Bihar Politics: पटना. बिहार मतदाता सूची पुनरीक्षण को लेकर राजनीति एक बार फिर गरमा गई है. मतदाता सूची से नामों की भारी कटौती का दावा विपक्ष कर रहा है. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार मतदाता सूची पुनरीक्षण के तहत करीब 35 लाख वोटरों के नाम हटाए जा रहे हैं, कांग्रेस के इस आंकड़े ने बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम ने कहा कि यह संख्या हकीकत से बहुत कम बताई जा रही है. उनका दावा है कि कम से कम 3 करोड़ से अधिक मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटाए जा सकते हैं, जिससे चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं.
तीन करोड़ नाम हटाने की साजिश
पत्रकारों से बात करते हुए बिहार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम ने कहा कि राज्य से बाहर काम करने वाले करोड़ों मजदूरों के नाम इस पुनरीक्षण के दौरान बिना उचित प्रक्रिया के वोटर लिस्ट से हटाए जा रहे हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि बिहार में 2 करोड़ से अधिक रजिस्टर्ड प्रवासी मजदूर हैं, जो देश के अन्य हिस्सों में रोजगार के लिए गए हैं. इसके अलावे एक करोड़ से ज्यादा गैर-पंजीकृत श्रमिक भी बाहर रहते हैं, जबकि ये लोग स्थायी रूप से बाहर नहीं गए हैं, सिर्फ काम करने बाहर गए हैं,तो क्या उन्हें मतदाता सूची से हटाना जायज है. आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह नियमबद्ध और पारदर्शी तरीके से की जा रही है, और किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से सूची से नहीं हटाया जा रहा.
सत्यापन की प्रक्रिया अपूर्ण और एकतरफा
उन्होंने यह भी कहा कि बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) सिर्फ एक ही फॉर्म लोगों को दे रहे हैं, जिससे मतदाता सत्यापन की प्रक्रिया अपूर्ण और एकतरफा बन रही है. इससे बड़ी संख्या में लोगों को जानकारी दिए बिना ही लिस्ट से बाहर कर दिया जा रहा है. वही चुनाव आयोग ने इस मुद्दे पर स्पष्ट किया है कि राज्य में 25 जून से 25 जुलाई तक चलने वाले मतदाता सूची गहन पुनरीक्षण अभियान के तहत 12.55 लाख मतदाताओं की मौत हो चुकी है, 17.37 लाख मतदाता राज्य से स्थायी रूप से बाहर चले गए हैं और 5.76 लाख लोग एक से अधिक स्थानों पर पंजीकृत पाए गए हैं, जिनका नाम हटाया जाएगा. इस तरह कुल मिलाकर 35 लाख नामों की कटौती तय मानी जा रही है.
आधार और राशन कार्ड की भूमिका
राजेश राम ने यह भी आरोप लगाया कि चुनाव आयोग ने मतदाता पहचान को सत्यापित करने के लिए जिन 11 दस्तावेजों को मान्य किया है, उनमें पहले आधार कार्ड और राशन कार्ड शामिल नहीं किए गए थे. इससे भी बड़ी संख्या में मतदाताओं की पहचान में भ्रम की स्थिति बनी और नाम हटाने की प्रक्रिया में अनावश्यक विसंगतियां उत्पन्न हुईं. उन्होंने कहा कि इस विषय पर महागठबंधन ने आंदोलन किया था, लेकिन सरकार और आयोग ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट रिवीजन को लेकर यह विवाद एक राजनीतिक तूफान का संकेत हो सकता है.
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