Brahampur Assembly constituency: बिहार के बक्सर जिले में स्थित ब्रह्मपुर विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास बेहद दिलचस्प और उतार-चढ़ाव से भरा रहा है. यह सीट 1952 से अब तक कई दलों और नेताओं को विधानसभा तक पहुंचा चुकी है. शुरुआत में इस क्षेत्र पर कांग्रेस का दबदबा था. 1952 में ललन प्रसाद सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर पहली बार जीत दर्ज की. इसके बाद 1972 और 1980 में ऋषिकेश तिवारी ने भी कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में इस सीट पर विजय हासिल की. 1985 में भी कांग्रेस ने इस सीट को अपने कब्जे में रखा. हालांकि, बीच-बीच में इस सीट पर अन्य दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों की भी पकड़ दिखाई दी. 1962 में बुधिनाथ सिंह ने निर्दलीय जीत दर्ज कर सबको चौंका दिया, जबकि 1969 में लोक तांत्रिक कांग्रेस ने इस सीट पर कब्जा जमाया.
क्या है राजनीतिक इतिहास ?
1977 में जब देश भर में इमरजेंसी के विरोध में लहर चली, तब ब्रह्मपुर ने भी जनता पार्टी का समर्थन किया और रामाकांत ठाकुर विजयी हुए. 1990 में भाजपा के स्वामीनाथ तिवारी ने जीत दर्ज की, जो पार्टी के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी. 2010 में भाजपा ने फिर से वापसी की जब दिलमरनी देवी ने सीट अपने नाम की. 1995 में जनता दल के अजीत चौधरी ने यहां से चुनाव जीता और 2000 में यह सीट राष्ट्रीय जनता दल के खाते में गई. 2005 के दोनों चुनावों का परिणाम स्पष्ट नहीं है, लेकिन उस समय एनडीए और राजद-जदयू गठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला रहा.
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क्या हैं मौजूदा हालात ?
2015 और 2020 में राजद के शंभू नाथ यादव ने लगातार दो बार जीत दर्ज की, जिससे स्पष्ट होता है कि वर्तमान में राजद की पकड़ इस क्षेत्र में मजबूत है. जातीय समीकरणों की बात करें तो ब्रह्मपुर में यादव, भूमिहार, ब्राह्मण, दलित और मुसलमान वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं, और इसी वजह से हर चुनाव में यहां का परिणाम बदलता रहता है. अब 2025 के चुनाव नजदीक हैं और सवाल उठ रहा है कि क्या शंभू नाथ यादव हैट्रिक लगा पाएंगे या भाजपा-जदयू गठबंधन कोई नया समीकरण रचेगा. कुल मिलाकर ब्रह्मपुर विधानसभा सीट बिहार की बदलती राजनीति का आईना है, जहां न केवल दल बदलते हैं, बल्कि जनादेश भी तेजी से करवट लेता है.