Jnanpith Award: ‘मुझे लिखना बहुत था, बहुत कम लिख पाया. मैंने देखा बहुत, सुना भी मैंने बहुत, महसूस भी किया बहुत, लेकिन लिखने में थोड़ा ही लिखा. कितना कुछ लिखना बाकी है, जब सोचता हूं तो लगता है बहुत बाकी है. इस बचे हुए को मैं लिख लेता अपने बचे होने तक. मैं अपने बचे लेख को शायद लिख नहीं पाऊंगा, तो मैं क्या करूं, मैं बड़ी दुविधा में रहता हूं. मैं अपनी जिंदगी का पीछा अपने लेखन से करना चाहता हूं. वर्ष, 2024 के लिए प्रतिष्ठित 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किए जाने की घोषणा के बाद ये पहली प्रतिक्रिया है विनोद कुमार शुक्ल की है.
आगे शुक्ल ने कहा ‘मेरी जिंदगी कम होने के रास्ते पर तेजी से बढ़ती है और मैं लेखन को उतनी तेजी से बढ़ा नहीं पाता, जो कुछ अफसोस भी होता है. यह पुरस्कार बहुत बड़ा पुरस्कार है. मेरी जिंदगी में यह एक जिम्मेदारी का एहसास है. मैं उसे महसूस करता हूं. अच्छा तो लगता है. खुश होता हूं, बड़ी उथल-पुथल है महसूस करना कि यह पुरस्कार कैसा लगा. मेरे पास कहने के लिए शब्द नही हैं, बस अच्छा लग रहा है’.
भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा जारी एक बयान में बताया गया कि शुक्ल को हिंदी साहित्य में उनके अनूठे योगदान, रचनात्मकता और विशिष्ट लेखन शैली के लिए इस सम्मान के लिए चुना गया है. वे हिंदी के 12वें साहित्यकार हैं जिन्हें यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला है, साथ ही वे छत्तीसगढ़ राज्य के पहले लेखक हैं जिन्हें इस सम्मान से नवाजा जाएगा.
इस निर्णय की घोषणा प्रसिद्ध लेखिका और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता प्रतिभा राय की अध्यक्षता में आयोजित प्रवर परिषद की बैठक में की गई. बैठक में चयन समिति के अन्य सदस्यों में माधव कौशिक, दामोदर मावजो, प्रभा वर्मा, डॉ. अनामिका, डॉ. ए. कृष्णा राव, प्रफुल्ल शिलेदार, जानकी प्रसाद शर्मा और ज्ञानपीठ के निदेशक मधुसूदन आनंद शामिल थे.
विनोद कुमार शुक्ल, जो 88 वर्ष के हैं, एक प्रख्यात लेखक, कवि और उपन्यासकार हैं. उनकी पहली कविता ‘लगभग जयहिंद’ 1971 में प्रकाशित हुई थी. उनके प्रसिद्ध उपन्यासों में ‘नौकर की कमीज’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ और ‘खिलेगा तो देखेंगे’ शामिल हैं. उनकी लेखन शैली सरल भाषा, गहरी संवेदनशीलता और विशिष्ट अभिव्यक्ति के लिए पहचानी जाती है. हिंदी साहित्य में उनके प्रयोगधर्मी लेखन ने उन्हें विशेष स्थान दिलाया है.
शुक्ल को इससे पहले साहित्य अकादमी पुरस्कार समेत कई अन्य प्रतिष्ठित सम्मानों से भी सम्मानित किया जा चुका है. ज्ञानपीठ पुरस्कार भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान है, जिसे भारतीय भाषाओं में उत्कृष्ट रचनात्मक योगदान देने वाले साहित्यकारों को दिया जाता है. इस पुरस्कार के अंतर्गत 11 लाख रुपये की राशि, वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है.
अचल मिश्र के निर्देशन में बनी डॉक्यूमेंट्री ‘चार फूल हैं और दुनिया’ (MUBI प्लेटफॉर्म पर देखी जा सकती है ) में जब मानव कौल कहते हैं कि भूलना उन्हें विरासत में मिला है और इसमें उन्हें हिचकिचाहट भी नहीं होती है, तब विनोद कुमार शुक्ल के बेटे शाश्वत गोपाल कहते हैं “अगर आप मुझसे कुछ पूछें तो हर चीज मुझे तुरंत याद नहीं आती और उसी तरह याद भी नहीं आती, जिस तरह उसे याद आना चाहिए. टुकड़े-टुकड़े में याद आती है. दादा (विनोद कुमार शुक्ल )को भी देखता हूं, पता नहीं क्यों. कई ऐसी चीजें हैं जो 20 साल बाद याद आती हैं, लेकिन उस समय याद आती हैं जब याद नहीं आनी चाहिए और जिस समय जिस चीज को याद आना चाहिए, उस समय याद नहीं आती है.
कभी-कभी मुझे लगता है कि मौलिकता में भूलने का भी बहुत बड़ा हाथ होता है. अगर बहुत सारी चीजें आपको याद रहेंगी, तो जब आप कुछ भूल जाएंगे, वहीं कहीं न कहीं आपकी मौलिकता बची रह जाएगी. लेकिन भूलना या याद न रहना, एक तरह से कमजोरी ही है. जो विद्वान है, वह याद रखने से होता है और अब तो मुझे लगता है कि विद्वता और मौलिकता दोनों अलग-अलग चीजें हैं. जो विद्वान है, वह मौलिक शायद न हो, लेकिन जो मौलिक है, वह विद्वान हो सकता है.”
पिछले 15 साल में किस-किस को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला
साल | किसे सम्मान मिला | भाषा |
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2010 | चंद्रशेखर कंबार | कन्नड़ |
2011 | प्रतिभा रे | ओड़िया |
2012 | रवींद्र भारद्वाज | तेलुगु |
2013 | केदारनाथ सिंह | हिंदी |
2014 | बालचंद्र नेमाडे | मराठी |
2015 | रघुवीर चौधरी | गुजराती |
2016 | शंख घोष | बंगाली |
2017 | कृष्णा सोबती | हिंदी |
2018 | अमिताव घोष | अंग्रेजी |
2019 | अक्कितम अच्युतन नंबूरी | मलयालम |
2021 | नीलमणि फूकन | असमिया |
2022 | दामोदर माऊजो | कोंकणी |
2023 | रामदासाचार्य | संस्कृत |
2023 | गुलज़ार | उर्दू |
ज्ञानपीठ सम्मान की घोषणा के बाद विनोद कुमार शुक्ल जी की पहली प्रतिक्रिया
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विनोद कुमार शुक्ल की रचनाएं
कविता | साल |
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लगभग जय हिंद | 1971 |
वह आदमी चला गया | 1981 |
सब कुछ होना बचा रहेगा | 1992 |
अतिरिक्त नहीं | 2000 |
कविता से लंबी कविता | 2001 |
आकाश धरती को खटखटाता है | 2006 |
कमी के बाद अभी | 2012 |
कवि ने कहा | 2012 |
उपन्यास | साल |
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नौकर की कमीज़ | 1979 |
खिलौना तो देखेंगे | 1996 |
दीवार में एक खिड़की रहती थी | 1997 |
हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़ | 2011 |
यारिस रासा त | 2017 |
एक चुप्पी जगह | 2018 |
कहानी संग्रह | साल |
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पेड़ पर कमरा | 1988 |
महाविद्यालय | 1996 |
एक कहानी | 2021 |
गोदाम | 2020 |
गमले में जंगल | 2021 |