कोलकाता.
महानगर के आमहर्स्ट स्ट्रीट में मई 2003 में सामूहिक दुष्कर्म का एक मामला सामने आया था. इस मामले पर करीब 22 साल बाद, जनवरी 2025 में सुनवाई शुरू हुई. हालांकि सुनवाई के बाद अदालत ने आरोपित दो लोगों को बरी कर दिया. ममले की सुनवाई के दौरान पीड़िता ने कहा कि दो दशक बाद, उसे याद नहीं है कि उस दिन क्या हुआ था और उसे किसने प्रताड़ित किया था. इसके बाद ही अदालत ने दोनों आरोपियों को बरी कर दिया. अदालत ने पुलिस जांच पर सवाल उठाते हुए कहा कि पुलिस ने ठीक से जांच नहीं की. अदालत ने कहा कि पुलिस ने जो गवाह पेश किये या जो सबूत दिये, उनसे अपराध का पता नहीं चल पाया. अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश रोहन सिन्हा ने अपने फैसले में कहा, ””अभियोजन पक्ष के किसी भी गवाह ने कथित घटना पर कोई प्रकाश नहीं डाला. दुर्भाग्य से, पीड़िता भी अपने पहले के बयान से पलट गयी है.”” इसका मतलब है कि किसी भी गवाह ने घटना के बारे में कुछ भी नहीं बताया. यहां तक कि पीड़िता ने भी पहले जो कहा था, उससे अलग बात कही.जज ने कहा कि पीड़िता अपराधियों को नहीं पहचान सकी, लेकिन हैरानी की बात है कि आइओ ने आरोपियों की पहचान के लिए कोई टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड नहीं करायी. इसका मतलब है कि पुलिस ने आरोपियों को पीड़िता के सामने पहचान के लिए नहीं रखा. जज ने यह भी कहा कि पीड़िता ने एक न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने कैमरे में गवाही दी थी. लेकिन उसका बयान अदालत में पेश नहीं किया गया.
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