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Sarzameen Movie Review:इस सरजमीन से दूर रहने में ही है फायदा..

इब्राहिम अली खान की जिओ हॉटस्टार फिल्म सरजमीन इस वीकेंड देखने की प्लानिंग कर रहे हैं तो इससे पहले पढ़ लें यह रिव्यु

फिल्म – सरजमीन 

निर्माता – करण जौहर 

निर्देशक -कायोज ईरानी 

कलाकार – पृथ्वीराज सुकुमारन,काजोल, इब्राहिम अली खान,मिहिर आहूजा ,बोमन ईरानी और अन्य 

प्लेटफार्म -जिओ हॉटस्टार 

रेटिंग – एक 


sarzameen movie review :कश्मीर बॉलीवुड फिल्मों की कहानी की अहम धुरी रहा है.90 के दशक से पहले इसके खूबसूरत लोकेशन गानों और कहानी का हिस्सा थे,तो नब्बे के दशक के बाद से वहां फैले आतंकवाद को अलग -अलग फिल्मों में दिखाया गया है.रोजा से ग्राउंड जीरो तक इसका उदाहरण रहे हैं.आज जिओ हॉटस्टार पर रिलीज हुई सरजमीन भी इसी की कड़ी है,लेकिन बेहद कमजोर कड़ी.फिल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले बेहद लचर है. जिससे यह फिल्म ना तो देशभक्ति की भावना जगा पायी है ना ही रिश्तों की दिल छूने वाली कहानी कह पायी है.

अमिताभ बच्चन की शक्ति से प्रभावित है कहानी

फिल्म की कहानी की बात करें तो यह कश्मीर में सेट है.एक आर्मी मेजर विजय मेनन (सुकुमार )की कहानी है.जिसके लिए उसकी सरजमीन की सलामती उसके अपने बेटे से भी ज्यादा मायने रखती है. जिंदगी जब उसे एक ऐसे दोराहे पर ले आती है तो वह चुनाव सरजमीन की सलामती का ही लेता है और बेटे से दूर हो जाता है. वही बेटा आठ साल के अंतराल के बाद उसकी जिंदगी में वापस आता है,लेकिन बिलकुल बदले हुए अंदाज में.वह अपने पिता से बदला लेने के लिए आया है. आर्मी अफसर का बेटा अब आंतकवादी बन चुका है. वह अपने पिता से बदले के लिए अपनी ही सरजमीन को खतरे में डालने वाला है. क्या वह ऐसा कर पायेगा या वह अपने पिता के आर्मी अफसर होने के फर्ज को समझ पायेगा. यही फिल्म की आगे की कहानी है.

फिल्म की खूबियां और खामियां

 फिल्म की कहानी की बात करें तो यह कई बार मौकों पर आपको अमिताभ बच्चन और दिलीप कुमार की फिल्म शक्ति की याद दिलाता है. इस फिल्म में एक ट्विस्ट भी है, जो इस फिल्म को और कमजोर कर गया है. कहानी और स्क्रीनप्ले की ही नहीं बल्कि आर्मी प्रोटोकॉल्स की भी फिल्म में पूरी तरह से धज्जियां उड़ी हुई है. कब, क्या और जैसे हो रहा है. उसे देखकर आपके के मन में यह सवाल आएगा ही यहां तो कुछ भी हो रहा है. फिल्म में मेजर विजय मेनन को ही आर्मी से जुड़े सारे फैसले लेते हुए दिखाया गया है. यहां तक की दो आंतकियों को छोड़ने का फैसला भी वह खुद ही लेता है. सिर्फ यही नहीं खुद बस एक एसोसिएट के साथ उसे छोड़ने भी जाता है.आर्मी ऑफिसर की पत्नी के किरदार को जिस तरह से रिएक्ट करते हुए दिखाया गया है. वह भी बेहद अजीब लगता है. फिल्म के क्लाइमेक्स वाले सीन में एक इवेंट में आतंकी हमला होने की बात सामने आयी है,लेकिन कोई मेटल डिटेक्टर या चेकिंग नहीं.इस तरह से तो इंडियन आर्मी काम नहीं करती है पता नहीं मेकर्स ने किस आर्मी के काम काज को दिखाया है. टेक्नोलॉजी के दौर में फैक्स मशीन पर कहानी के ट्विस्ट को आश्रित रखा गया है. इस फिल्म के निर्देशन से कायोज ईरानी जुड़े हैं. यह उनकी पहली फीचर फिल्म है.बोमन ईरानी के बेटे कायोज फिल्म में निर्देशन के तौर पर उपस्थिति दर्शा नहीं पाए हैं. फिल्म की सिनेमेटोग्राफी विषय के साथ न्याय करती हैं. गीत संगीत याद नहीं रह जाता है.

कमजोर लेखन ने कलाकारों को भी बनाया कमजोर 

अभिनय की बात करें तो इस फिल्म में अभिनय के दो बड़े नाम जुड़े हैं. काजोल और पृथ्वीराज लेकिन कमजोर लेखन ने उनके किरदार को भी कमजोर बनाया है. दोनों अपने अभिनय के साथ न्याय करते हैं लेकिन कुछ भी परदे पर प्रभावशाली नहीं बन पाया है. पृथ्वीराज जैसे समर्थ कलाकार के साथ हिंदी फिल्में न्याय नहीं कर पायी हैं. यह कहना गलत ना होगा. नादानियाँ के बाद इस फिल्म नजर आए इब्राहिम अली खान की कोशिश पिछली फिल्म के मुकाबले अच्छी थी लेकिन उन्हें खुद पर और काम करने की जरूरत है. खासकर अपनी डायलॉग डिलीवरी पर. बाकी के किरदार ठीक ठाक रहे है. बोमन ईरानी को फिल्म में करने को कुछ ख़ास नहीं था.

Urmila Kori
Urmila Kori
I am an entertainment lifestyle journalist working for Prabhat Khabar for the last 12 years. Covering from live events to film press shows to taking interviews of celebrities and many more has been my forte. I am also doing a lot of feature-based stories on the industry on the basis of expert opinions from the insiders of the industry.

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