घाटशिला से लौटकर संजय मिश्र: गायब होने की कगार पर पहुंच चुकी धान की एक किस्म बाली भोजना को कोल्हान की महिला किसानों की मदद से एक बार फिर नया जीवन मिल गया है. गुणों की खान वाली धान की इस किस्म का नाम है बाली भोजना. 1970 के आसपास कोल्हान के घाटशिला, पोटका, राजनगर में पोष्टिक गुणों से भरपूर, कम पानी, कम खाद, बगैर कीटनाशक धान की किस्म बाली भोजना की खेती भरपूर होती थी. धान उबालने के बाद घर के ढेंकी में कूट कर चावल बना लिया जाता था. 1970 के बाद हरित क्रांति के दौर में हाइब्रिड धान के कारण यह चावल खेतों में गायब हो गया. महिला किसानों को धान की इस किस्म को लगाने के लिए प्रेरित करने का काम अन्नपूर्णा महिला किसान समिति के बैनर तले शुरू किया गया. अब स्थिति यह है कि करीब तीन सौ किसान बाली भोजना की खेती करते हैं. रांची के मोहरबादी में सरस मेला में बाली भोजना चावल बेच कर लौटे कार्तिक ने बताया कि देसी और ढेंकी कूटा चावल बोलने से ही खरीददार इसे खरीद लेते हैं. यह चावल वहां 120 रुपये किलो बिका है. स्टॉल पर उसने आइआइटी खड्गपुर की ओर से जारी वह सर्टिफिकेट भी लगा दिया था, जिसमें इस चावल के पौष्टिक गुणों का वैज्ञानिक अध्ययन है.
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लुप्त हो रही धान की किस किस्म को कोल्हान की महिलाओं ने दिया है नया जीवन?
लुप्त हो रही धान की किस्म बाली भोजना को झारखंड के कोल्हान की महिलाओं ने नया जीवन दिया है. घाटशिला में तीन सौ किसान बाली भोजना की खेती करते हैं.
Guru Swarup Mishrahttps://www.prabhatkhabar.com/
मैं गुरुस्वरूप मिश्रा. फिलवक्त डिजिटल मीडिया में कार्यरत. वर्ष 2008 से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से पत्रकारिता की शुरुआत. आकाशवाणी रांची में आकस्मिक समाचार वाचक रहा. प्रिंट मीडिया (हिन्दुस्तान और पंचायतनामा) में फील्ड रिपोर्टिंग की. दैनिक भास्कर के लिए फ्रीलांसिंग. पत्रकारिता में डेढ़ दशक से अधिक का अनुभव. रांची विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एमए. 2020 और 2022 में लाडली मीडिया अवार्ड.
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