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टीम इंडिया फ्रीडम फाइटर, सचिन नहीं ये खिलाड़ी महात्मा गांधी, अंग्रेज दिग्गज की वर्ल्ड कप जीत पर निराली बात

World Cup 2011: 2 अप्रैल 2011 को भारत ने 28 साल बाद वर्ल्ड कप जीतकर इतिहास रच दिया. धोनी के विजयी छक्के ने पूरे देश को जश्न में डुबो दिया. इंग्लैंड के केविन पीटरसन ने इस जीत को भारत के स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ा और टीम इंडिया को फ्रीडम फाइटर बताया. उन्होंने भारत के इस दिग्गज की भूमिका को महात्मा गांधी से तुलना कर अलग ही संदर्भ दे दिया. इस टीम में सचिन थे सहवाग थे, लेकिन केविन ने गांधी जी का सेहरा किसी और के सिर पर सजाया.

World Cup 2011: 2 अप्रैल 2011, भारतीय क्रिकेट के इतिहास का वह स्वर्णिम दिन जब पूरे देश ने एक सपना सच होते देखा. 28 साल के लंबे इंतजार के बाद भारत ने एक बार फिर वनडे क्रिकेट का विश्व कप अपने नाम किया. मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में खेले गए इस ऐतिहासिक फाइनल में हर भारतीय की धड़कनें तेज थीं, हर नजरें टीवी स्क्रीन पर टिकी थीं और हर दिल में एक ही ख्वाहिश थी – ‘हम फिर से विश्व विजेता बनें’ और जब महेंद्र सिंह धोनी के बल्ले से निकला वह ऐतिहासिक छक्का हवा में लहराया, तब करोड़ों भारतीयों के सपने ने हकीकत का रूप ले लिया. यह जीत केवल एक ट्रॉफी नहीं थी, बल्कि यह पूरे देश के लिए गर्व, जुनून और अटूट विश्वास का प्रतीक बन गई.

भारत की इस जीत पर तमाम तरह की प्रतिक्रियाएं आईं, लेकिन सबसे अलग रिएक्शन इंग्लैंड क्रिकेट के दिग्गज केविन पीटरसन की तरफ से. उन्होंने भारत की इस महान जीत को भारत के स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ दिया. उन्होंने भारतीय टीम को इस ऐतिहासिक जीत का स्वतंत्रता सेनानी (फ्रीडम फाइटर) बता दिया. ताज्जुब की बात रही, उन्होंने महेंद्र सिंह धोनी (MS Dhoni) को भारत की इस जीत में महात्मा गांधी घोषित किया. अब केविन की ऐसी प्रतिक्रिया को किस संदर्भ में लिया जाए, ये समझना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन जीत में योद्धा तो तमाम थे, लेकिन सेहरा तो धोनी के सर ही सजा. बिल्कुल उसी तरह जैसे भारत की आजादी में स्वर्णिम अक्षरों में गांधी जी का नाम है. (Kevin Pietersen Comment on India’s 2011 World Cup Win)

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कैसा था उस स्वप्न भरी रात का माहौल

श्रीलंका, जो अपना दूसरा विश्व कप खिताब जीतने के इरादे से उतरी थी. उसने पहले बल्लेबाजी करते हुए भारत के सामने 275 रनों की चुनौती रखी. उनके स्टार बल्लेबाज महेला जयवर्धने ने 88 गेंदों में नाबाद 103 रन बनाकर अपनी टीम को मजबूत स्थिति में पहुंचाया. भारतीय टीम के लिए यह लक्ष्य आसान नहीं था, खासकर जब लसिथ मलिंगा ने पारी की शुरुआत में ही वीरेंद्र सहवाग (Virendra Sehwag) और सचिन तेंदुलकर (Sachin Tendulkar) को आउट कर भारत को गहरे संकट में धकेल दिया. जब सचिन मात्र 18 रन बनाकर आउट हुए, तब पूरे स्टेडियम में सन्नाटा छा गया.

यही वह क्षण था जब गौतम गंभीर (Gautam Gambhir) और विराट कोहली (Virat Kohli) ने भारतीय पारी को संभालने की जिम्मेदारी उठाई. गंभीर ने 97 रनों की लाजवाब पारी खेली और विराट कोहली ने 35 रन बनाकर टीम को संकट से बाहर निकाला. इसके बाद कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने मोर्चा संभाला और 91 रनों की नाबाद पारी खेलकर भारत को ऐतिहासिक जीत दिलाई.

धोनी का वह आतिशी अंदाज और विजयी छक्का

धोनी का वह विजयी छक्का भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के लिए हमेशा के लिए अमर हो गया. जीत के बाद वानखेड़े स्टेडियम में भारत माता के जयकारे गूंज उठे. हर तरफ तिरंगे की गूंज थी, सड़कों पर जश्न था और लोगों की आंखों में आंसू. पूरी टीम ने सचिन तेंदुलकर को कंधों पर उठाकर इस जीत को उन्हें समर्पित किया, क्योंकि यह उनका सपना था जिसे पूरी टीम ने साकार किया. युवराज सिंह, जिन्होंने पूरे टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन किया था, का योगदान भी अविस्मरणीय रहा. (ICC World Cup 2011)

उस रात भारत में कोई सोया नहीं. हर शहर, हर गली, हर घर में जश्न का माहौल था. देश के कोने-कोने से पटाखों की आवाजें आ रही थीं, लोग सड़कों पर नाच रहे थे, और हर दिल में गर्व की भावना थी. यह सिर्फ एक जीत नहीं थी, यह भारतीय क्रिकेट के लिए एक नई सुबह थी.

आज, 14 साल बाद भी, 2 अप्रैल 2011 की वह रात हर भारतीय के दिल में ताजा है. उस दिन का हर लम्हा, हर पल आज भी वैसा ही रोमांचक लगता है. भारतीय क्रिकेट के इतिहास में यह दिन हमेशा के लिए स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा.

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Anant Narayan Shukla
Anant Narayan Shukla
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से परास्नातक। वर्तमानः डिजिटल पत्रकार @ प्रभात खबर। इतिहास को समझना, समाज पर लिखना, धर्म को जीना, खेल खेलना, राजनीति देखना, संगीत सुनना और साहित्य पढ़ना, जीवन की हर विधा पसंद है। क्रिकेट से लगाव है, इसलिए खेल पत्रकारिता से जुड़ा हूँ.

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