General Knowledge: भारत में जल्द ही 16वीं जनगणना होने वाली है और यह जनगणना कई मायनों में खास होगी. इस बार जनगणना पूरी तरह डिजिटल होगी और इसमें जातिगत आंकड़े भी शामिल किए जाएंगे. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जब देश आजाद हुआ था और पहली बार जनगणना हुई थी, उस वक्त देश के लोग कैसे हालात में जी रहे थे?
आजादी के बाद की पहली जनगणना में क्या था हाल?
साल 1951 में जब पहली जनगणना हुई, उस वक्त देश की आबादी करीब 34 करोड़ थी. आज यह आंकड़ा 140 करोड़ से पार कर चुका है. उस समय औसत वार्षिक आय महज 280 रुपये थी. आज यह बढ़कर करीब 1.30 लाख रुपये तक पहुंच चुकी है.
मीडिया रिपोर्ट्स और इतिहासकारों के अनुसार, उस समय करीब 25 करोड़ लोग गरीब थे. यानी देश की लगभग 80% आबादी गरीबी में जीवन बिता रही थी. उस दौर में लोगों को दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल था.
गरीबी के आंकड़े कैसे तय होते हैं?
भारत में गरीबी का आधिकारिक डेटा 1956 से माना जाता है, जब बीएस मिन्हास कमेटी ने पहली बार योजना आयोग को रिपोर्ट दी थी. उस रिपोर्ट के अनुसार, 21.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे थे.
बाद में रंगराजन कमेटी ने गरीबी की परिभाषा तय की—यदि कोई व्यक्ति शहर में प्रतिदिन 47 रुपये या गांव में 32 रुपये से कम खर्च करता है, तो वह गरीब माना जाएगा. हालांकि इस पर काफी विवाद भी हुए.
अब कितनी है गरीबी?
ताजा सरकारी आंकड़े 2011-12 के हैं, जिनके अनुसार देश में 26.9 करोड़ लोग गरीब हैं. हालांकि अब जनसंख्या ज्यादा हो चुकी है, लेकिन गरीबी की प्रतिशत दर पहले के मुकाबले काफी घटी है.
नई जनगणना से उम्मीद है कि हमें गरीबी और सामाजिक स्थिति की और सटीक तस्वीर मिलेगी.
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