Bihar Politics: पटना. बिहार की राजनीति बदल रही है. एक समय था जब बाहुबली बिहार में सत्ता तय करते थे. आनंद मोहन, अनंत सिंह, सूरजभान और शहाबुद्दीन ये वो चार नाम हैं, जिनकी मर्जी के बिना सरकार एक दारोगा का भी तबदाला नहीं कर पाती थी. 2005 के बाद धीरे-धीरे इन बाहुबलियों पर कार्रवाई तेज हुई और कईयों को सजा मिली. जब इनमें से कई खुद चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं रहे तो किसी ने बेटे तो किसी ने पत्नी को चुनावी मैदान में उतारा. लेकिन इस साल के अंत में होनेवाली बिहार विधानसभा चुनाव में इन बाहुबलियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी राजनीतिक विरासत को बचाना है.
बेटे की सीट को लेकर परेशान हैं आनंद मोहन
आनंद मोहन की अस्सी और नब्बे के दशक में जिस तरह से राजनीतिक जलवा था, वो अब फीका पड़ा है. शिवहर के आसपास के इलाके में आनंद मोहन का राजपूत समुदाय के बीच मजबूत पकड़ मानी जाती थी, जिसके सहारे वो अपने राजनीतिक वर्चस्व को भी कायम करने में सफल रहे. तिरहुत डिवीजन का सियासी मिजाज में पूरी तरह से आनंद मोहन तय करते थे, लेकिन अब स्थिति बदल गई है. आंनद मोहन को उम्र कैद की सजा हुई थी, जिसके बाद वो चुनावी मैदान से बाहर आ गए. आनंद मोहन की पत्नी जरूर जेडीयू से लोकसभा सांसद हो गई हैं, लेकिन उनके बेटे की नाव सियासी मंझधार में फंसी हुई है. जेडीयू ने अभी तक टिकट का कोई सिंग्नल नहीं दिया है. बेटे चेतन आनंद 2020 में आरजेडी से विधायक बने थे. इस तरह से आनंद मोहन का परिवार जेडीयू में जरूर है, लेकिन सियासी चर्चा में नहीं है. आंनद मोहन के लिए अपने किसी करीबी को पहले की तरह चुनाव लड़ाना आसान नहीं है.
अनंत सिंह खुद लड़ेंगे या पत्नी तय नहीं
बिहार के मोकामा क्षेत्र में बाहुबली अनंत सिंह जेल से अंदर और बाहर आने का सिलसिला लगातार जारी है. कोर्ट से सजा होने के चलते ही पहले ही अपनी विधायकी गंवा चुके हैं और उनकी सियासी विरासत उनकी पत्नी नीलम देवी संभाल रही है. आनंद सिंह अब तक 4 बार विधायक रह चुके हैं. अनंत सिंह दो बार जदयू के टिकट पर चुनाव जीते हैं तो एक बार निर्दलीय चुनाव जीतने में कामयाब हुए, लेकिन अब चुनाव सीन से बाहर हैं. जेडीयू से अलग होकर 2020 में आरजेडी से पहले अनंत सिंह खुद मोकासा से विधायक बने और जब सजा हुई तो उन्होंने पत्नी नीलम देवी को विधायक बनवाने में सफल रहे. 2024 के चुनाव से ठीक पहले अनंत सिंह का दिल जेडीयू के लिए पसीज गया और उन्होंने ललन सिंह को जीतने में अहम रोल अदा किया. इसके बाद ही नीलम देवी ने सियासी पैंतरा बदलते हुए जेडीयू के खेमे में खड़ी नजर आ रही हैं, लेकिन नीतीश कुमार चुनाव में प्रत्याशी बनाएंगे कि नहीं ये कन्फर्म नहीं है.
पत्नी या बेटा कौन संभालेगा शहाबुद्दीन की विरासत
लालू यादव के दौर में बिहार में बाहुबली शहाबुद्दीन की सियासी तूती बोला करती थी, लेकिन दो दशक पहले सत्ता के परिवर्तन होने के साथ उनकी उलटी गिनती शुरू हो गई थी. शहाबुद्दीन को पहले सजा हुई और उसके बाद जेल में रहते हुए कोरोना काल में मौत हो गई. शहाबुद्दीन की विरासत पहले उनकी पत्नी हिना शहाब ने संभाली, लेकिन चुनावी बाजी जीत नहीं सकी. आरजेडी छोड़कर हिना शहाब ने 2024 में निर्दलीय लोकसभा चुनाव लड़ी, उसके बाद भी जीत का स्वाद नहीं चख सकी. शहाबुद्दीन का सियासी दबदबा पूरी तरह से सिवान इलाके में कमजोर पड़ा है. शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब और उनके बेटा ओसामा शहाब आम चुनाव के बाद आरजेडी में शामिल हो गए, लेकिन 2025 के विधानसभा चुनाव में सीट और टिकट दोनों ही अभी तक कन्फर्म नहीं है. हालांकि, हिना शहाब ने अपने बेटे ओसामा को रघुनाथपुर सीट से चुनाव लड़ाने की तैयारी में है, लेकिन वहां से आरजेडी से विधायक बने हरिशंकर यादव हैं. ऐसे में सीट को लेकर पेंच फंस सकता है, क्योंकि आरजेडी के लिए हरिशंकर यादव का टिकट काटना आसान नहीं होगा.
न पार्टी में दम न इलाके में रुतबा, क्या करेंगे सूरजभान
बिहार के बाहुबलियों में सुरजभान सिंह का अपना दबदबा हुआ करता था. मोकामा से विधायक रहे हैं और मुंगेर से उनकी पत्नी सांसद रही हैं. सूरजभान सिंह को हत्या के मामले में सजा हो चुके हैं, जिसके चलते वो खुद चुनाव नहीं लड़ सकते हैं. इसके अलावा मुंगेर बेल्ट में ललन और अनंत सिंह का दबदबा बढ़ने के साथ ही सुरजभान का राजनीतिक असर कम होता गया. सूरजभान का परिवार फिलहाल चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी (आर) में है, लेकिन एनडीए का हिस्सा जेडीयू और एलजेपी दोनों है. मुंगेर सीट से अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी विधायक हैं, लेकिन आरजेडी को छोड़कर जेडीयू में है. ऐसे में मोकामा सीट से एनडीए के टिकट पर सुरजभान की पत्नी वीणा देवी चुनाव लड़ेंगी या फिर अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी. इस तरह से दोनों ही बाहुबली परिवार का सियासी साख दांव पर लगी है, लेकिन राजनीतिक दशा और दिशा तय नहीं है.
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