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Jyotiba Phule Jayanti : भारत के महान समाज सुधारक थे महात्मा फुले, आखिर क्यों बनाया सत्यशोधक समाज?

आज हमारे भारतीय समाज में अगर जाति आधारित भेदभाव, ऊंच-नीच की भावना कम हुई है, तो उसमें ज्योतिबा फुले जैसे महापुरुषों की भूमिका सबसे अहम रही है. 11 अप्रैल, 1827 के दिन महात्मा फुले का जन्म हुआ था. जानें कैसे उन्होंने समाज में सकारात्मक बदलाव लाया.

Jyotiba Phule Jayanti : समाज के वंचित व पीड़ित तबके और महिलाओं के उत्थान के लिए ज्योतिबा फुले व उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले ने अपना पूरा जीवन न्योछावर कर दिया. महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती हर वर्ष 11 अप्रैल को मनायी जाती है. महात्मा फुले का जन्म महाराष्ट्र के सतारा में हुआ था. सब्जी माली परिवार से ताल्लुक रखने वाले ज्योतिबा फुले का परिवार सतारा से पुणे आ गया था और फूलों का व्यापार करने लगा था. ज्योतिबा फुले बचपन से ही प्रतिभाशाली थे, लेकिन वित्तीय कठिनाइयों के कारण उन्हें कम उम्र में स्कूल छोड़ना पड़ा. हालांकि, बाद में जब उन्हें शिक्षा की ताकत का एहसास हुआ तो वर्ष 1841 में पुणे के स्कॉटिश मिशन हाई स्कूल में फिर से दाखिला लिया और वहां से पढ़ाई पूरी की. इसी दौरान उनकी शादी सावित्रीबाई से हो चुकी थी. महात्मा फुले ने माता सावित्रीबाई को भी घर पर ही पढ़ना-लिखना सिखाया, क्योंकि तब महिलाओं को स्कूल जाकर पढ़ने से रोका जाता था.

वर्ष 1848 में खोला लड़कियों के लिए स्कूल

महात्मा फुले ने छुआछूत, अंधविश्वास, धार्मिक रूढ़िवादिता, संकीर्ण विचार, पुरोहितवाद आदि का लगातार पुरजोर विरोध किया. इस क्रम में 1 जनवरी, 1848 को महात्मा फुले और सावित्रीबाई फुले ने मिलकर पुणे के भिड़े वाड़ा में लड़कियों के लिए पहला स्वदेशी रूप से संचालित स्कूल खोला. उस स्कूल में दोनों शिक्षण कार्य भी करते थे. उस समय सावित्रीबाई फुले की उम्र महज 17 वर्ष की थी. लड़कियों के लिए खोले गये स्कूल में उन्होंने शिक्षिका के रूप में पढ़ाना शुरू किया. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि समाज के खौफ की वजह से शुरुआत में उस स्कूल में सिर्फ नौ लड़कियां पढ़ने के लिए तैयार हुई. धीरे-धीरे यह संख्या बढ़कर 25 हो गयी. वर्ष 1851 तक दोनों ने मिल कर पुमे में तीन स्कूल और खोले, जिनमें लड़कियों को शिक्षा दी जाती थी. हालांकि, 1857 के विद्रोह के बाद धन की कमी के कारण ये स्कूल बंद हो गये. महात्मा फुले ने विधवाओं की भी स्थिति को समझा और युवा विधवाओं के लिए आश्रम की स्थापना की. बाद में उन्होंने विधवा पुनर्विवाह के लिए लोगों को जगाना शुरू किया.

वर्ष 1873 में सत्यशोधक समाज का गठन

महात्मा फुले समझ चुके थे कि सदियों से चली आ रही कुरीतियों से लड़ने के लिए संगठित होना जरूरी है. यही वजह रही कि उन्होंने वर्ष 1873 में ‘सत्यशोधक समाज’ नाम की संस्था का गठन किया. इसका अर्थ था ‘सत्य के साधक’. इस संगठन के जरिये उन्होंने महाराष्ट्र में निम्न वर्गों को समान सामाजिक और आर्थिक अधिकार पाने के लिए जागरूक किया. सत्यशोधक समाज का विस्तार मुंबई व पुणे के गांवों तक हुआ. कुछ ही समय में इस संगठन ने वंचितों बीच क्रांति का संचार कर दिया.

पहली बार दलित शब्द का किया प्रयोग

सत्यशोधक समाज के कार्यों के चलते ही कई लोगों ने शादी व नामकरण के लिए पंडे-पुरोहितों को बुलाना छोड़ दिया. ज्योतिबा फुले ने संदेश दिया कि जब तेलगु, तमिल, कन्नड़, बांग्ला में प्रार्थना ईश्वर तक पहुंच सकती है, तो अपनी भाषा में की गयी प्रार्थना क्यों नहीं पहुंचेगी. कई मौकों पर महात्मा फुले ने खुद पुरोहित बन संस्कार संपन्न करवाये और ऐसी प्रथा चलायी, जिसमें पिछड़ी जाति का व्यक्ति ही पुरोहित चुना जाने लगा. ऐसा माना जाता है कि वंचित आबादी की स्थिति के चित्रण के लिए महात्मा ज्योतिबा फुले ने ही पहली बार ‘दलित’ शब्द का इस्तेमाल किया था.

सामाजिक कार्यों में पत्नी को भी रखा साथ

सामाजिक बदलाव के अपने मिशन में महात्मा फुले ने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले को भी हर कदम पर साथ रखा. उनका ऐसा मानना था कि समाज में बदलाव लाने की शुरुआत सर्वप्रथम अपने घर से ही होनी चाहिए. महात्मा फुले ने ‘गुलामगिरी’ नाम की एक किताब लिखी, जिसमें उन्होंने जाति आधारित व्यवस्था व भेदभाव को उजागर किया और उस व्यवस्था के खिलाफ तर्क दिये. उनका एक तर्क था कि यदि ईश्वर एक है और उसी ने सभी मनुष्यों को बनाया है, तो समाज में एक-दूसरे भेदभाव क्यों?

छत्रपति शिवाजी महाराज की समाधि खोजी

ज्योतिबा फुले के मन पर छत्रपति शिवाजी का बहुत असर था. महात्मा फुले ने ही रायगढ़ जाकर पत्थर व पत्तियों के ढेर तले दबी शिवाजी महाराज की समाधि को खोजा. फिर उसकी मरम्मत करवायी. बाद में महात्मा फुले मे शिवाजी महाराज पर एक जीवनी भी लिखी, जिसे पोवाड़ा (महाराष्ट्र का प्रमुख लोक गायन, जिसमें शिवाजी महराज के युद्ध कौशल का वर्णन है) भी कहा जाता है.

प्रशासनिक सुधारों के लिए भी उठायी आवाज

ज्योतिबा फुले के कार्यों से प्रभावित होकर समाज सुधारक विट्ठलराव कृष्णाजी वंदेकर ने उन्हें महात्मा की उपाधि दी. वर्ष 1878 में वायसराय लॉर्ड लिटन ने वर्नाक्यूलर एक्ट नामक एक कानून पास किया. इसके तहत प्रेस की आजादी को भंग कर दिया गया था. उस दौरान सत्यशोधक समाज दीनबंधु नामक एक समाचार पत्र निकालता था. यह अखबार भी इस कानून की चपेट में आया. इसके कुछ वर्ष बाद जब लॉर्ड लिटन पुणे आनेवाला था, उसके स्वागत का भव्य आयोजन किया गया. ज्योतिबा फुले तब पुणे नगरपालिका के सदस्य थे. महात्मा फुले ने लिटन के स्वागत में होने वाले खर्च का भरपूर विरोध किया. जब नगरपालिका में यह प्रस्ताव रखा गया तो इसके खिलाफ वोट करने वाले फुले इकलौते सदस्य थे. 63 वर्षों तक उन्होंने समाज में सकारात्मक परिवर्तन के लिए लगातार आवाज उठायी. 28 नवंबर, 1890 को महात्मा फुले का निधन हो गया.

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Vivekanand Singh
Vivekanand Singh
Journalist with over 11 years of experience in both Print and Digital Media. Specializes in Feature Writing. For several years, he has been curating and editing the weekly feature sections Bal Prabhat and Healthy Life for Prabhat Khabar. Vivekanand is a recipient of the prestigious IIMCAA Award for Print Production in 2019. Passionate about Political storytelling that connects power to people.

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