कुमार मनीष देव, रजौली
प्राकृतिक के गोद में बसा रजौली का पिकनिक स्पॉट फुलवरिया डैम सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र बन सकता है. जंगल व पहाड़ व झरने का मनमोहक दृश्य देखते बनता है़ ये बातें रजौली नगर पंचायत क्षेत्र के बजरंग बली हाट चौक पर प्रभात खबर आपके द्वार कार्यक्रम में मौजूद लोगों ने कहीं लोगों ने कहा कि यह डैम खनिज संपदाओं से भरा-पूरा है. झारखंड व बिहार की सीमाओं से लगी इसकी खूबसूरती के एक से बढ़ कर एक नजारे बरबस ही लोगों को अपनी ओर खिंचती रही है. फुलवरिया डैम के पानी में कलरव करते विदेशी पक्षी, कलकल बहता पानी व तीनों ओर हरे-भरे पेड़-पौधे और पहाड़ काफी मनभावन लगता है. नवादा जिले के रजौली प्रखंड क्षेत्र की हरदिया पंचायत में हरी-भरी पहाड़ियों के बीच बसा यह फुलवरिया डैम एक मनमोहक जलाशय है, जो अपनी अप्रतिम सुंदरता से पर्यटकों को आकर्षित करता है.यह रजौली-बख्तियारपुर फोरलेन सड़क एनएच-20 से कुछ ही दूरी पर स्थित है. यह शानदार बांध तिलैया नदी पर फुलवरिया गांव के निकट बनाया हुआ है. झारखंड के कोडरमा से यहां आने की दूरी लगभग 35 किलोमीटर है. लगभग इतनी हीं दूरी नवादा से भी है. इसकी निर्माण प्रक्रिया वर्ष 1979 से शुरू होकर 30 जून 1985 में पूर्ण हुई थी. इसकी लंबाई 1135 मीटर और ऊंचाई 25.13 मीटर है. प्रभात खबर आपके द्वार कार्यक्रम के दौरान लोगों ने फुलवरिया डैम को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की मांग उठायी. साथ ही डैम से संबंधित योजनाओं को धरातल पर उतारने की मांग अधिकारियां से की.
प्राकृतिक और आध्यात्मिक महत्व का संगम फुलवरिया डैम: प्राकृतिक और आध्यात्मिक महत्व का संगम फुलवरिया डैम सिर्फ एक इंजीनियरिंग चमत्कार नहीं है, बल्कि इसका ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व भी है. सप्तऋषियों की तपोस्थली के रूप में जाना जाने वाला यह क्षेत्र प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक विरासत का अनूठा मिश्रण है, जो इसे आगंतुकों के लिए एक शांत और मनोरम स्थल बनाता है. यह क्षेत्र हिंदू पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है, जहां प्राचीन समय में शृंगी शृंगी शृषि, ऋषि दुर्वासा, गौतम और लोमश ने अपने-अपने आश्रमों की स्थापना की थी.साथ ही यह क्षेत्र वन्यजीव आश्रयणी क्षेत्र का भी हिस्सा है, जो इसे प्रकृति व वन्यजीव प्रेमियों व आध्यात्मिक साधकों के लिए एक आदर्श स्थल बनाता है. चारों ओर फैली हरियाली व रमणीय दृश्यों के कारण, फुलवरिया डैम को “बिहार का मेघालय ” भी कहा जाता है. इसकी प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण यहां आने वाले यात्रियों के लिए एक आदर्श पर्यटन स्थल बनाते हैं. जलाशय के अंदर क्षेत्र में छोटे-छोटे टापू हैं, जो हरी-भरी वनस्पतियों से आच्छादित हैं और देखने में अत्यंत मनोरम लगते हैं. बिहार सरकार इसकी पर्यटन क्षमता को ध्यान में रखते हुए इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना बना रही है.
पर्यटन मंत्री डैम का ले चुके हैं जायजा
जिला प्रशासन से लेकर बिहार सरकार के पर्यटन मंत्री भी इस रमणीक स्थल पहुंच कर प्रकृति के गोद में रहे जलाशय का जायजा भी ले चुके हैं व इस क्षेत्र को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का प्रपोजल की भी मांग जिला प्रशासन से की गयी थी. लेकिन, अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सका है. जबकि इस स्पॉट पर पिकनिक और स्थानीय अनुभव पर्यटक यहां डैम की शांत जलधारा में नौका विहार का आनंद ले सकते हैं. इससे वे इसकी अद्भुत प्राकृतिक छटा को करीब से महसूस कर सकते हैं. चिरैला गांव की कहानी फुलवरिया डैम के निर्माण के दौरान चिरैला व सिंगर समेत अन्य गांव जलमग्न हो गया था.
पारंपरिक जीवनशैली का अनोखा अनुभव
डैम के भीतर मौजूद हरे-भरे छोटे द्वीप पिकनिक के लिए बेहतरीन स्थान हैं, जहां परिवार और यात्रा प्रेमी प्रकृति की गोद में सुकून के पल बिता सकते हैं. आसपास के जंगली गांवों में पारंपरिक जीवनशैली का अनोखा अनुभव लिया जा सकता है. स्थानीय लोग मुख्य रूप से मछली पकड़ने का काम करते हैं और पारंपरिक नावों से आवागमन करते हैं. खासकर, महिलाओं का समूह में नाव चलाना इस स्थान के सौंदर्य को और भी आकर्षक बनाता है. लेकिन अब मडैम में मछली पालन करने के लिए टेंडर निकालकर मछली पकड़ने का कार्य कराया जा रहा है.
पर्यटन की असीम संभावनाएं होने के बाद भी उपेक्षा का शिकार है फुलवरिया डैम
पर्यटक स्थल पर आनेवाले लोगों को बैठने की व्यवस्था तक नहीं है. यहां नववर्ष व मकर संक्राति व वसंत पंचमी के मौके पर काफी भीड़ होती है. इसके अलावा यहां सालोंभर लोग रमणीक नजरों का लुक उठाने के लिए आते रहते हैं. इस जलाशय से करोड़ों रुपयों का राजस्व मछली पालन व बिक्री से सरकार को प्राप्त हो जाती है. बावजूद इसकी उपेक्षा लोगों को हजम नहीं हो रही है. प्रत्येक वर्ष पिकनिक मनाने वाले लोग नौका विहार के साथ ही मनोरम दृश्य को अपने कैमरे में कैद करते हैं. इस दौरान डैम में नाव चलाने वाले नाविकों की भी अच्छी खासी कमाई हो जाती है. फुलवरिया डैम के पास नववर्ष के दिन पिकनिक मनाने वाले लोगों का काफी भीड़ लगती है. बिहार प्रदेश के अलावा दूसरे राज्यों के लोग पिकनिक मनाने व नववर्ष को सेलिब्रेट करने के लिए आते रहते हैं. प्रकृति प्रेमी, रोमांच के शौकीन या अनदेखे पर्यटन स्थलों को खोजने वाले यात्रियों के लिए फुलवरिया डैम एक परफेक्ट डेस्टिनेशन है. क्योंकि, यहां की प्राकृतिक छटा, ऐतिहासिक धरोहर, सांस्कृतिक विविधता यहां हर किसी के लिए कुछ न कुछ खास पहचान जरूर देती है. खास ठंड के मौसम में इस डैम की खूबसूरती काफी बढ़ जाती है, जब लाखों मील दूर से प्रवासी पक्षी यहां पहुंचकर डैम की जलधारा में विहार करते हैं. धार्मिक दृष्टिकोण से शृंगी ऋषि का आश्रम ऊंचे पहाड़ पर होने के कारण भी लोगों का आना-जाना लगा रहता है. शृंगी ऋषि पहाड़ी पर लोग पुत्र प्राप्ति के लिए मन्नत मागने के पहुंचते हैं और बाद में मन्नत पूरी होने के बाद बसंत पंचमी के दिया पूजा-अर्चना करने पहुंचते हैं. हरी-भरी वादियों से घिरा फुलवरिया डैम को सरकार से लोगों ने पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की मांग कई वर्षों से कर रहे हैं. डैम के पास बैठने, वाकिंग, लाइटिंग करने के अलावा अन्य पर्यटन सुविधा और सुरक्षा की व्यवस्था करने की योजना बनायी गयी थी. बावजूद पर्यटक स्थल बनाने का प्रोसेस ठंडे बस्ते में चला गया है.डैम से गांवों में पहुंच रहा शुद्ध जल
डैम से गांवों में पहुंच रहा शुद्ध जल, बुझ रही प्यास फुलवरिया डैम में वर्ल्ड बैंक के सहयोग से बहुजल ग्रामीण योजना के गांवों तक पीने का पानी पहुंचाया जा रहा है. करीब 117 करोड़ से बनाया गया बहुजल ग्रामीण योजना को पूरा किया गया है. इसके लिए हरदिया में डैम की पानी को मशीनों में फिल्टर कर जिंदल कंपनी के द्वारा 10 पंचायतों के 90 गांवों में शुद्ध पानी की सप्लाइ दी जा रही है. इसके कारण डैम का जलस्तर में भी लगातार कमी हो रही है. हालांकि, बरसात के दिनों में पानी का संग्रह हो जाता है. इसके बाद डैम से निकली नहरों से पानी छोड़ दिया है. इसी पानी से आसपास के दर्जनों गांवों के किसान अपने खेतों में पटवन काम करते हैं. इसके अलावा डैम में 20 मेगावाट के सौर ऊर्जा व परमाणु ऊर्जा युनिट घर बनाने के लिए 2009 से लगातार सुर्खियों में रहा है.आधी डूबी हुई मस्जिद
आधी डूबी हुई मस्जिद, जिसे स्थानीय लोग नूरी मस्जिद के नाम से जानते हैं. ऐसा माना जाता है कि यह 20वीं शताब्दी की शुरुआत में बनी थी, जो की डैम में पानी घटने के बाद पानी से बाहर दिखाई देने लगा है. ऐतिहासिक संरचना पर्यटकों और शोधकर्ताओं के लिए जिज्ञासा और चर्चा का विषय बनी हुई है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है