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Supaul Assembly constituency: जहां बिजेंद्र यादव के असर तले भाजपा आज भी तलाश रही जमीन

Supaul Assembly constituency: बिहार के सीमांचल में बसा सुपौल विधानसभा क्षेत्र न सिर्फ भौगोलिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण से भी यह इलाका दशकों से तमाम उठापटक और बदलाव का गवाह रहा है. यहां की सियासत एक तरफ जहां जातीय समीकरणों से तय होती रही, वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे कद्दावर नेताओं ने भी जन्म लिया जिन्होंने इस क्षेत्र को राज्य की राजनीति में एक विशेष पहचान दिलाई. इन नेताओं में सबसे प्रमुख नाम है—बिजेंद्र प्रसाद यादव का, जिनकी छाया में यह क्षेत्र बीते चार दशकों से सियासी रूप से पनपता रहा है.

Supaul Assembly constituency: 1980 के दशक में जब राजनीति वैचारिक आंदोलनों और जनसंघर्षों के दौर से गुजर रही थी, तब बिजेंद्र यादव ने सुपौल से अपनी सियासी पारी शुरू की. समाजवादी सोच और जमीनी पकड़ के बल पर उन्होंने विधानसभा में कदम रखा और फिर मुड़कर नहीं देखा. जनता दल, आरजेडी और बाद में जेडीयू के साथ उनका सफर चलता रहा, लेकिन उनके प्रभाव में कोई कमी नहीं आई. चाहे सत्ता में रहे हों या विपक्ष में, बिजेंद्र यादव ने सुपौल को अपनी राजनीति का केंद्र बनाए रखा और इसे विकास, स्थिरता और जातीय संतुलन के प्रतीक क्षेत्र में तब्दील कर दिया.

भाजपा करती रही संघर्ष 

लेकिन वहीं दूसरी ओर, एक राष्ट्रीय पार्टी—भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)—आज भी सुपौल की जमीन पर अपनी जड़ें मजबूत करने की कोशिश कर रही है. भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती रही है कि यह सीट लगातार उन हाथों में रही, जो या तो समाजवादी रहे या फिर एनडीए के भीतर उनके सहयोगी. जब 2005 के बाद नीतीश कुमार और भाजपा का गठबंधन बना, तब सुपौल की सीट स्वाभाविक रूप से जेडीयू के हिस्से में रही और बिजेंद्र यादव एनडीए का हिस्सा बन गए. ऐसे में भाजपा को यहां कभी सीधी सियासी लड़ाई का मौका ही नहीं मिला.

बिजेंन्द्र यादव का रहा दबदबा 

इसके साथ ही, सुपौल में भाजपा के पास आज तक कोई ऐसा स्थानीय चेहरा नहीं रहा जो बिजेंद्र यादव के कद का मुकाबला कर सके. जातीय समीकरणों में यादव, मुस्लिम और अति पिछड़े वर्गों की मजबूत मौजूदगी ने भी भाजपा को बार-बार हाशिये पर धकेला. चुनावी मौसम में पार्टी भले ही प्रचार के मैदान में दिखती हो, लेकिन जनसमर्थन और संगठनात्मक ताकत के मामले में वह अब भी पीछे है.

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बिजेंद्र प्रसाद यादव 

बिजेंद्र प्रसाद यादव का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को सुपौल जिले में हुआ था. वे दसवीं तक शिक्षित हैं और एक साफ-सुथरी छवि वाले नेता माने जाते हैं. उन्हें बिहार सरकार में ऊर्जा, जल संसाधन, योजना, वित्त जैसे प्रमुख विभागों का मंत्री रहने का अनुभव है. 2020 से 2022 तक वे योजना एवं विकास मंत्री भी रहे. उनका लंबा राजनीतिक अनुभव और लगातार जन समर्थन उन्हें सुपौल की राजनीति में एक प्रभावशाली नेता बनाता है.

Nishant Kumar
Nishant Kumar
निशांत कुमार पिछले तीन सालों से डिजिटल पत्रकारिता कर रहे हैं. दैनिक भास्कर (बक्सर ब्यूरो) के बाद राजस्थान पत्रिका के यूपी डिजिटल टीम का हिस्सा रहें. वर्तमान में प्रभात खबर डिजिटल के बिहार टीम में काम कर रहे हैं. देश-विदेश की कहानियों पर नजर रखते हैं और साहित्य पढ़ने-लिखने में रुचि रखते हैं.

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