विद्वानों और पंडितों ने दीघा मंदिर को पश्चिम बंगाल सरकार के ””जगन्नाथ धाम”” कहे जाने पर भी आपत्ति जतायी है. मंत्री ने अपनी चिट्ठी में लिखा : इस घटना ने श्रद्धालुओं और ओडिशा के 4.5 करोड़ लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचायी है. बंगाल के दीघा में ममता सरकार की ओर से बनवाये गये मंदिर के नाम को लेकर ओडिशा सरकार ने एतराज जताया है. ओडिशा सरकार कहना है कि पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर प्राचीन धाम है, जिसका पौराणिक महत्व है. सनातन की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह चार धामों में से एक है. ऐसे में बंगाल सरकार के नवनिर्मित मंदिर को जगन्नाथ धाम कहना गलत है. उनका कहना है कि पुरी के जगन्नाथ धाम का भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से संबंध रहा है. यहां भगवान श्रीकृष्ण, उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा का द्वापर युग में निवास रहा है. सनातन के चारों धामों- बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम और पुरी में हरेक जगह एक-एक शंकराचार्य की पीठ है. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को इस पर विचार करना चाहिए और मंदिर का नाम बदलना चाहिए. ओडिशा सरकार ने कहा कि ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण मांझी भी पूरे मामले पर विचार कर रहे हैं. लोगों की भावना के अनुरूप ओडिशा सरकार की ओर से जरूरी कदम उठाये जायेंगे.गौरतलब है कि दीघा मंदिर के लिए मूर्तियां पुरी से गयीं दीघा मंदिर को लकड़ी देने का आरोप सेवकों के एक समूह दैतापति निजोग के सचिव रामकृष्ण दासमोहपात्रा पर लगा है. हालांकि, पुरी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दासमोहपात्रा ने कहा : मैंने कभी नहीं कहा कि पुरी मंदिर की लकड़ी का इस्तेमाल दीघा में मूर्ति बनाने के लिए किया गया.
मैंने मंदिर अधिकारियों से कहा था कि भगवान जगन्नाथ की पत्थर की मूर्तियों की पूजा नहीं की जा सकती. उन्होंने बताया : इसके बाद प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के लिए मैं यहां (पुरी) से नीम की लकड़ी की मूर्ति ले गया. मैंने किसी टेलीविजन चैनल को ब्रह्म की स्थापना के बारे में भी कुछ नहीं बताया है. न ही मैंने मूर्ति पर ऐसी कोई सामग्री रखी है. मैंने पूजा के दौरान निर्धारित प्रक्रियाओं की निगरानी की है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है