Bihar Election: पटना. कल्पना कीजिए कि राजद नेता राबड़ी देवी करीब 28 साल पहले इस प्रदेश की मुख्यमंत्री नहीं बनीं होती, तो क्या हम बता पाते कि हम उन राज्यों के क्लब में शामिल हैं, जिसने कम से कम एक महिला मुख्यमंत्री चुनी हैं. बिहार की महिलाओं के सियासी हक में यही एक मात्र उपलब्धि है. अन्यथा राज्य की राजनीति में महिलाएं धीरे-धीरे हाशिये पर फेकी जा रही हैं. यह एक कड़वी सच्चाई है कि बिहार के राजनीतिक इतिहास में एक भी दल ने किसी महिला को अपना प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनाया है. राजनीति में इनकी घोर उपेक्षा हैरत में डालती है. दरअसल हर दल महिला हितैषी होने का खम ठोकता है.
दलों के बड़े-बड़े दावे, सियासत में सच्चाई एकदम अलग
सियासी जानकारों के मुताबिक अहम बात यह है कि बिहार की राजनीति में महिलाओं की बेहतरी के लिए राजद ”माई-बहिन ” योजना ला रहा है. भाजपा ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” का नारा दे रही है. जदयू पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण देने का श्रेय लेता है. कांग्रेस सामाजिक बराबरी और वाम दल सर्वहारा वर्ग की बात करते हैं. इन सब के बावजूद किसी भी दल ने अभी तक के इतिहास में 50 प्रतिशत की बात तो दूर अपने कोटे की 30 फीसदी सीटों पर भी उम्मीदवार नहीं बनाया है. बिहार के राजनीतिक इतिहास में किसी भी पार्टी ने अपना प्रदेश अध्यक्ष पद किसी एक भी महिला को नहीं बिठाया है. ऐसे में राजनीतिक दलों के एजेंडे में महिला उत्थान की बात कागजी और सतही लगती है. कुल मिलाकर राज्य की लोकतांत्रिक राजनीति में महिलाएं आहिस्ता-आहिस्ता हाशिये पर जा रही हैं. आजादी के बाद से अभी तक एक महिला मुख्यमंत्री और एक उप मुख्यमंत्री ही राज्य दे पाया है.
एक भी महिला को नहीं दिया टिकट
फिलहाल बिहार विधानसभा का 18 वां विधानसभा चुनाव का काउंट डाउन शुरू हो चुका है. सभी की निगाहें सीट बंटवारे पर है. हालांकि यह बात अभी नैपथ्य में है. हालांकि अभी तक की सुगबुगाहट में ”जिताऊ” उम्मीदवार की तलाश है. जिसकी कसौटी पर महिलाएं सामान्य तौर पर खरी नहीं उतरती हैं. इस संदर्भ में चिंता में डालने वाली बात ये है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में बिहार में 58 सीटें ऐसी थीं, जहां एक भी महिला प्रत्याशी को चुनाव मैदान में नहीं उतारा गया. सियासी जानकारों के अनुसार इसे दलीय राजनीति में आधी आबादी की उपेक्षा का अघाेषित एजेंडा माना जा सकता है.
पुरुषों की तुलना में महिलाओं की वोटिंग अधिक
इसमें हैरत की बात ये है कि बिहार में 2020 में हुए पिछलीे विधानसभा के दौरान महिला वोटर अपने घर की दहलीज लांघकर अधिक वोट डालने बूथ पर पहुंची थीं. यानी पुरुष वोटर की तुलना में महिला वोटरों का टर्नआउट अधिक रहा. पिछले चुनाव में कुल पुरुष मतदाताओं में से 54.45 प्रतिशत ने ही वोट डाले थे. जबकि कुल महिला मतदाताओं में से से करीब 59.69 प्रतिशत ने वोटिंग की थी. बात साफ है कि महिलाएं वोट देने में पुरुषों की तुलना में आगे रहीं . इसी तरह पिछले चुनावों में भी देखा गया. उदाहरण के लिए 2010 में महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत 54.49 था, जबकि पुरुषों का 51.12 रहा. इसी तरह 2015 में 60 फीसदी से ज्यादा महिलाओं ने वोटिंग में भाग लिया, जबकि पुरुषों का मतदान प्रतिशत सिर्फ 53 रहा.
महिला विधायकों की लगातार घट रही संख्या
महिला मतदाताओं के उत्साह जनक इन आंकड़ों के हिसाब से विधानसभा में महिलाओं की घटती संख्या चिंता की बात है. बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में सभी दलों की कुल मिलाकर 26 महिला उम्मीदवारों को जीत मिली. यह संख्या पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में दो कम रही.वर्ष 2015 के विस चुनाव में 28 महिलाएं चुनाव जीती थीं. वर्ष 2010 में 34 महिला विधायक चुनी गयी थीं. इस तरह महिला विधायकों की संख्या लगातार कम होती जा रही है. फिलहाल ये आंकड़े चिंताजनक हैं. खासकर उस दिशा में जब राज्य में महिला वोटरों का टर्न आउट पुरुषों की तुलना में अधिक है. अंत में क्या यह आश्चर्य का विषय नहीं है कि बिहार के चुनावी इतिहास में अब तक 2020 तक 258 महिलाएं विधायक बनी हैं.
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