Jamui Assembly constituency: जमुई विधानसभा सीट बिहार की एक महत्वपूर्ण और राजनीतिक रूप से सक्रिय सीट है, जिसका इतिहास सत्ता परिवर्तन और विभिन्न दलों के उतार-चढ़ाव से भरा रहा है. 1957 में स्थापित इस सीट पर शुरुआती वर्षों में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और वामपंथी दलों का दबदबा रहा. 1967 से 1977 तक त्रिपुरारी प्रसाद सिंह ने लगातार चार बार जीत दर्ज की, जबकि 1980 के दशक में निर्दलीय और कांग्रेस के बीच मुकाबले हुए. 1990 के दशक में जनता दल और जदयू की सक्रियता बढ़ी और नेताओं के चेहरे भी बदले. 2005 में यह सीट आरजेडी और जेडीयू के बीच खींचतान का केंद्र रही, जहां विजय प्रकाश यादव और अभय सिंह जैसे नेताओं ने जीत दर्ज की. 2010 में जदयू की वापसी हुई लेकिन 2015 में आरजेडी के विजय प्रकाश यादव फिर से जीतकर आए.
श्रेयसी सिंह ने हासिल की बड़ी जीत
2020 में इस सीट पर पहली बार भाजपा ने अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई, जब अंतरराष्ट्रीय शूटर और पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत दिग्विजय सिंह की बेटी श्रेयसी सिंह ने आरजेडी के विजय प्रकाश यादव को लगभग 41,000 वोटों से हराकर बड़ी जीत हासिल की. इस जीत के साथ भाजपा ने इस सीट पर नया इतिहास रचा. जातीय समीकरण की बात करें तो जमुई में यादव, मुस्लिम, अनुसूचित जाति और राजपूत समुदाय का वर्चस्व है, जो चुनावी नतीजों को प्रभावित करता है. 2024 के लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र की लोकसभा सीट से लोजपा (रामविलास) के अरुण भारती की जीत ने एनडीए की पकड़ को और मजबूत किया है, जिससे भाजपा को आगामी विधानसभा चुनाव में फायदा मिल सकता है.
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इस बार क्या होंगे मुद्दे ?
हालांकि, विकास, रोजगार और क्षेत्रीय अपेक्षाओं को लेकर मतदाताओं की चिंताएं बनी हुई हैं, खासकर ग्रामीण आबादी और अनुसूचित जातियों के बीच इसलिए 2025 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की विधायक श्रेयसी सिंह के लिए चुनौती यह होगी कि वे अपनी लोकप्रियता को बनाए रखते हुए विकास कार्यों के दम पर जनसमर्थन जुटा पाएं. कुल मिलाकर, जमुई विधानसभा सीट एक बार फिर रोचक मुकाबले का गवाह बन सकती है, जहां जातीय समीकरण, विकास और उम्मीदवार की छवि प्रमुख कारक होंगे.