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आइपीएल टूर्नामेंट में यह लगातार साफ हो रहा है कि पुराने वैसे रिजल्ट ना दे रहे जैसे रिजल्ट नये वाले दे रहे है. नये वालों का जलवा बेहतर हो रहा है.

सीनियर होना बहुत मुश्किल काम है. नये बच्चे कुछ समझते नहीं हैं. पुराने वक्त की इज्जत रहती नहीं है. पुराने दिन याद आते हैं और आफत इसलिए ज्यादा हो जाती है. पुराने लोगों की सबसे बड़ी आफत यही होती है कि हाय वो पुराने दिन ना रहे.

रोहित शर्मा के पुराने दिन ना रहे. पुराने दिन किसी के भी ना रह सकते. वक्त और इंसान कभी एक से नहीं रह सकते. कवि, वकील और शराब- ये जितने पुराने हों, उतना ही ज्यादा असरदार होते हैं. पर यह बात क्रिकेटर के बारे में नहीं कही जा सकती. क्रिकेटर जो पुराने हो जाते हैं, वे या तो कॉमेडी करने लगते हैं, सिद्धू की कसम, या कमेंट्री करने लगते हैं, गावस्कर जैसे. जो ना कॉमेडी कर सकते, ना कमेंट्री, उनके लिए आफत है कि क्या करें.

सचिन तेंदुलकर भी इन दिनों कई किस्म के आइटम बेच लेते हैं. पर ऐसे कई हैं, जो कुछ भी ना बेच पाते. बेचाधिकार सबको मिलने चाहिए. जो कुछ ना बेच पाता, वह फिर भुनभुनाता है. इस मुल्क में जो कुछ नहीं कर सकता, वह भी भुनभुनाने के काम तो कर ही लेता है. तो बेचाधिकार से वंचित पुराने क्रिकेटर भुनभुना सकते हैं, बस छोटी सी आफत यह है कि भुनभुनाने के पैसे ना मिलते. पुराने क्रिकेटरों को ऐसे काम मिलने चाहिए, जिनसे कुछ पैसे भी मिलें.

आइपीएल टूर्नामेंट में यह लगातार साफ हो रहा है कि पुराने वैसे रिजल्ट ना दे रहे जैसे रिजल्ट नये वाले दे रहे है. नये वालों का जलवा बेहतर हो रहा है. फिल्म इंडस्ट्री में ऐसा ही होता है. एक वक्त की बहुत सुपरस्टार टाइप हीरोइन कुछ वर्षों बाद भाभी या मां के रोल में आ जाती है. जगह छोड़नी पड़ती है, आप चाहें या नहीं चाहें.

क्रिकेटरों का भी यही हाल है. जगह छोड़नी पड़ती है. पर जगह कोई छोड़ना नहीं चाहता है. सिर्फ पॉलिटिक्स के कारोबार में यह संभव है कि बंदा अस्सी पार जाकर भी अड़ा रहे कि मैं ही हूं, मैं ही रहूंगा. भतीजे अजित पवार कुड़कुड़ाते रह जाते हैं, चाचा शरद पवार यही कहते हैं- हम हूं ही ना, बल्कि हमीं हूं, और कौन आयेगा.

चुनाव जैसे-जैसे आगे जा रहे हैं, वैसे तरह-तरह की बातें सामने आ रही हैं. औरंगजेब की इलेक्शन ड्यूटी भी लग गयी है. महाराष्ट्र में संजय राउत ने कहा कि औरंगजेब गुजरात में पैदा हुए थे, उनका इशारा गुजरात आधारित नेताओं पर व्यंग्य करने का था. पर राउत की यह बात सुनकर महात्मा गांधी और सरदार वल्लभ भाई पटेल की आत्मा भी दुखी हो सकती है कि उन्हें गुजरात का माना जाता है, इसलिए वह औरंगजेब के लेवल पर रखे जा रहे हैं. औरंगजेब बहुत वर्षों पहले चले गये, पर वह गये नहीं हैं.

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