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Bokaro News :समय ने ऐसा मारा दांव की पहलवान हो गये चित हो, किस्सा बन गयी कुश्ती

Bokaro News : प्रभात खबर आपके द्वार कार्यक्रम बोकारो के सिटी पार्क अखाड़ा परिसर में पहलवानों के बीच रविवार को आयोजित किया गया. कार्यक्रम में दर्जनों पहलवानों ने अपनी समस्याएं

Bokaro News : प्रभात खबर आपके द्वार कार्यक्रम बोकारो के सिटी पार्क अखाड़ा परिसर में पहलवानों के बीच रविवार को आयोजित किया गया. कार्यक्रम में दर्जनों पहलवानों ने अपनी समस्याएं साझा की. बोकारो जिला कुश्ती संघ के कोषाध्यक्ष चंदन कुमार, सदस्य सह राष्ट्रीय कोच मृत्युंजय कुमार, एनआइएस राजू कुमार, पहलवान रंजीत यादव आदि ने बताया कि कभी अखाड़ों में पहलवानों की ताल दूर तक सुनी जाती थी. कैंचा और धोबिया पाट जैसे दांव से प्रतिद्वंद्वी को धूल चटाने वाले पहलवानों की कमी नहीं थी, लेकिन, समय ने ऐसा दांव मारा की पहलवान चित हो गये. कुश्ती किस्सा बन गयी. हाल यह है कि अब अखाड़ों की मिट्टी से पसीने की खुशबू न जाने कहां चली गयी है. गठीला बदन युवाओं की शान होता है. कुछ समय पहले तक इसके लिए युवा अखाड़ों का सहारा लिया करते थे. सुबह और शाम प्रतिदिन युवा व्यायाम के साथ ही आपस में गुरु की देखरेख में जोर-आजमाइश करते थे. अच्छी कुश्तियां लड़ी जाती थीं, लेकिन पहलवानों को सुविधा नहीं मिलने से अब बोकारो के युवा अखाड़ा से दूर होते जा रहे हैं.

कुश्ती में बोकारो को कई मेडल दिला चुके हैं स्थानीय पहलवान :

पहलवान बीरबल कुमार, मुन्ना, नीतीश, सूरज, शिवम, उज्ज्वल, चंदन, राम, कमलेश, अक्षत, सुमित, गणेश, मंजू सिंह, प्रज्ञा प्रखर आदि ने बताया कि न कोई सरकारी सुविधा और न ही संसाधन. फिर भी अपनी इच्छाशक्ति की बदौलत बोकारो के युवा कुश्ती की प्रतिस्पर्धाओं में मेडल जीत रहे हैं. हाल ही में हुए झारखंड कुश्ती प्रतियोगिता में बोकारो प्रथम स्थान पर रहा था. बोकारो के पहलवानों ने 7 गोल्ड, 4 सिल्वर और 12 ब्रॉन्ज मेडल जीते थे, लेकिन सुविधा के अभाव में पहलवानों का मनोबल घट रहा है.

कुश्ती के लिए मैट की दरकार :

बोकारो के युवा पहलवानों में राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचकर मेडल जीतने का माद्दा है. बशर्ते उनको इसके लिए जरूरी सुविधा मुहैया करायी जाये. शहर में कुश्ती के लिए मैट की दरकार है. अखाड़ों पर मिट्टी में युवा कम उतर रहे हैं, लेकिन मैटिंग पर युवा घंटों तक जोर आजमाइश कर सकते हैं. सरकार, जिला प्रशासन, बीएसएल प्रबंधन मैट उपलब्ध करवा कर शहर में कुश्ती को बढ़ावा दे सकते हैं. शहर के युवाओं का रुझान अखाड़ों की जगह जिम में हो गया है.

सिटी पार्क में वर्ष 1970 से मिट्टी के अखाड़े पर पहलवानों के चल रहे दांव-पेच :

पहलवानों का कहना है कि बोकारो के सिटी पार्क परिसर में वर्ष 1970 से मिट्टी के अखाड़े पर दांव-पेच चल रहा है. पूर्व मिलिट्री हवलदार जगनारायण पहलवान ने कुश्ती की शुरुआत की थी. उसके बाद वर्ष 1990 में एनआइएस कोच रामजी पहलवान की देखरेख में वहां कुश्ती का संचालन होने लगा. वर्तमान में बीएसएल से रिटायर्ड कर्मी वर्ष 2010 से फिटनेस कोच के रूप में जानकी राय पहलवान की देखरेख में यहां के स्थानीय 50 से अधिक बच्चे, युवक व युवती इस में अखाड़े से पहलवानी सीख रहे हैं.

रोजाना सुबह 07 बजे से 09 बजे तक होता है अभ्यास :

पहलवान जानकी राय का कहना है कि यहां कुश्ती लड़ने की कला सीख कई युवाओं ने प्रदेश और देश को गोल्ड मेडल जीता है. यहां से गोल्ड मेडल विजेता आज सरकारी नौकरी में भी अपनी सेवा दे रहे हैं, लेकिन समय के साथ अखाड़े की व्यवस्था नहीं बदली गयी. इस कारण आज यहां कुश्ती सीखने वाले युवा अपने बेहतर खेल का प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं. बुधवार को छोड़कर रोजना सुबह 07 बजे से 09 बजे तक अभ्यास होता है.

सुविधा और उच्च कोटि का प्रशिक्षण नहीं मिलने अखाड़ों से दूर होते जा रहे हैं पहलवान

बीएसएल प्रबंधन व जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंप कर आग्रह किया गया है कि बोकारो में कुश्ती के खिलाड़ी बेहद अभावग्रस्त हैं और सभी मौसम में सुचारु ढंग से मैट पर प्रैक्टिस करने के लिए एक सभागार प्रदान किया जाये. अगर उच्च कोटि का प्रशिक्षण मिले तो राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बोकारो के पहलवान जिला का नाम रोशन करेंगे.

धर्मवीर सिंह, अध्यक्ष, बोकारो जिला कुश्ती संघ

बोकारो के सिटी पार्क अखाड़ा में वर्षों से बच्चे और युवा पहलवानी की प्रैक्टिस करते आ रहे हैं और कुश्ती के दांव-पेच सीखते हैं. इस अखाड़ा में आज भी पारंपरिक तरीके से ही पहलवानी करायी जा रही है, क्योंकि यहां आधुनिक सुविधाओं का अभाव है.

– मृत्युंजय कुमार, राष्ट्रीय कोच

यहां आधुनिक सुविधा की कमी है. जिस कारण खिलाड़ी सही से प्रैक्टिस नहीं कर पाते हैं. खिलाड़ियों के पास ट्रेनिंग किट तक नहीं है. इससे प्रैक्टिस प्रभावित होती है. अगर यहां की व्यवस्था दुरुस्त की जाए तो खिलाड़ी बहुत अच्छा कर सकते हैं.

– अभिषेक सिंह, नेशनल मेडलिस्टसुविधा के अभाव में बोकारो के पहलवानों का मनोबल घट रहा है. यहां मिट्टी पर प्रैक्टिस करनी पड़ती है, जबकि प्रतियोगिता में मेट पर कुश्ती होती है. जिला प्रशासन या सरकार से कोई सुविधा नहीं मिल रही है. सभी लोग अपने घर के सपोर्ट से प्रैक्टिस कर रहे हैं और मेडल जीत रहे हैं.

– सूरज कुमार, पहलवान

आज के समय में कुश्ती का स्वरूप बिल्कुल बदल चुका है. अब जो भी खिलाड़ी कुश्ती में भाग लेते हैं वे मैट पर प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं, लेकिन बोकारो में जो भी युवा सिटी पार्क में प्रशिक्षण ले रहे हैं, उन्हें आज भी मिट्टी पर ही प्रशिक्षण लेना पड़ रहा है.

– प्रज्ञा प्रखर, पहलवान

अखाड़ा में सुविधाओं का घोर अभाव है. इस वजह से यहां के बच्चे दूसरे राज्यों के बच्चों से पिछड़ रहे हैं. जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधि से मदद की मांग की गयी, लेकिन सभी ने निराश किया है. यदि यहां के पहलवानों को सुविधा मिले तो वे देश के लिए गोल्ड मेडल ला सकते हैं.

-शिवम कुमार, पहलवान

बरसात के बाद प्रदेश और देश में कुश्ती की प्रतियोगिताएं आयोजित होती हैं, लेकिन बारिश के समय मिट्टी गीली हो जाने के कारण प्रशिक्षण सही से नहीं ले पाते हैं, जिससे बोकारो के पहलवानों को देश स्तर पर कुश्ती में बहुत ही संघर्ष से गुजरना पड़ता है.

सूरज कुमार वर्मा

पुरानी व्यवस्था में ही सिटी पार्क अखाड़ा के युवा बेहतर करते आ रहे हैं. राज्यस्तरीय स्पर्धाओं में यहां पुरुष व महिला दोनों संवर्ग में खिलाड़ी कई मेडल जीत चुके हैं. अगर बेहतर प्रशिक्षण देने की व्यवस्था मिले तो यहां के पहलवान राज्य का रोशन कर सकते हैं.

मंजू कुमारी

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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