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ग्लोबल वार्मिंग: हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने से बढ़ा समुद्र का जलस्तर, पानी को तरसेंगे लोग

हिमालय के ग्लेशियरों (Himalayan Glaciers) ने पिछले कुछ दशकों में, 400-700 साल पहले हुए ग्लेशियर विस्तार की तुलना में औसतन दस गुना अधिक तेजी से बर्फ खो दी है.

लंदन: ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. हिमालय के ग्लेशियर के पिघलने की यही रफ्तार अगर बरकरार रही, तो आने वाले दिनों में लाखों लोगों के सामने पेयजल का संकट उत्पन्न हो जायेगा. एक नये रिसर्च में यह खुलासा हुआ है.

रिसर्च में कहा गया है कि हिमालय के ग्लेशियर ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के कारण ‘असाधारण’ दर से पिघल रहे हैं, जिससे एशिया के लाखों लोगों की पानी की आपूर्ति (Water Supply) को खतरा पेश आ सकता है.

रिसर्च रिपोर्ट सोमवार को ‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ जर्नल (Scientific Reports Journal) में प्रकाशित हुई है. रिसर्च करने वालों ने पाया है कि हिमालय के ग्लेशियरों (Himalayan Glaciers) ने पिछले कुछ दशकों में, 400-700 साल पहले हुए ग्लेशियर विस्तार की तुलना में औसतन दस गुना अधिक तेजी से बर्फ खो दी है. ग्लेशियर विस्तार की उस अवधि को हिमयुग या ‘आइस एज’ (Ice Age) कहा जाता है.

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जर्नल ‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ में प्रकाशित अध्ययन से यह भी पता चलता है कि हिमालय के ग्लेशियर दुनिया के अन्य हिस्सों के ग्लेशियरों की तुलना में कहीं अधिक तेजी से पिघल रहे हैं. ब्रिटेन के लीड्स विश्वविद्यालय के अध्ययनकर्ताओं के नेतृत्व में एक टीम ने ‘लिटिल आइस एज’ (Little Ice Age) के दौरान हिमालय के 14,798 ग्लेशियरों के आकार और बर्फ की सतहों का पुनर्निर्माण किया.

उन्होंने गणना की कि ग्लेशियरों ने अपने क्षेत्र का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा खो दिया है. इनका दायरा 28,000 वर्ग किलोमीटर के शिखर से आज लगभग 19,600 वर्ग किमी तक सिकुड़ गया है. अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि उस अवधि के दौरान उन्होंने 390 घन किलोमीटर और घन किलोमीटर बर्फ भी खो दी है.

बर्फ पिघलने की वजह से बढ़ा समुद्र का जलस्तर

रिसर्च स्कॉलर्स ने कहा है कि बर्फ पिघलने के कारण बहे पानी ने दुनिया भर में समुद्र के स्तर को 0.92 मिलीमीटर और 1.38 मिलीमीटर के बीच बढ़ा दिया है. लीड्स विश्वविद्यालय से संबंधित शोध लेखक जोनाथन कैरविक ने कहा, ‘हमारे निष्कर्ष स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि हिमालयी ग्लेशियरों से बर्फ अब पिछली शताब्दियों की औसत दर की तुलना में कम से कम दस गुना अधिक पिघल रही है.’

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उन्होंने कहा, ‘बर्फ पिघलने की दर में यह तेजी केवल पिछले कुछ दशकों में उभरी है और इस कारण से मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन हो सकता है.’ हिमालय पर्वत शृंखला अंटार्कटिका और आर्कटिक के बाद दुनिया में ग्लेशियर के मामले में तीसरे स्थान पर है और इसे अक्सर ‘तीसरा ध्रुव’ कहा जाता है.

गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु के तट पर बसे करोड़ों लोग प्रभावित

रिसर्च करने वालों ने कहा है कि हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की गति का उन करोड़ों लोगों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है, जो भोजन और ऊर्जा के लिए एशिया की प्रमुख नदी प्रणालियों पर निर्भर हैं. उन्होंने कहा कि इन नदियों में ब्रह्मपुत्र, गंगा और सिंधु शामिल हैं.

Posted By: Mithilesh Jha

Prabhat Khabar Digital Desk
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