कोलकाता.
सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने राज्य में अवैध विदेशी प्रवासियों की अनिश्चितकालीन हिरासत से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि राज्य को चार सप्ताह में ऐसे सभी अवैध प्रवासियों की पहचान करनी चाहिए, जो अपनी सजा पूरी करने के बाद भी जेलों में बंद हैं और फिर उन्हें जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने आदेश दिया कि जब किसी अवैध अप्रवासी पर मुकदमा चलाया जाता है और उसे सजा सुनायी जाती है और वह पूरी सजा काट लेता है, तो उसे जेल में नहीं रखा जा सकता. ऐसे अवैध प्रवासियों को डिटेंशन सेंटर में रखा जाना चाहिए. दुर्भाग्य से, पश्चिम बंगाल में डिटेंशन सेंटर नहीं है. ऐसी परिस्थिति में जब एक अवैध अप्रवासी ने पूरी सजा काट ली है, फिर भी उसे जेल में रखा जा रहा है. यह संवेदनशील मुद्दा है और पश्चिम बंगाल राज्य को इस पर गौर करना चाहिए. हमें सूचित किया गया है कि राज्य सरकार डिटेंशन सेंटर बनाने जा रही है. इसका निर्माण छह महीने में पूरा होने की संभावना है. हमें नहीं पता कि निर्माण कब पूरा होगा. हमारा विचार है कि यदि राज्य की किसी भी जेल में आज की तारीख तक कोई अवैध अप्रवासी है, जिसने पूरी सजा काट ली है और अब भी किसी भी जेल में बंद हैं तो उसे शर्तों के अधीन जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए.क्या है मामला : गौरतलब है कि 2011 में याचिकाकर्ता ने कलकत्ता हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस को एक पत्र लिखा था, जिसमें बांग्लादेश से अवैध रूप से आये उन प्रवासियों की दुर्दशा पर प्रकाश डाला गया था, जिन्हें विदेशी अधिनियम के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराये जाने के बाद सुधार गृहों में रखा जा रहा है.
पत्र में बताया गया था कि सजा काटने के बाद भी प्रवासियों को उनके अपने देश वापस भेजने के बजाय पश्चिम बंगाल के सुधार गृहों में हिरासत में रखा जा रहा है. कलकत्ता हाइकोर्ट ने पत्र का स्वत: संज्ञान लिया. 2013 में मामले को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया. वर्तमान मामले की सुनवाई जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ द्वारा की जा रही है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है