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आपातकाल के दौरान सामूहिक नरसंहार हुआ था: बासुदेव बासु

वर्ष 1975. केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी. इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं. राजनीतिक संकट के बीच 25 जून, 1975 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने आपातकाल (इमरजेंसी) की घोषणा कर दी.

कुंदन झा, कोलकाता

वर्ष 1975. केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी. इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं. राजनीतिक संकट के बीच 25 जून, 1975 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने आपातकाल (इमरजेंसी) की घोषणा कर दी. आपातकाल की घोषणा होते ही पूरे देश में खलबली मच गयी. आपातकाल लगते ही नागरिक स्वतंत्रता को निलंबित, मीडिया पर सेंसरशिप और चुनावों को स्थगित कर दिया गया. पूरे देश में विपक्षी नेताओं की धर-पकड़ शुरू हो गयी. विपक्षी दलों के नेता आंदोलन नहीं कर सकें और सरकार के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकें, इसलिए उन्हें जेलों में बंद कर दिया गया. देश में आपातकाल 21 मार्च, 1977 तक लागू रहा. पिछले दिनों केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की है. आपातकाल के दौरान कोलकाता में वाम नेता बासुदेव बासु को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. आपातकाल के बारे में बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि यह गणतंत्र की हत्या थी. श्री बासु ने कहा कि उन्हें वर्ष 1976 में गिरफ्तार किया गया था. उनकी गलती बस यही थी कि वह केंद्र सरकार के जन- विरोधी नीतियों के खिलाफ लगातार आंदोलन कर रहे थे. वह कहते हैं कि आपातकाल के दौरान सामूहिक नरसंहार हुआ था. जेल के अंदर और बाहर हत्याएं हुई थीं. पुलिस विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर यातनाएं देती थी. वह दौर भूलने वाला नहीं है. रैलियां निकालने और प्रतिवाद सभा करने पर प्रतिबंध था. सभा होने से पहले ही आयोजकों को गिरफ्तार कर लिया जाता था. मीडिया पर भी सरकार का नियंत्रण था. उस दौर में कोलकाता सहित अन्य राज्यों के कई प्रतिष्ठित अखबार के संपादकों व रिपोर्टरों के अलावा उनके मालिकों को भी गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था. पूरे देश में खौफ का माहौल बना हुआ था. पत्रकार लिखने से बचते थे. मीडिया पर सरकार का पूर्ण नियंत्रण था. 21 महीने बाद वर्ष 1977 में आपातकाल खत्म हुआ. इसके बाद इंदिरा गांधी ने अचानक लोकसभा चुनाव कराने का ऐलान कर दिया. इस चुनाव में इंदिरा गांधी और संजय गांधी दोनों हार गये. आपातकाल लगाने का खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा और कांग्रेस महज 153 सीटों पर ही सिमट कर रह गयी. देश में जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी देसाई ने देश के चौथे प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली.

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