मई व जून में सूख जा रहे चापाकल, शहर में पेयजल संकल्प
फोटो नंबर-50-सूखा पड़ा अमृत बिगहा का तालाब51-अंबुज कुमार सिंह52-सतीश पाठक53-बसंत कुमारप्रतिनिधि,
दाउदनगर.
दाउदनगर शहर में जलस्तर की स्थिति लगातार गंभीर होती जा रही है. जहां पहले 25-30 फीट पर भू-जल उपलब्ध होता था, वहीं आज जलस्तर घटकर 80 से 150 फीट की गहराई तक पहुंच गया है. यह गिरावट आमजनों के लिए पेयजल संकट का संकेत है और गहरी चिंता का विषय बनता जा रहा है. प्रत्येक वर्ष मई-जून महीनों में पेयजल की किल्लत से संबंधित समस्याएं दाउदनगर शहर के कई इलाकों में होने लगी हैं, जबकि दाउदनगर शहर व इलाका नहर सिंचित क्षेत्र है. सोन नदी इस इलाके से होकर गुजरती है, फिर भी शहर के कई इलाकों में भीषण गर्मी के दिनों में पेयजल संकट होना आम बात सी हो गयी है. स्थिति यह बन जाती है कि चापाकल तक जवाब देने लगते हैं. नगर पर्षद की ओर से टैंकर से पानी पहुंचाया जाता है. इससे समझा जा सकता है कि आने वाले समय में शहर को किस प्रकार पेयजल संकट का सामना करना पड़ सकता है. नहीं होता दिख रहा गंभीर प्रयासजल संरक्षण के लिए सरकार द्वारा कई योजनाएं चलायी जा रही हैं. जल-जीवन हरियाली के तहत कार्य किया जा रहा है, लेकिन यदि देखा जाये, तो सरकारी-गैर सरकारी अथवा सामुदायिक स्तर पर इन समस्याओं से निबटने के लिए कोई गंभीर प्रयास होता नहीं दिख रहा है. व्यक्तिगत स्तर पर भी लोग भूमिगत जल का मनमाना उपयोग घर-घर में कर रहे हैं. भूमिगत जल के पुनर्भरण के लिए किसी स्तर पर कोई प्रयास किया जाता नहीं दिख रहा है. पहले अनगिनत कुएं, तालाबों, आहर, पइन आदि के माध्यम से भूजल पुनर्भरण का कार्य स्वंय होता था. पहले भूजल का दोहन आज के मुकाबले बहुत कम होता था. आज की स्थिति बिल्कुल उलटी है. शहर-शहर व गांव-गांव बिजली पहुंचने तथा घर-घर में बोरिंग हो जाने के कारण भू-जल का दोहन कई गुना बढ़ गया है. पटवन के लिए भू-जल का पहले की अपेक्षा अधिक इस्तेमाल हो रहा है. कुएं का प्रयोग बंद हो जाने या उनका अस्तित्व समाप्त हो जाने, तालाबों के अतिक्रमण और अपशिष्टों से भर जाने तथा पक्की नालियों के निर्माण हो जाने से वाटर रिचार्ज की प्राकृतिक व्यवस्था समाप्त हो गयी है. जानकारों का कहना है कि ग्राउंड वाटर रिचार्ज के लिए वर्षा जल संचयन की विधियों का अधिकाधिक प्रयोग किया जाना चाहिए. इसका एक सबसे प्रबल उपाय है कि गली की नालियों के प्रवाह के बीच भूजल संचयन ईकाइयां बनी हो और इससे पूरे वर्षभर घरों में प्रयोग किये जाने वाले जल पुर्नचक्रित होकर भूमिगत जल में मिल जाएं. शहर से लेकर गांव तक बड़े-बड़े भवन बन रहे हैं, लेकिन उनमें भू-जल पुनर्भरण के लिए व्यवस्था नहीं की जा रही है.अधिकांश पुराने तालाब अतिक्रमण के शिकारजल संचय का एक महत्वपूर्ण श्रोत तालाब व पोखरा हैं, लेकिन अधिकतर पुराने तालाब व पोखर या तो अतिक्रमण के शिकार हो चुके हैं या फिर अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. जलकर के जलस्रोत बरसात का पानी और नाला हुआ करता था. जानकारों का कहना है कि दाउदनगर शहर में ही चार जलकर थे. इनमें सोन तटीय क्षेत्र के पास स्थित केवलापति तालाब अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है. वार्ड संख्या एक अमृत बिगहा के तालाब का जीर्णोद्धार कराये जाने की कवायद नगर पर्षद द्वारा की जा रही है. हालांकि, कब तक काम शुरू होगा, यह कहा नहीं जा सकता है. वार्ड संख्या 16 व वार्ड 27 में भी तालाब है, जो अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. सूत्रों से पता चला कि अंचल कार्यालय की ओर से करीब पांच वर्ष पहले बनायी गयी सूची के अनुसार सरकारी जलकरों की संख्या 64 हैं.
क्या कहते हैं लोगभूगोलविद एवं शिक्षक अंबुज कुमार सिंह का कहना है कि विगत दशकों में पर्यावरणीय असंतुलन के फलस्वरूप भूगर्भीय जल में तेजी से कमी आयी है. इसका प्रभाव जीव-जंतु और मानव पर स्पष्ट तौर पर पड़ रहा है. बढ़ते शहरीकरण, सड़कों एवं बड़े-बड़े भवनों के निर्माण में भूमिगत जल का दोहन अत्यंत चिंताजनक है. गांव व शहरों में मोटर के माध्यम से जल दोहन से प्रकृति का खूबसूरत संसाधन संकट के दौर में पहुंच चुका है. इस समस्या से निबटने के लिए तालाबों व झीलों के माध्यम से वर्षा जल का धरती के अंदर रिचार्ज करने की जरूरत है. अत: हर बसावट के अंदर वर्षा जल को धरती के अंदर रिसने की व्यवस्था होनी चाहिए. कंप्यूटर शिक्षक एवं सामाजिक चिंतक सतीश पाठक का कहना है कि शहर के तालाब, कुएं जैसे पारंपरिक जलस्रोत वर्षा जल संचयन और भूजल पुनर्भरण में सहायक थे. वे या तो पाट दिये गये या फिर अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुके हैं. इससे वर्षा जल व्यर्थ बह जाता है और भूजल स्तर में लगातार गिरावट आ रही है. इसके अलावे क्षेत्र की जीवनरेखा कही जाने वाली सोन नदी अत्यधिक और अनियंत्रित बालू खनन के कारण लगभग सूख चुकी है. नदी का प्राकृतिक प्रवाह रुक गया है और अधिकांश हिस्से रेत से भर चुके हैं. यह स्थिति केवल पर्यावरणीय नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक संकट का भी संकेत है. आम नागरिक, प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियों को आगे आकर जल संरक्षण, तालाबों के पुनर्जीवन, अवैध खनन पर नियंत्रण और वर्षा जल संचयन को प्राथमिकता देनी चाहिए.वार्ड पार्षद एवं पूर्व स्टैंडिग कमिटी सदस्य बसंत कुमार ने कहा कि भीषण गर्मी में पानी की किल्लत से शहरवासी जूझ रहे हैं. जल जीवन हरियाली योजना सरकार द्वारा संचालित की जा रही है, लेकिन जमीनी स्तर पर ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है. तालाब व कुएं के साथ जल संग्रह की कोई योजना नहीं है. पेड़-पौधों भी उस अनुपात में नहीं लग रहे हैं, जिस अनुपात में अंधाधुंध पेड़ों की कटाई हो रही है. नगर पर्षद दाउदनगर क्षेत्र में नल-जल का पाइप कई किलोमीटर हटा दिया गया है, जिससे संबंधित इलाकों में पानी की किल्लत हो रही है. वार्डों के मुहल्लों में पानी संग्रह के लिए लोगों को जागरूक करते हुए योजना बनाने की जरूरत है़
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