Bihar Politics: पटना. मंडल वाद की राजनीति करने वाले राजद ने कभी मंडल परिवार के किसी सदस्य को तरजीह नहीं दी. मंडलवाद की चादर ओढ़ लालू प्रसाद देश के ताकतवर राजनीतिक हस्ती बने. पत्नी राबड़ी देवी बिहार की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी. एक बेटा उप मुख्यमंत्री और दूसरा बेटा सरकार में मंत्री पद सुशोभित किया. बेटी लोकसभा और राज्यसभा की सदस्य बनीं. इसके उलट बीपी मंडल का परिवार पिछले तीन दशकों से मंडल राजनीति में उपेक्षित है और 15 वर्षों से एक विधायक की सीट पाने के लिए संघर्ष कर रहा है.

बीपी मंडल ने लिया था लालू का पक्ष
बीपी मंडल 1977 में जनता पार्टी के राज्य संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष थे. जब लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारी तय हो रही थी, उस समय तत्कालीन कई नेताओं ने लालू प्रसाद के दावेदारी का अंदरखाने विरोध किया था. लेकिन स्व बीपी मंडल की पहल पर लालू प्रसाद को छपरा से टिकट दी गयी और वो जीत कर लोकसभा पहुंचे.
बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं बीपी मंडल
बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल अंतिम बार 1972 में बिहार विधानसभा के सदस्य हुए. इसके पहले वे 1968 में कम अवधि के लिए बिहार के मुख्यमंत्री भी बने. बाद में 1979 में उन्हें तत्कालीन केंद्र सरकार ने दूसरे बैकवर्ड कमीशन का अध्यक्ष नियुक्त किया, उनकी सिफारिशों को मंडल कमीशन कहा गया. बी मंडल के पांच बेटे हुए. इनमें से एक मणींद्र कुमार मंडल फरवरी 2005 और नवंबर 2005 में मधेपुरा से विधायक हुए.
जदयू ने पुत्र और अब पौत्र को मैदान में उतारा
बीपी मंडल के बाद उनके पुत्र मणींद्र कुमार मंडल को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने 2005 के फरवरी और अक्तूबर में हुए विधानसभा के चुनाव में उम्मीदवार बनाया. दोनों ही चुनाव में उनकी जीत हुई और वे विधानसभा पहुंचे. 2010 के चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कहने के बावजूद मणींद्र कुमार मंडल को जदयू का टिकट नहीं मिला. उस समय जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव थे, जिन्हें मंडल मसीहा भी कहा जाता था. जिन्हें पार्टी की उम्मीदवारी मिली, वह भी चुनाव हार गये. शरद की इस जिद ने न केवल मंडल परिवार को सदन से दूर कर दिया, बल्कि जदयू की यह सीट राजद की झोली में गयी.
2015 में राजद की सीटिंग सीट बन गया मधेपुरा
जब 2015 के विधानसभा चुनाव हुए, उस समय महागठबंधन आकार ले चुका था. इस समय जदयू और राजद साथ थे. राजद का दावा सीटिंग सीट पर रहा और मधेपुरा जदयू के हाथ से निकल राजद की झोली में चला गया. भाजपा ने यहां विजय कुमार को उम्मीदवार बनाया था, जिन्हें हार मिली. 2020 के विधानसभा चुनाव में बीपी मंडल के पौत्र और मणींद्र कुमार मंडल के पुत्र निखिल मंडल को जदयू ने उम्मीदवार बनाया. हालांकि, उन्हें जीत नहीं मिल पायी, मगर उन्हें मतदाताओं का भरपूर प्यार मिला. अभी मणींद्र कुमार मंडल के समधी नरेंद्र नारायण यादव जदयू के विधायक हैं और बिहार विधानसभा के उपाध्यक्ष हैं.
मंडल के पौत्र निखिल जदयू से रहे हैं उम्मीदवार
बीपी मंडल के पौत्र निखिल मंडल बताते हैं, बीपी मंडल के पांच बेटे हुए इनमें राजनीति में मणींद्र कुमार मंडल ही आये. लेकिन, इसके इतर भी उनके चाचा ज्योति मंडल, चचेरे भाई आनंद मंडल, सूरज मंडल और अरु़ण मंडल विभिन्न दलों से चुनाव लड़े, लेकिन उन्हें राजद समेत किसी बड़ी दल ने उम्मीदवार नहीं बनाया.
क्षेत्र में ही डटे हैं निखिल
निखिल मंडल कहते हैं, पिछले कई महीनों से वे क्षेत्र में ही हैं, यानि मधेपुरा में ही हैं. लोगों से मिलना अच्छा लग रहा है. लोग भी उनकी बातों को सुन रहे हैं. दिल्ली विवि के छात्र रहे निखिल मंडल बताते हैं, उनके परपितामह यानी बीपी मंडल के पिता रास बिहारी मंडल यादव महासभा के संस्थापक सदस्य थे और वे जनउ पहनो जैसे सामाजिक आंदोलन का नेतृत्व भी किया था.
राजद के चंद्रशेखर हैं मधेपुरा के विधायक
राजद के प्रो चंद्रशेखर 2020 में लगातार तीसरी बार मधेपुरा से विधायक निर्वाचित हुए हैं. इसके पहले उन्हें पहली बार 2010 में फिर दूसरी बार 2015 में जीत मिली.
मुंगेरी लाल के परिजन भी सदन से हैं बाहर
देश में पिछड़े वर्ग के लिए बने दो आयोगों के अध्यक्ष रहे मुंगेरी लाल और बिंदेश्वरी प्रसाद का परिवार पिछड़ावाद के इस युग में ही राजनीतिक उपेक्षा का शिकार हो गया. बीपी मंडल के परिवार के एक भी सदस्य फिलहाल न तो लोकसभा या राज्यसभा के सदस्य हैं और ना ही बिहार विधानमंडल की सदस्यता उन्हें है. यही हाल मुंगेरी लाल के परिजनों की रही है. मुंगेरी लाल की सिफारिशों के आधार पर ही कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में आरक्षण की नयी परिभाषा गढ़ी थी. जननायक कर्पूरी ठाकुर की दूसरी पीढ़ी राजनीति में सक्रिय है. उनके बेटे रामनाथ ठाकुर को जदयू ने राज्यसभा का सदस्य बनाया है और वे केंद्र सरकार में मंत्री हैं.
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