कोलकाता. तृणमूल कांग्रेस के प्रदेश महासचिव व प्रवक्ता कुणाल घोष के खिलाफ दायर अदालत की अवमानना मामले में उनके वकील कल्याण बनर्जी को विशेष बेंच के न्यायाधीश के सवालों का सामना करना पड़ा. सोमवार को मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीश सब्यसाची भट्टाचार्य ने सवाल उठाया कि सत्तारूढ़ पार्टी के प्रवक्ता के खिलाफ अदालत की अवमानना का मामला चलाने के लिए महाधिवक्ता से क्यों अनुमति लेनी होगी? सोमवार को कलकत्ता हाइकोर्ट के न्यायमूर्ति अरिजीत बनर्जी, न्यायमूर्ति सब्यसाची भट्टाचार्य और न्यायमूर्ति राजर्षि भारद्वाज की विशेष बेंच में मामले की सुनवाई हुई. मामले में कुणाल घोष की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता कल्याण बनर्जी ने कहा कि उनके मुवक्किल कुणाल घोष के खिलाफ नियम के मुताबिक मामला दर्ज नहीं किया गया. उनके मुताबिक नियम यह है कि अदालत की अवमानना का मामला दर्ज होने पर महाधिवक्ता से अनुमति लेनी होती है. कल्याण बनर्जी ने आरोप लगाया कि इस मामले में अदालत ने अपनी पहल पर मामला दर्ज किया और इसलिए कोई अनुमति नहीं ली गयी.
इस संदर्भ में न्यायाधीश सब्यसाची भट्टाचार्य ने कहा, “महाधिवक्ता राज्य का प्रतिनिधित्व करते हैं, तो क्या महाधिवक्ता राज्य की सत्ताधारी पार्टी के प्रवक्ता के तौर पर अनुमति दे सकते हैं?
दूसरी ओर, कल्याण बनर्जी ने कहा कि राज्य के वकील या जज भी किसी राजनीतिक पार्टी का समर्थन करते हैं. तो क्या वे भी पारदर्शी तरीके से फैसला करेंगे? यह सुनकर न्यायाधीश ने कहा कि महाधिवक्ता राज्य की ओर से बहस कर सकते हैं. सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति अरिजीत बनर्जी ने पूछा, “क्या आपका मतलब यह है कि राज्य के महाधिवक्ता की अनुमति के बिना यह स्वत: संज्ञान मामला नहीं हो सकता? ” हालांकि, मामले पर सुनवाई जारी है, इसकी अगली सुनवाई 17 जुलाई को होगी.
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