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World Book And Copyright Day 2025 : स्क्रीन टाइम में किताबों की जगह, जानें क्या कहते हैं लेखक

एक ऐसे विश्व में, जो तेजी से डिजिटल युग में परिवर्तित हो रहा है, जहां जानने योग्य किसी भी चीज तक तत्काल पहुंच एक क्लिक की दूरी पर है, किताबों के महत्व को दर्शाने के लिए आज 23 अप्रैल को दुनिया भर में विश्व पुस्तक एवं कॉपीराइट दिवस मनाया जा रहा है. इस मौके पर हमने भी देश के कुछ लोकप्रिय लेखकों एवं प्रकाशकों से सोशल मीडिया के इस दौर में किताबों की अहमियत पर उनके विचार जानने की कोशिश की...

World Book And Copyright Day 2025 : किताबें हमें रचती हैं. हमें बदलती हैं, हमें ज्ञानवान, विचारवान और विवेकवान बनाती हैं. भारत की संस्कृति किताबों की संस्कृति रही है, लेकिन इंटरनेट और मोबाइल फोन के बढ़ते दखल ने किताबों के भविष्य को लेकर कुछ सवाल भी खड़े किये हैं, जैसे आज के जमाने में किताब पढ़ने की संस्कृति कितनी बदली है और उसका भविष्य क्या है! किताबों की दुनिया पिछले कुछ समय से बदलावों के दौर से गुजर रही है. दुनियाभर से आ रही रिपोर्टें किताब पढ़ने की संस्कृति में गिरावट आने को लेकर चिंताएं जताती दिखती हैं. कुछ लोगों का दावा है कि इंटरनेट और हथेलियों पर मौजूद स्मार्टफोन, रील्स, यू-ट्यूब, सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्मों पर कंटेंट की प्रचुरता ने किताबों के सामने नयी चुनौतियां पेश की हैं. वहीं ऐसे लोग भी हैं, जो किताबों के भविष्य को लेकर आशावादी नजरिया रखते हैं. वे साक्षरता और शिक्षा तक लोगों की पहुंच बढ़ने जैसे कारकों का हवाला देते हुए दावा करते हैं कि किताब पढ़ने की संस्कृति न सिर्फ जिंदा है, बल्कि फल-फूल रही है. प्रकाशकों की मानों तो किताबें न सिर्फ छप रही हैं, बल्कि ज्यादा पढ़ी भी जा रही हैं.

पारिवारिक व सामाजिक दायित्व बने पढ़ना-लिखना

ज्ञानपीठ से सम्मानित हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल ने ‘किताबें क्यों जरूरी हैं?’  सवाल पर कहते हैं- ‘ किताबें, इतिहास की धरोहर होती हैं. आज के इस तकनीकी समय में लिखा हुआ हमेशा सुरक्षित रखा जा सकता है. दूसरी ओर खंडहर के रूप में बचा इतिहास भी समाप्त हो सकता है.  मैंने हमेशा कहा है कि प्रत्येक मनुष्य को अपनी, अपने बारे में एक किताब जरूर लिखनी चाहिये. एक की लिखी किताब एक समय का एक व्यक्ति का अनुभव है, जो संसार को उसको परखने का उसका अपना अनुभव है. अपना अनुभव लिखने के लिए दूसरों का अनुभव जानना भी जरूरी है.

‘ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस युग में किताबों का कैसा भविष्य देखते हैं?’ सवाल का जवाब उन्होंने कुछ यूं दिया- ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी असीमित काम कर सकता है. लेकिन, मौलिकता के रूप में उसकी सीमा सीमित हो सकती है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का अगर कोई उपयोग करेगा तो स्वयं अपनी क्षमता से बहुत कम लिखेगा. इसके बिना लेखक मौलिक रूप से बहुत लिख सकता है. उसे अपनी शैली तो विकसित करनी ही पड़ेगी, ताकि वह इस तकनीकी दौर में स्थापित हो सके.

‘ रील के इस दौर में क्या किताब पढ़ने की संस्कृति बची रहेगी?’ पर वह आगे कहते हैं- ‘किताब पढ़ने की संस्कृति हमेशा बची रहेगी. इसके लिए बहुत प्रयास करने की जरूरत नहीं. बस, आने वाली पीढ़ी पढ़ना जारी रखे और लिखना भी. किताब पढ़ना-लिखना एक पारिवारिक और सामाजिक दायित्व बन जाये!  अभी भी किताबें बहुत पढ़ी जा रही हैं। यह बात और है कि इनकी बिक्री की पूरी और सही जानकारी लेखकों तक नहीं पहुंच पाती हैं. किताबों की बहुत कम बिकने की बात फैलाई जाती है. पारदर्शिता की बहुत कमी है. आज विश्व पुस्तक एवं कॉपीराइट दिवस मनाया जा रहा है. मुझे अब यह महसूस होता है कि कॉपीराइट के कानून आदि की जानकारी लेखकों को नहीं होने के कारण उनका शोषण लंबे वक्त से हो रहा है. अब उसे रोकने की जरूरत है. समाज को, सरकार को लेखकों के हित के लिए आगे आना चाहिये. 

रील से नयी किताबें हुई हैं डिस्कवर

युवा लेखक दिव्य प्रकाश दुबे कहते हैं, स्मार्टफोन और रील की संस्कृति में नयी किताबें बहुत डिस्कवर हुई हैं. जीवन में जब भी हमें ठहराव की जरूरत पड़ती है, तो किताबें वहां काम आती हैं. हम जब किताब के साथ होते हैं, तो बस उसके साथ ही होते हैं, बिना किसी नोटिफिकेशन के, किताबों के साथ होने के लिए इंटरनेट की जरूरत नहीं होती. इसलिए चाहे कोई भी तकनीक आ जाये, किताबों को रिप्लेस नहीं कर सकतीं. शुरू-शुरू में जब कोई तकनीक आती है, तो उसके कई साइड इफेक्ट भी बताये जाते हैं, लेकिन धीरे-धीरे हम उसे आत्मसात कर लेते हैं. एआई बेशक बहुत कुछ कर ले, लेकिन एक इंसान जिस तरह अपनी भावनाओं और अनुभूतियों को शब्द देता है, ए आई कभी नहीं कर पायेगा.

किताब की जगह कोई नहीं ले सकता

कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ कहती हैं-  किताबों की जगह कोई नहीं ले सकता. रील देखना कभी किताब सा समूचा संतोष नहीं दे सकता. यह जंग चलेगी पर लोग किताब के पक्ष में रहेंगे. बशर्ते किताब अच्छी हो. रीलों का असर लेखकों के जीवन में भी खराब रोल निभा रहा, रचनात्मकता का बैलून समय से पहले फट जाता है रील के समय में, फिर लिखने का चाव कम हो जाता है. लेकिन जो गंभीर पढ़ने वाले हैं, वे नियमित पढ़ेंगे ही. यह हम सब जानते हैं किताबों में कितना सुख है.

बढ़ी है पुस्तक प्रेमियों की संख्या

हिंदी के एक प्रमुख प्रकाशन समूह राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने प्रभात खबर से कहा- इंटरनेट की व्यापक पहुंच के बाद भी किताबों में लोगों की रुचि घटी नहीं, बल्कि बढ़ी है. नयी तकनीकों ने किताबों के छपने, वितरण और पहुंच को भी आसान बनाया है. किताबों की बिक्री में भी इजाफा हुआ है. फरवरी 2025 में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में पाठकों के पुस्तक प्रेम को साफ देखा जा सकता था. हर वर्ष की भांति इस बार भी विश्व पुस्तक मेला में आने वाले पुस्तक प्रेमियों की संख्या पिछले वर्षों की तुलना में अधिक थी. इस वर्ष विश्व पुस्तक मेला के बिक्री के आंकड़ों को देखें, तो हिंदी में गंभीर वैचारिक किताबों की मांग बढ़ी है. साथ ही मेले में आनेवाले ऐेसे लोगों की संख्या भी बढ़ी, जो हिंदी किताबें पढ़ना शुरू करना चाहते हैं.युवा पाठकों की भागीदारी बहुत बढ़ी है.

यह भी पढ़ें : World Book And Copyright Day 2025 : दुनिया में मशहूर हैं किताबों के ये घर

Preeti Singh Parihar
Preeti Singh Parihar
Senior Copywriter, 15 years experience in journalism. Have a good experience in Hindi Literature, Education, Travel & Lifestyle...

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