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Exclusive: बिहार के गौतम कुमार झा बने ”KBC” के तीसरे करोड़पति, इंटरव्‍यू में किये कई खुलासे

बिहार के मधुबनी के गौतम कुमार झा ने गेम शो कौन बनेगा करोड़पति में एक करोड़ रुपये जीत लिए हैं. वह इस सीजन के तीसरे करोड़पति हैं. मौजूदा मिले पैसे और प्रसिद्धि से वे खुश हैं. वे बताते हैं कि वह रेलवे में अपनी सीनियर सेक्शन इंजीनयर की नौकरी को जारी रखना चाहते हैं साथ […]

बिहार के मधुबनी के गौतम कुमार झा ने गेम शो कौन बनेगा करोड़पति में एक करोड़ रुपये जीत लिए हैं. वह इस सीजन के तीसरे करोड़पति हैं. मौजूदा मिले पैसे और प्रसिद्धि से वे खुश हैं. वे बताते हैं कि वह रेलवे में अपनी सीनियर सेक्शन इंजीनयर की नौकरी को जारी रखना चाहते हैं साथ ही आगे पढ़ाई करेंगे. उनका कहना है कि जैसे पहले मेरी ज़िंदगी चल रही थी वैसे ही आगे भी चलेगी. मैं बदला नहीं हूं और सबके फोन का जवाब भी दे रहा हूं. दो दिन में कम से कम चार सौ फ़ोन का जवाब दिए.

उन्‍होंने आगे कहा कि, मैंने अपने ऑफिस के चपरासी से भी बात की और फ़ोटो भी खिंचवाया. मुझे लगता है कि एक महीने में माहौल नॉर्मल जो जाएगा. पेश है उर्मिला कोरी से हुई खास बातचीत के कुछ अंश…

क्या आपको यकीन था कि आप एक करोड़ की राशि जीत लेंगे ?

हमने पहली बार कौन बनेगा करोड़पति में इस बार ही कोशिश की. मेरी पत्नी ने मुझे पिछले साल भी कहा था, लेकिन हम बोले कि लक वाली चीजों में हमको भरोसा नहीं है. हम मेरिट और मेहनत से चीजों को पाने में यकीन करते हैं. मैं केबीसी प्ले अलोंग ज़रूर खेलता था लेकिन उसमें नाम नहीं आता था. इस साल मेरी पत्नी ने ही मेरे नाम पर रजिस्टर किया. हमसे सारा जवाब पूछ पूछकर यही मैसेज करती थी. सारा क्रेडिट मेरी पत्नी को जाता है. हम तो केबीसी देखते भी नहीं थे लेकिन मेरी पत्नी सारे एपिसोड्स देखती थी और कोई भी टफ सवाल आता था तो मुझसे पहले पूछ लेती थी उसका जवाब हम ज़्यादातर बता देते थे सही तो बोलती कि इतना आता है तो आप भी जाइए. हम कोई रुचि नहीं ले रहे थे तो ये खुद से सारा पहल की.

कैसे शो से जुड़े. ?

तीन सवाल हमसे फ़ोन पर पूछे गए थे. हम ये तो नहीं बोलेंगे तीनों आसान थे लेकिन हां मीडियम लेवल का था. उसके बाद हमको पटना ऑडिशन के लिए बुलाया गया. जहां 20 नंबर का लिखित परीक्षा हुआ. वहां हमने 90 प्रतिशत मार्क्स लाया था. उसके बाद श्रीराम सर मेरा ऑडिशन लिए. सवा घंटे के ऊपर ऑडिशन चला था. श्रीराम सर ने कहा था कि आप अच्छा बोलते हैं. हमने वहां भी साफ तौर पर बोल दिया था कि हम केबीसी के फैन नहीं हैं, हां अमिताभ बच्चन के ज़रूर हैं.

अमिताभ बच्चन के साथ केबीसी खेलने का अनुभव कैसा रहा ?

बिल्कुल भी एन्जॉय नहीं कर पाया. बहुत टेंशन का माहौल था. हर पड़ाव पर लगता था कि आपका छटनी हो सकता है. बहुत लोगों की बहुत सी उम्मीदें हमसे थी. आने से पहले कई लोगों ने बोल दिया था कि नॉलेज अच्छा है.एक करोड़ जीत के ही आना.अमिताभ सर बहुत हौसला बढ़ाते थे.अच्छा खेल रहे हैं.पानी पी लीजिए.अमिताभ बच्चन सर को मेरा टाइटल सुनकर ही समझ आ गया था कि हम बिहार से हैं. अमिताभ सर जो अंगूठी पहनते हैं उनको अमरनाथ झा ने ही गिफ्ट किया था. वो उनके पिताजी के कॉलेज के वाईस चांसलर थे. ये बात उन्होंने केबीसी के फर्स्ट सीजन में किसी प्रतिभागी को बताए थे. 18 साल पहले की बात है. तब मैं भी केबीसी देखा करता था. उनको हमारे इलाके के बारे में बहुत जानकारी है.

जीती हुई राशि क्या करेंगे क्या कुछ चैरिटी वर्क भी करेंगे ?

जैसा की शो में मेरी पत्नी ने कहा था कि बिहार की राजधानी पटना में एक अपार्टमेंट लेना चाहते हैं. मधुबनी में अपना घर हैं लेकिन वहां भी चाहते हैं.ये पैसा मेरी पत्नी का ही है तो जो पत्नी की मर्जी होगी वही करेंगे.इसके साथ ही वो चाहती हैं कि कुछ पैसा फिक्स कर देंगे.जो भी व्याज आएगा वो गांव में गरीब लड़कियों की शादी में दे देंगे.लड़कियों की शादी के लिए लोग कर्ज लेते हैं.जमीन गिरवी रख देते हैं.

क्या आप हमेशा से मेधावी विद्यार्थी रहे हैं ?

पढ़ने में हम हमेशा खुद को साधारण ही समझते थे.अकेडमी का परसेंटेज 72 से 77 प्रतिशत के बीच हमेशा से रहा है.पढ़ाई से ज़्यादा ओवरआल डेवेलपमेंट पर ध्यान देते थे.आपको किताब के अलावा दुनिया का नॉलेज होना ही चाहिए.हमेशा से मैं तीन चार न्यूज़पेपर हर रोज पढ़ता था.हिंदी अंग्रेज़ी दोनों का मिलाकर. खुद को दुनिया की घटनाओं के बारे में अपडेट करते रहता था.बहुत सारा एप्प अपने मोबाइल पर रखे हैं जो बताता रहता है क्या चल रहा देश दुनिया में. कई बार हम नोट्स भी बनाते थे. कोई फैक्ट्स जो साल भर तक बदलने वाला नहीं है तो फिर हम उसको लिखकर रख लेते थे.

बिहार और बिहारियों को लेकर बाहरी राज्यों में एक अलग सोच है ?

मैं तकरीबन पूरा भारत घुमा हुआ हूं. भारत के हर राज्य में काम किए हैं.कश्मीर से लेकर कर्नाटक तक. हम तो देखें हैं हर जगह बिहारी ही है.खासकर सरकारी जगहों पर.बैंक,इनकम टैक्स हर जगह. बिहारी लोग बहुत आगे हैं.

अब तक कि जर्नी में संघर्ष क्या रहा ?

हमलोग किसान परिवार से आते हैं. अब खेती बाड़ी में पैसा रहा नहीं तो नौकरी की तरफ जाना पड़ा. पैसों की दिक्कत थी लेकिन वो कभी पढ़ाई में रोड़ा नहीं बनी. सरकार की बहुत सारी स्कीम है. उसका फायदा मिला. सरकारी कॉलेज में साल का 75 रुपया लगता था. किताबें सीनियर से मिल जाती थी या लाइब्रेरी से लेते थे और साल भर रखते थे. इस तरह हो जाता था. गर्वमेंट स्कॉलरशिप हर महीने 8 हजार मिलता था. आगे की पढ़ाई के लिए बैंक ने लोन भी दिया था 80 हज़ार. खुद के पीड़ित होने की फीलिंग कभी नहीं थी. यकीन था कि ग्रेजुएशन कर लिया तो नौकरी ले ही लूंगा. हम गांव वाले स्कूल में पढ़े हैं इसलिए मन में ये बात थी कि अंग्रेज़ी नहीं बोल पाएंगे तो कुछ नहीं कर पाएंगे. जिस वजह से बचपन से ही हम अपने गांव में द हिन्दू अंग्रेज़ी पेपर मंगाते थे और पढ़ते थे. आपको खुद को अपडेट करना पड़ेगा. आज की तारीख में मेरा बोलने का इंग्लिश उतना भले न अच्छा हो लेकिन लिखने और पढ़ने का बहुत अच्छा है. अगर आपको पीड़ित समझने का एटीट्यूड है तो आप खुद को हमेशा ही पीड़ित ही समझेंगे. अगर सोचेंगे कि निकलना है तो हर सिचुएशन से निकल जाएंगे. हम अब तक जो भी एग्जाम दिए हैं यूपीएससी को छोड़कर सब में निकले हैं. मेरे पास हमेशा से नौकरी का लाइन लगा था. 17 जॉइनिंग लेटर आया था. जब हमारे यहां सरकारी नौकरी का आफर लेटर आता है तो पोस्टमैन पैसे मांगता है लेकिन मेरा इतना आफर लेटर आया कि एक वक्त के बाद पोस्टमैन ने पैसे मांगना बन्द कर दिया.

Prabhat Khabar Digital Desk
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