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राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा पाने की चाह में मांझी, उपेंद्र, मुकेश और चिराग, ओवैसी कर रहे सीटों पर मोलभाव

Bihar Election: छोटे दलों के नेताओं को राज्य स्तरीय पार्टी का लेबल पाने की चिंता है. अगर कम सीटों पर इस दर्जे की पार्टियां चुनाव लड़ीं तो उनके अस्तित्व पर संकट मंडराने लगेगा.

Bihar Election: पटना. बिहार में विधानसभा चुनाव भले अभी कुछ महीने दूर है. लेकिन, सीटों को लेकर दलों और गठबंधनों में खींचतान अभी से जोर पकड़ने लगी है. इस बार मोलभाव सिर्फ सत्ता की हिस्सेदारी को लेकर नहीं, बल्कि राजनीतिक अस्तित्व और पहचान को लेकर भी हो रहा है. दरअसल, राज्य की राजनीति में दखल रखने वाले कई नेता और उनकी पार्टियों को राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा नहीं है. दलों के नेताओं को राज्य स्तरीय पार्टी का लेबल पाने की चिंता है. अगर कम सीटों पर इस दर्जे की पार्टियां चुनाव लड़ीं तो उनके अस्तित्व पर संकट मंडराने लगेगा. इस कारण जीतनराम मांझी, चिराग पासवान, मुकेश सहनी, व उपेंद्र कुशवाहा अपनी-अपनी पार्टियों के लिए गठबंधन से अधिक सीटों की चाह रख रहे हैं. AIMIM के मुखिया ओवैसी भी अधिक सीटों पर लड़कर राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा पाने की कोशिश करेंगे.

क्या कहता है नियम

राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा प्राप्त करने के लिए चुनाव आयोग की ओर से मापदंड निर्धारित किये गये हैं. इस मापदंड के मुताबिक, राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा पाने के लिए विधानसभा चुनाव में कुल वैध मतों का छह फीसदी प्राप्त होना चाहिए. साथ ही विधानसभा में दो सीट जीतना भी अनिवार्य मापदंड रखा गया है.

क्या-क्या सुविधाएं मिलती हैं

  • पार्टी को चुनाव चिन्ह स्थायी रूप से मिल जाता है
  • उसी चिह्न पर राज्य भर में उम्मीदवार लड़ सकते हैं
  • गैर-मान्यता प्राप्त दलों को हर चुनाव में अस्थायी चिह्न मिलता है
  • पार्टी खर्च और उम्मीदवार खर्च अलग दर्ज किया जाता है
  • रैलियों और जनसभाओं के लिए सरकारी भवन, स्कूल ग्राउंड आदि की बुकिंग में प्राथमिकता मिलती है
  • सार्वजनिक पहचान और राजनीतिक विश्वसनीयता मिलती है
    क्या है मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा की स्थिति

जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा 2020 का विधानसभा चुनाव एनडीए गठबंधन से लड़ी थी. उन्हें चार सीटों पर जीत मिली थी. लेकिन, राज्य के कुल डाले गये वैध मतों में से छह फीसदी वोट उनकी पार्टी को नहीं मिला था.

वीआइपी को तीन सीटें पर क्राइटेरिया में नहीं आयी

बीते विधानसभा चुनाव में मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) को तीन सीटें मिली थीं. सहनी खुद चुनाव हार गये थे. तीन सीटें जीतने के बाद भी वो राज्य स्तरीय पार्टी की क्राइटेरिया में नहीं आयी.

उपेंद्र की पार्टी आरएलएसपी अब हो गयी रालोमो

बीते विधानसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली थी. तब उनकी पार्टी का नाम आरएलएसपी थी. अब उनकी पार्टी का नाम रालोमो हो गया है. उनकी पार्टी स्टेट लेबल का दर्जा पाने की किसी क्राइटेरिया में नहीं आयी.

AIMIM भी क्राइटेरिया में फिट नहीं बैठी

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम ) को बीते विधानसभा चुनाव में पांच सीटें मिली थीं. पांच में से चार विधायक राजद में शामिल हो गये हैं. चूंकि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी सीमित सीटों पर चुनाव लड़ी थी. इस कारण उनकी पार्टी भी इस क्राइटेरिया में फिट नहीं बैठी.

राज्य सरकार के समक्ष कर सकते हैं दावा

राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा मिलने के बाद राजनीतिक दल अलग से पार्टी कार्यालय के लिए भवन या जगह की मांग कर सकते हैं. इससे दलों का स्थायी पता हो जायेगा. अभी रालोमो उपेंद्र कुशवाहा के आवास और हम पार्टी का संचालन जीतनराम मांझी के आवास से होता है.

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Ashish Jha
Ashish Jha
डिजिटल पत्रकारिता के क्षेत्र में 10 वर्षों का अनुभव. लगातार कुछ अलग और बेहतर करने के साथ हर दिन कुछ न कुछ सीखने की कोशिश. वर्तमान में पटना में कार्यरत. बिहार की सामाजिक-राजनीतिक नब्ज को टटोलने को प्रयासरत. देश-विदेश की घटनाओं और किस्से-कहानियों में विशेष रुचि. डिजिटल मीडिया के नए ट्रेंड्स, टूल्स और नैरेटिव स्टाइल्स को सीखने की चाहत.

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