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नवादा में हैंडबॉल को शून्य से शुरू कर प्रेमदासा ने पहुंचाया शिखर तक

स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया साई ट्रेनर के रूप में 1994 में नवादा पहुंचे थे प्रेमदासा

नवादा के दर्जनों खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिखा रहे हैं कमाललड़कों के साथ लड़कियों को मैदान

स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया साई ट्रेनर के रूप में 1994 में नवादा पहुंचे थे प्रेमदासा

नवादा के दर्जनों खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिखा रहे हैं कमाललड़कों के साथ लड़कियों को मैदान में उतर कर राष्ट्रीय स्तर के खेल के लिए किया तैयार फोटो कैप्शन- के प्रेमदासा विशाल कुमार, नवादा शून्य से शुरू करके खेलों में अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतिभाओं को निखारने का काम स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के ट्रेनर के. प्रेमदासा ने नवादा में 1994 में शुरू किया था, जो वर्ष 2008 तक जारी रहा. उनके किये प्रयासों का असर है कि 30 साल के बाद नवादा ने हैंडबॉल के राष्ट्रीय खेल की मेजबानी की, जिसमें बिहार की टीम विजय हुई है. 47वें राष्ट्रीय जूनियर बालिका हैंडबॉल चैंपियनशिप-2025 के फाइनल में अतिथि के रूप में आये ट्रेनर के. प्रेमदास के साथ प्रभात खबर ने विशेष बातचीत करके उनके अनुभवों को जानने का प्रयास किया.

भाषा और जातीय संघर्ष के बीच खेल ने सद्भाव को दिया बढ़ावा

स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया साई के ट्रेनर के. प्रेमदासा ने प्रभात खबर के साथ विशेष बातचीत करते हुए बताया कि जनवरी 1994 में वह पहली बार बिहार में ट्रेनर के रूप में पहुंचे थे. नवादा जिला में उनका आना महज संयोग ही था, क्योंकि बिहार में उन्हें नावाडीह में ट्रेनर के रूप में लेटर मिला था. लेकिन, स्टेट मुख्यालय पटना में बताया गया कि इस नाम का कोई बड़ा शहर बिहार में नहीं है तो उन्हें नवादा में फिजिकल साइ ट्रेनर के रूप में भेजा गया. शुरुआती समय में केरल से आये प्रेमदासा के सामने सबसे बड़ी समस्या भाषा की थी. वह अपनी बात किसी को समझा ही नहीं पाते थे. इसके अलावा बिहार में उस समय जातीय संघर्ष का दौरा काफी उफान पर था, ऐसी स्थिति में, खेल के प्रति जुनून के बदौलत प्रेमदासा ने लड़कों के अलावा लड़कियों की टीम तैयार करके राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में भेजा.

शुरुआत में काफी संघर्ष करना पड़ा

के. प्रेमदासा अपने पुराने दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि खेल को आगे बढ़ाने के लिए जिन संसाधनों की जरूरत थी, उसका कहीं भी नामोनिशान नवादा में नहीं दिखता था. लेकिन, जुनून और जज्बे को साथ लेकर आगे बढ़े तो हर रास्ता आसान होता चला गया. उस समय स्थानीय डीएम और एसपी सर का भी काफी साथ मिला, जिसका नतीजा रहा कि खेल को बढ़ावा देने के लिए स्कूली विद्यार्थी हमें मिलते चले गये. स्कूल से नये विद्यार्थियों को निकाल कर उन्हें ट्रेनिंग देते हुए हैंडबॉल, कबड्डी, खो-खो, फुटबॉल आदि की टीम तैयार की गयी. जहां शुरुआती दौर में स्कूल और प्रखंड लेवल की प्रतियोगिताएं करायी गयीं. जहां से निकले खिलाड़ियों को तराश कर हमने स्टेट और नेशनल लेवल पर पहुंचाया.

फिजिकल टीचर की ट्रेनिंग शुरू की

शुरुआत दिनों में जब स्कूलों में खेल का कोई वातावरण नहीं था, तब तत्कालीन एसपी एसके. सत्यपथि की मदद लेकर कार्यरत फिजिकल टीचर का 15 दिनों का ट्रेनिंग कराया. इसके बाद शहर के कुछ स्कूलों के विद्यार्थी हमें विभिन्न खेलों में प्रशिक्षण के लिए मिलने लगे. उसे समय कनक, खुशबू, राहुल जैसे खिलाड़ी हैंडबॉल में राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में शामिल होकर जिला को पदक दिलाया. पदक पाने के बाद खिलाड़ी और अन्य लोगों का हौसला भी बुलंद हुआ.

लड़कियों के लिए निक्कर पहनकर खेलना था बड़ी चुनौती

नवादा जैसे छोटे शहर में लड़कियां स्पोर्ट्स ड्रेस निकर और टी-शर्ट पहनकर स्टेडियम में प्रैक्टिस करे और स्टेट और नेशनल खेलने के लिए जाये, यह बहुत बड़ी चुनौती थी. इसका समाधान काफी प्रयास के बाद निकल पाया. जिला मुख्यालय के प्रोजेक्ट कन्या विद्यालय के साथ संपर्क शुरू हुआ. उस समय वहां के शिक्षकों के प्रयास और खेल में हमारे साथ ही रही नेशनल प्लेयर आशा, जो बाद में हमारी पत्नी आशा दास बनी उनका काफी सहयोग मिला. आशा वह पहली लड़की थी जो निक्कर पहनकर हरिशचंद्र स्टेडियम में प्रैक्टिस करने के लिए पहुंची थी. जिसे देखकर उसे समय लोग काफी आश्चर्यचकित हुये थे. आशा की मदद से हमने धीरे-धीरे लड़कियों को खेल ड्रेस में आकर प्रैक्टिस करने के लिए तैयार किया. आज हमारी बेटियां बढ़-चढ़कर देश के विभिन्न हिस्सों में जाकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मैच खेल रही है.

जातीय और सांप्रदायिक संघर्ष रोकने में मिली मदद

1994 के आसपास जिले में काफी जातीय और सांप्रदायिक हिंसा होती थी. खेलों ने उनके आपसी संघर्ष को समाप्त करने का भी काम किया. स्कूल और मुहल्ले आदि में कबड्डी, फुटबॉल, खो-खो, हैंडबॉल जैसी टीम तैयार हुए जिसका फायदा यह हुआ कि युवा और विद्यार्थी अब संघर्ष के बजाय खेल में अधिक समय देने लगे. गोविंदपुर, कौवाकोल, वारसलीगंज, रजौली जैसे नक्सली और जातीय हिंसा वाले क्षेत्रों में विभिन्न खेलों के टूर्नामेंट कराकर वहां पर शांति लाने का प्रयास काफी कारगर साबित हुआ. यही कारण है कि प्रशासन के साथ-साथ स्कूल प्रबंधन भी खेल के लिए अपने यहां टीम तैयार करने में काफी मदद की. खेल एसोसिएशन का गठन किया.

नवादा जिला की उपलब्धि पर होता है गर्व

फिलहाल केरल में भारतीय सेवा के खेल अधिकारी प्रेमदासा अपनी ड्यूटी दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि नवादा जिले की सफलता पर काफी खुशी है. यही कारण है कि जब हमें पता चला कि नेशनल गेम नवादा में हो रहा है तो मैं भाग लेने के लिए यहां पहुंच गया हूं. मुझे नवादा के खिलाड़ियों की उपलब्धि पर गर्व है. उस समय हमारे साथ काम करने वाले श्रवण बरनवाल, शिवकुमार प्रसाद, अलखदेव यादव आदि आज भी सक्रिय होकर खेल को बढ़ावा दे रहे हैं. यह देखकर खुशी होती है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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